How Ravana Get Amrit In His Navel: रावण अमर था. उसे कोई नहीं मार सकता था. वजह थी कि उसकी नाभि में अमृत था. भगवान राम भी उसका वध तब तक नहीं कर पाए थे, जब तक विभीषण ने रावण की अमरता का राज़ खोल नहीं दिया. मगर सवाल ये है कि रावण की नाभि में अमृत आया कहां से?

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आज आपको रावण की नाभि में अमृत स्थापित होने की दिलचस्प कहानी बताते हैं-

बाली से युद्ध में घायल हुआ रावण

प्राचीन धर्म ग्रंथों एवं मान्यताओं के अनुसार, रावण की नाभि में अमृत आरोपित किया गया था, जिसके कारण रावण अमर हो गया था. कहा जाता है कि एक बार बाली और रावण के बीच भयंकर युद्ध हुआ. रावण को कई गंभीर चोटें पहुंची. कुछ इतनी अंदरूनी थी कि रावण का बचना मुश्किल हो गया. ऐसे वक़्त में रावण की पत्नी मंदोदरी (Mandodari) परेशान हो गईं. उन्होंने फ़ैसला कि वो ना सिर्फ़ रावण की जान बचाएंगी, बल्क़ि उसे अमर भी कर देंगी. (Ravan War With Bali)

ऐसे में मंदोदरी अपने पिता मयदानव के पास पहुंची. उन्होंने बताया कि अमृत चंद्रलोक में है. मगर वहां पहुंच पाना किसी इंसान के बस की बात नहीं. दिलचस्प बात ये है कि कई रहस्यमयी शक्तियों के मालिक मयदानव ने ही अमृतकलश को चंद्रलोक में स्थापित किया था.

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How Ravana Get Amrit In His Navel

मयदानव ने मंदोदरी को ऐसी शक्ति दी, जिससे वो चंद्रलोक पहुंच गई. मगर वहां जाकर भी अमृतकलश को ला पाना मुश्किल था. वजह थी कि अमृतकलश बहुत सी शक्तियों द्वारा सुरक्षित था. उसके पास जाना भी मौत को दावत देना था. कलश के नीचे से बहुत सारी विषैली गैसें निकलती थीं. जिससे मौत हो जाती थी. इसके चारों ओर गर्म लावा निकलता रहता था. ऐसे में अमृत की कुछ बूंदे भी धरती पर लाना नामुमकिन सा था.

मंदोदरी के हाथ लगा अमृत

अमृत कलश सुरक्षित था, सिवाए एक दिन को छोड़कर. दरअसल, चंद्रलोक का एक नियम है कि चन्द्र देव साल में एक बार शरद पूर्णिमा के दिन इस अमृत कलश को वहां से निकालते हैं. उस वक़्त वो धरती पर भी कुछ बूंदे गिराते हैं. यही वो मौक़ा था, जिसकी मंदोदरी को तलाश दी.

मंदोदरी जब चंद्रलोक गई तो उसके दो दिन बाद ही पूर्णिमा थी. जैसे ही पूर्णिमा की रात चंद्र देव ने अमृत कलश वहां से बाहर निकाला, तभी रावण की पत्नी मंदोदरी ने अमृत कलश को चुरा लिया और भागने लगी.

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अंगूठी में अमृत भर कर धरती पर उतरी

मंदोदरी के अमृत चुराने की जानकारी जैसे ही देवताओं को हुई, हाहाकार मच गया. सभी देवताओं ने मंदोदरी का पीछा करना शुरू कर दिया. ऐसे में मंदोदरी ने कलश को देवलोक की एक खिड़की पर छोड़ा और अपनी अंगूठी में अमृत की कुछ बूंदे भर लीं.

मंदोदरी को जानकारी नहीं थी कि कैसे वो इस अमृत से रावण को जीवनदान देगी. ऐसे में उन्होंने विभीषण की मदद ली. रावण के भाई विभीषण को नाड़ी का ज्ञान था. मगर उन्होंने मंदोदरी को ऐसा करने से मना कर दिया. हालांकि, वो बाद में तैयार हो गए.

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शरद पूर्णिमा के दिन इस अमृत की बूंद को रावण की नाभि में स्थापिक करने का फ़ैसला किया गया.चूंंकि, अमृत की सिर्फ़ कुछ बूंदे ही थीं तो उन्हें नाभि में डालने का फ़ैसला किया गया, क्योंकि वहीं पर समस्त नाड़ियों का केंद्र होता है. पहले इसके लिए अशोक वाटिका में रावण को बेहोश या अचेत किया गया. फिर विभीषण ने अमृत बूंदों को रावण की नाभि में स्थापित कर दिया, इसी के चलते रावण अमर हो गया.

यही वजह है कि मंदोदरी के अलावा सिर्फ़ विभीषण को ही रावण की अमरता का राज़ पता था. फिर युद्द में विभीषण से रहस्य जानकर भगवान राम ने अग्नि बाण से रावण का वध किया था.

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