Indian Old Cultural Art : एक समय था जब आज की तरह लोगों को पास मनोरंजन के विभिन्न व आधुनिक साधन नहीं हुआ करते थे. लोग छोटी-छोटी चीज़ों से अपना मनोरंजन किया करते थे, जैसे दादी-नानी के मुंह से कहानी सुनना, मेला देखना या गांव में आने वाली नाटक मंडली का कार्यक्रम देखना. उस दौरान भले ही आमोद-प्रमोद के ज़रिए कम थे, लेकिन लोग जुड़कर रहते थे. लोगों में आपसी प्यार भरपूर था. लेकिन, आज तकनीकी विकास और मनोरंजन के विभिन्न विकल्प के दौर में कई पारंपरिक लोक कलाएं (Folk Performance in India) अब विलुप्त होने की कगार पर हैं. आइये, इस आर्टिकल में जानते हैं उन प्राचीन कलाओं के बारे में.  

आइये, अब विस्तार से पढ़ते हैं आर्टिकल (Indian Old Cultural Art).  

1. जात्रा पाला (बंगाल)

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Indian Old Cultural Art : जात्रा पाला बंगाल की एक प्राचीन लोक कला है, जो विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम मंडलियों द्वारा गांव-गांव में आयोजित की जाती थी. ये एक तरह का नाटक ही हुआ करता था, जिसमें नृत्यु, संगीत और अभिनय की ख़ूबसूरत जुगलबंदी हुआ करती थी. वहीं, जात्रा पाला अधिकतर पौराणिक काल की किसी घटना से प्रेरित होती थी. इसने 20वीं शताब्दी के दौरान पौराणिक ज्ञान और लोगों में देशभक्ति की भावना को जगाने में अहम निभाई थी. आज मुश्किल से ये देखने मिलेगी. वहीं, बहुत लोग तो इसका नाम तक नहीं जानते होंगे. 

2. तमाशा (महाराष्ट्र)  

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ये भी एक ख़ास प्राचीन कला है, जिसमें नृत्य के साथ अभिनय और संगीत शामिल होता था. वहीं, इसे दो तरीक़ों से प्रस्तुत किया जाता था, एक ढोलकी के ज़रिए और दूसरा संगीत के ज़रिए. ये इतनी प्रचान कला (popular folk performance in india) है कि इसकी शुरुआत कब हुई, इस विषय में भी सटीक नहीं बताया जा सकता है. वहीं, माना जाता है कि हर शाम गांव के लोग गोला बनाकर इकट्ठा हो जाया करते थे और कलाकार अपनी प्रस्तुती दिया करते थे. वहीं, इसमें लावणी को भी शामिया किया जाता था.  

3. नौटंकी (उत्तर प्रदेश) 

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Indian Old Cultural Art : ये भी एक रंगमंच ही है, जिसमें संगीत, नृत्यु, अभिनय, हास्य, कहानी व संवाद का मिश्रण होता है. माना जाता है कि इसकी शुरुआत 19वीं शताब्दी के दौरान उत्तर प्रदेश में हुई. पहले इसमें धार्मिक व पौराणिक कथाओं को दिखाया जाता था, लेकिन बाद में इसमें सामाजिक चीज़ें दिखाई जाने लगी. हालांकि, समय के साथ इसमें काफ़ी बदलाव भी आए. अब इसका चलन बहुत ही सीमित हो चुका है.  

4. बहरूपिया कला  

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Indian Old Cultural Art : बहरूपिया कला यानी किसी ख़ास पौराणिक किरदार का रूप धारण कर लोगों के सामने आना. बहुरूपियों को देख लोग चौंक जाया करते थे. ये कला उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित थी. हालांकि, अब ये पूरी तरह विलुप्त होने की कगार पर है. वहीं, एक सच्चाई ये भी है कि बहुरूपियों को बड़े मंचों से वंचित रखा गया, इसलिए इन्हें सड़कों या मेलों तक अपनी कला को सीमित रखना पड़ा. हालांकि, पहले इन्हें राजा-महाराजाओं का संरक्षण प्राप्त था.  

5. भवई (गुजरात) 

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Indian Old Cultural Art : भवई दो शब्दों के मेल से बना है, पहला भाव यानी भावना और दूसरा वई यानी वाहक. माना जाता है कि गुजरात के भवई (popular folk performance in india) का इतिहास क़रीब 700 साल पुराना है. इसका उद्देश्य मनोरंजन के साथ-साथ जन जागरुकता बढ़ाना भी था. इसमें किसी सरल करानी को हास्य रूप में प्रस्तुत किया जाता था. वहीं, इसकी मूल भाषा गुजराती रही है, लेकिन इस पर हिन्दी, उर्दू व माराड़ी का भी असल देखा गया है. इमसें मुख्य रूप से पुरुष ही हिस्सा लेते रहे हैं और स्त्रियों का रूप भी धारण किया करते थे.