1947 में जब हिन्दुस्तान जब को आज़ादी मिली तो देश के दो हिस्से हुए एक भारत तो दूसरा पाकिस्तान. ऐसे ही रियासतें भी बंट गई कुछ भारत में आ गईं तो कुछ पाकिस्तान में चली गईं. ऐसे में राजाओं के पास भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 के अनुसार, पूरी स्वतंत्रता थी कि वो पाकिस्तान जाएं या भारत, क्योंकि राजा भी काम करने के लिए स्वतंत्र होना चाहते थे. आज़ादी के समय राजस्थान में 22 रियासतें थी, जिनमें से सिर्फ़ अजमेर रियासत अंग्रेज़ों के अधीन थी, बाकि 21 रियासतें स्थानीय राजाओं के पास थीं. आज़ादी के बाद अजमेर रियासत भी भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 के तहत भारत के हिस्से में आ गई.

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इसके बाद ज़्यादातर राजा चाहते थे कि राज-काज संभालने का अच्छा तर्जुबा और आज़ादी की लड़ाई में उनका योगदान भी है, इसलिए उनकी रियासत को भारत में एक अलग और स्वतंत्र राज्य का दर्जा दिया जाए. इनमें से एक जोधपुर रियासत भी थी, जिसके राजा अपनी रियासत को पाकिस्तान में मिलाना चाहते थे. इस पूरे वाक्ये का Larry Collins और Dominic Lapier की किताब Freedom At Midnight में विस्तार से वर्णन मिल जाएगा.

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वो जोधपुर के राजा हनवंत सिंह थे, जो अपनी रियासत को पाकिस्तान में विलय करने के बारे में गंभीरता से सोच रहे थे. इस मामले में उन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना के साथ मिलकर कुछ शर्तें भी रखी थीं, जिनमें बंदरगाह की सुविधा, रेलवे का अधिकार, अस्त्रों-शस्रों को मुहैय्या कराना, अकालग्रस्त इलाकों में खाद्यानों की आपूर्ति करना, जोधपुर रेलवे लाइन का कच्छ तक विस्तार करना शामिल थीं. इन सभी शर्तों को जिन्ना ने मान लिया था.

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इसके बाद, राजा हनवंत सिंह ने उदयपुर के महाराज से भी पाकिस्तान में अपनी रियासत को विलय करने के बारे में कहा तो, उदयपुर के महाराज ने उनकी बात को ठुकराते हुए कहा, अगर रियासत को विलय करना है तो भारत में अपने लोगों में किया जाए न कि पाकिस्तान में. साथ ही कहा, 

एक हिंदू राजा भारत के साथ मिलकर ही सुख-शांति से रह सकता है. उदयपुर के राजा की इस बात से प्रभावित होकर हनवंत सिंह ने अपने फ़ैसले पर विचार किया और 1 अगस्त 1949 को भारत-संघ के विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर रियासत को भारत में विलय कर दिया.
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आपको बता दें, राजा हनवंत सिंह के रियासत को पाकिस्तान में विलय करने की बात पर जोधपुर में उस समय माहौल गर्म था, इस लिए माउंटबेटन ने भी हनवंत सिंह से कहा कि धर्म के आधार पर बंटे देश में उनके इस फ़ैसले से लोगों की सांप्रदायिक भावनाएं आहात होने से लोग भड़क सकते हैं.

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वहीं दूसरी ओर, सरदार वल्लभ भाई पटेल भी नहीं चाहते थे कि जोधपुर की रियासत पाकिस्तान में जाए, इसलिए उन्होंने राज हनवंत सिंह को उनकी सभी शर्तों को मानकर सुविधाएं देने का आश्वासन दिया, जो उन्होंने पाकिस्तान से मांगी थी. इन सबके बावजूद मारवाड़ के कुछ जागीरदार थे, जो अपनी रियासत को भारत में विलय न करके मारवाड़ को स्वतंत्र राज्य बनाना चाहते थे, लेकिन राजा हनवंत सिंह ने समय की नज़ाकत को समझते हुए अपनी रियासत को भारत में ही विलय कर दिया.