ओम जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।

‘ओम जय जगदीश हरे’ देश-दुनिया की सबसे लोकप्रिय आरती है. घर हो या मंदिर कोई भी धार्मिक कार्यक्रम इस सदाबहार आरती के बिना अधूरा होता है. फ़िल्मों से लेकर असल ज़िंदगी हर कोई इस आरती को गुनगुना चुका है. पर शायद अब तक लोगों को ये नहीं पता होगा कि आखिर इतनी ख़ूबसूरत आरती के रचियता हैं कौन?

किसने लिखी है इतनी ख़ूबसूरत आरती

हिंदुस्तानियों के लिये इतनी लोकप्रिय आरती लिखने का श्रेय पंडित श्रद्धाराम शर्मा को जाता है. उन्होंने ही ‘ओम जय जगदीश हरे’ जैसी आरती की रचना करके हमें एक बेहतरीन सौगात दी. आरती के रचनाकार पंडित श्रद्धाराम का जन्म लुधियाना के एक छोटे से गांव फ़िल्लौरी में हुआ था. पहले इस गांव की कोई पहचान नहीं थी. पर लेखक ने फ़िल्लौरी को अपने नाम से जोड़ लिया. इसके बाद से लोग उन्हें भी इस नाम से जानने लगे.

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कैसे आया आरती लिखने का ख़्याल 

पंडित श्रद्धाराम का पालन-पोषण धार्मिक माहौल में हुआ था. वो कम उम्र में ही धार्मिक ग्रंथों के बारे में बहुत कुछ जान चुके थे. रचनाकार का ज्ञान देख कर उनके पिता भी हैरान थे. श्रद्धाराम शर्मा के पिता जयदयालु शर्मा एक ज्योतिषि थे. जिन्होंने अपने बेटे का ज्ञान देख कर कहा था कि वो कम उम्र में काफ़ी नाम-रौशन करेंगे.

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सच साबित हुई पिता की भविष्यवाणी

पिता की राह पर चलते हुए पंडित श्रद्धाराम भी ज्योतिषी में मन लगाने लगे. उन्हें हिंदी, संस्कृत, अरबी और फ़ारसी भाषा में काफ़ी ज्ञान था. 11 साल की उम्र में उन्होंने ये सारी भाषाये बिना स्कूल जाये सीखी थीं. यही नहीं, कुछ ही समय में उन्हें पंजाबी साहित्य के पितृपुरुष की उपाधि भी दे गई. कहते हैं कि 1866 में उन्होंने गुरुमुखी में ‘पंजाबी बातचीत’ और ‘सिखों दे राज दी विथिया’ जैसी किताबें भी लिख डाली थीं.

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पंडित श्रद्धाराम सिर्फ़ धार्मिक चीज़ों में ही आगे नहीं थे, बल्कि वो सामाजिक मुद्दों पर भी खुल कर आवाज़ उठाते थे. यही वजह थी कि एक तपका उनके खिलाफ़ था. वो महज़ 30 साल के थे जब उन्होंने 1870 में ‘ओम जय जगदीश हरे’ आरती लिख डाली. आरती पहली बार मनोज कुमार की फ़िल्म ‘पूरब और पश्चिम’ में इस्तेमाल हुई और सबके दिल में अपनी जगह बना ली.

इतनी बेहतरीन आरती के लिये रचनाकार का शुक्रिया!