Tantra Sadhak Yogeswari Bhairavi Brahmani: भारत देश में महिलाएं साधना और आध्यात्म के क्षेत्र में सबसे आगे हैं. इस देश में महिलाएं बेटे के लिए, पति के लिए पूरे-पूरे दिन भूखी-प्यासी रहकर व्रत करती हैं क्योंकि मान्यता है कि ऐसा करने से पति और बेटे की उम्र लंबी होती है. इसके अलावा, भगवान की पूजा में भी पुरूषों से महिलाएं आगे हैं. कहावत है कि, हर सफल आदमी के पीछे एक औरत होती है. इस बात को साबित करती है महान संत, आध्यात्मिक गुरु और विचारक श्रीरामकृष्ण परमहंस की कहानी, जिनके बारे में बहुत कम ही लोग जानते होंगे कि उन्होंने तंत्र विधाओं का ज्ञान एक महिला से ही लिया था.
चलिए, जानते हैं कि कौन थीं वो महिला, जिन्होंने श्रीरामकृष्ण परमहंस को तंत्र विद्याओं (Ramakrishna Paramahansa Tantra Sadhna Guru) की दीक्षा दी.
Tantra Sadhak Yogeswari Bhairavi Brahmani
वो महिला कोई और नहीं, बल्कि तंत्र साधिका गुरू भैरवी ब्राह्मणी थीं, जो तंत्र विद्या में पारंगत थीं. इनका जन्म 1820 के दशक में एक ब्राहम्ण परिवार में हुआ था. बचपन से ही आध्यात्म लीन होने की वजह से वो आजीवन कुंवारी रहीं. साधना और तप ने उन्हें भैरवी बनाया, वो अपने साथ रघुवीरशिला रखती थीं उसे रामस्वरूप मानकर उसकी पूजा करती थीं. इसके अलावा, वो भगवान सिव को पति समान पूजती थीं.
इनका पहनावा भगवा रंग की साड़ी था और हाथ में त्रिशूल रखती थीं. भैरवी को उच्च शक्तियां मिली थीं, जिसके चलते उन्होंने श्रीरामकृष्ण परमहंस को ख़ुद खोजा और उन्हें तंत्र विद्या सिखाई. दरअसल, एक बार की बात है कि, भैरवी गंगा किनारे नाव से उतरीं और कोलकाता के दक्षिणेश्वर मंदिर परिसर में जाकर बैठ गईं. उसी मंदिर परिसर में 25 साल के परमहंस भी रहते थे उन्हें बगीचे से पूल तोड़ने के दौरान देखा कि एक महिला मंदिर में चुपचाप आकर बैठ गई है.
जब वो फूल तोड़कर अपने कमरे में गए तो उन्होंने अपने भतीजे से कहा कि, उस महिला को सम्मानपूर्वक यहां ले आएं. भैरवी के चेहरा का तेज़ और उनका व्यक्तित्व इतना आकर्षक था कि, परमहंस उन्हें नज़रअंदाज़ नहीं कर पाए. उस वक़्त भैरवी की उम्र 40 वर्ष थी और वो 1861 के आसपास रामकृष्ण से मिली थीं.
भैरवी ने परमहंस को बताया कि,
मुझे जगतमाता की आज्ञा से तीन लोगों को दीक्षा देनी थी, जिसमें से मैं दो लोगों को दीक्षा दे चुकी हैं और अब तीसरे तुम हो. मैं जानती थी कि तमु मुझे गंगा किनारे ही मिलोगे इसीलिए मैं यहां आई. परमहसं भी तपी थे और वो साधना में लीन रहते थे वो भी उस महलिा की बात समझ गए कि वही हैं, जो उन्हें तंत्र विद्याओं से अवगत कराएंगी. बस तभी उन्होंने साधिका गुरू भैरवी ब्राहम्णी को अपना गुरू मान लिया और उन्हें मां का दर्जा दे दिया.
आपको बता दें, भैरवी ब्राह्मणी ने श्रीरामकृष्ण को 64 तंत्र विद्याएं सिखाईं, जिनका इस्तेमाल लोगों की सेवा में करने को कहा. साथ ही, इन्हीं तंत्र विद्याओं से श्रीरामकृष्ण परमहंस ने अपने अस्तित्व को समझा और जाना कि उन्हें दुनिया में लोगों की सेवा और अध्यात्म से जागरुक करने के लिए भेजा गया है.