आज़ादी के बाद से भारत-पाकिस्तान के बीच 4 बार युद्ध हो चुका है, जिनमें से 4 में भारत ने जीत हासिल की थी. हालांकि, 1965 के युद्ध में पाकिस्तान ख़ुद के विजयी होने का दावा करता है मगर इतिहासकारों का इसे लेकर कुछ और ही मत है. उनका कहना है कि भारत किसी भी स्थिति में इस युद्ध में हारने की कगार पर नहीं था.

ख़ैर, आज 1965 के उसी भारत-पाकिस्तान युद्ध के हीरो के बारे में आज हम आपको बताएंगे, जिसने अपने साहस और सैनिकों के दम पर पाकिस्तान के 60 टैंक्स को उड़ा कर उसकी बखिया उधेड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.

शिवाजी से भी है गहरा नाता

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हम बात कर रहे हैं शहीद लेफ़्टिनेंट कर्नल ए.बी. तारापोर की. कर्नल ए.बी तारापोर का पूरा नाम अर्देशिर बुरजोरजी तारापोर था वो पुणे के रहने वाले थे. उनके वंशजों ने वीर शिवाजी महाराज की सेना का नेतृत्व किया था. बहादुरी इन्हें विरासत में मिली थी. पढ़ने और खेलकूद में अव्वल रहने वाले ए.बी. तारापोर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने बाद इंडियन आर्मी के लिए टेस्ट दिया था. 1942 में इन्हें हैदराबाद सेना के पैदल सैन्य दल के लिए सेलेक्ट किया गया था.

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द्वितीय विश्व युद्ध में भी दिखाया साहस

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लेकिन तारापोर शुरू से ही बख्तरबंद रेजिमेंट में शामिल होना चाहते थे. इनके साहस और लगन को देखते हुए जल्द ही उन्हें पहली हैदराबाद इंपीरियल सर्विस लांसर्स में भेज दिया गया. ये एक बख्तरबंद रेजिमेंट जिसका हिस्सा बन इन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध में दुश्मनों की ईंट से ईंट बजाई थी. आज़ादी के बाद इन्हें 1951 में तारापोर को पूना हॉर्स रेजिमेंट की 17 वीं बटालियन में तैनात किया गया. 1965 में पाकिस्तान ने कश्मीर पर कब्जा करने के बुरे मंसूबे के साथ भारत पर हमला कर दिया.

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सियालकोट में संभाला मोर्चा

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तारापोरे को मोर्चा संभालने के लिए युद्धक्षेत्र में भेजा गया. वो अपनी बटालियन के साथ लड़ते-लड़ते पाकिस्तान के सियालकोट पहुंच गए. यहां उन्होंने ऐसी रणनीतियां बनाकर हमला किया कि पाकिस्तान के सैनिक पीछे हटने को मजबूर होने लगे. इसके बाद तारापोरे को फिल्लौरा पर हमला करने को कहा गया ताकि चाविंडा को हथिया जा सके. तारापोर अपने सैनिकों के साथ आगे बढ़े. पाकिस्तान दूसरी तरफ अमेरिका से मिले लेटेस्ट पैटन टैंक्स के साथ भारतीय सैनिकों पर गोले दाग रहा था.

तबाह कर दिए पाकिस्तान के 60 टैंक

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पर तारापोर और उनके सैनिकों ने भी जवाब देने में कोई कसर नहीं छोड़ी. 17वीं पूना हॉर्स और गढ़वाल राइफ़ल्स रेजीमेंट ने मिलकर पाकिस्तान के चाविंडा इलाके को पीछे से घेरने का इरादा बनाया. इस बीच गढ़वाल राइफ़ल्स कुछ सैनिक शहीद हो गए. मगर तारापोर के सैनिकों ने हौसला नहीं छोड़ा, वो डटे रहे. उनके नेतृत्व में 17वीं पूना हॉर्स के सैनिकों ने पाकिस्तान के 60 टैंक उड़ा दिए. इससे पाकिस्तानी सेना की चूलें हिल गईं और वो पिछड़ने लगी. चाविंडा के इस युद्ध में दुश्मन सैनिकों की गोली का निशाना तारापोर भी बने. वो बुरी तरह से घायल हो गए.

युद्ध क्षेत्र में किया गया अंतिम संस्कार

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अंतिम समय देख उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा भी जाहिर की. तारापोर ने कहा कि अगर वो शहीद होते हैं तो इसी बैटल ग्राउंड में उनका अंतिम संस्कार भी किया जाए. उनके शहीद होने पर उनकी रेजिमेंट ने ऐसा ही किया. भीषण गोलाबारी के बीच उनका अंतिम संस्कार किया गया था. भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत सेना के सर्वोच्च मेडल परमवीर चक्र से सम्मानित किया था.

भारत के इस वीर जवान को हमारा सलाम.