धार्मिक कट्टरपंथ सबसे पहले अपने देश को कैसे खा जाता है उसका जीता-जागता उदहारण है – अफ़ग़ानिस्तान.

एक समय था जब अफ़ग़ान नागरिक दुनिया के बाक़ी मॉडर्न देशों के बाशिंदों की तरह अपनी मर्ज़ी से जी सकते थे – Fashionable कपड़े पहन सकते थे, अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ खा-पी सकते थे, गाने, फ़िल्में देख-सुन सकते थे, देश में मॉडर्न क़ानून और न्याय प्रणाली थी, महिलाएं काम पर जा सकती थी, पढ़ सकती थी, आदि. दुनियाभर से लोग अफ़ग़ानिस्तान घूमने भी जाते थे. 

फिर उदय हुआ कटटरपंथी संगठनों का, ख़ासकर मुजाहिद्दीन और तालिबान का, जिन्होंने क़ुरान और शरिया के नाम पर अफ़ग़ानिस्तान को नर्क में तब्दील कर दिया. कट्टरपंथियों और आतंकवादियों के हाथ में जाने से पहले ये देश कितना ख़ूबसूरत और मॉडर्न था, ये तस्वीरें गवाही दे रहें हैं:   

1. स्कूल से लौटती छात्राएं 

Daily Mail

2. Higher Teachers College में दो अफ़ग़ान शिक्षक

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3. शांति के दिन और सुकून के पल 

Daily Mail

4. चाय और संगीत के साथ ख़ाली समय में मस्ती करते अफ़ग़ान 

Daily Mail

5. क़ाबुल से 18 Km दूर एक बाज़ार में विदेशी महिला  

6. लड़के-लड़कियां एक साथ पढ़ते थे 

Daily Mail

7. हाथ में हाथ थामे दो बहनें, क़ाबुल 

Daily Mail

8. अफ़ग़ानिस्तान में छपने वाले Zhvandun मैगज़ीन के कुछ पन्ने 

BBC

9. महिलाएं एयरलाइन्स में काम कर सकती थी 

BBC

10. हर क्षेत्र में महिलाओं को काम करने की आज़ादी थी 

BBC

11. क़ाबुल की सड़कों पर एक आम दिन, 1978 

The Guardian

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12. स्कूल जाने का अधिकार सबको था (स्कूल में म्यूज़िक पर नाचते बच्चे) 

Daily Mail

13. मिनी स्कर्ट पहन कर क़ाबुल की सड़कों पर बेख़ौफ़ घूमती लड़कियां, क़ाबुल 1972  

The Guardian

14. सरकार के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन 

15. क़ाबुल से पेशावर, पाकिस्तान के लिए बस  

Daily Mail

16.  कॉलेज में लड़के-लकड़ियों का एक साथ पढ़ना कोई बड़ी बात नहीं थी (Higher Teachers College, क़ाबुल)

Daily Mail

17. घर लौटते 2 अफ़ग़ान नागरिक 

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18. जलेबी बनाता हुआ एक अफ़ग़ान 

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19. म्यूज़िक रिकॉर्ड की दुकान में महिलाएं 

Daily Mail

20. गांव में जाकर लोगों की मदद करती नर्स 

Daily Mail

21. यूनिवर्सिटी में महिला शिक्षक छात्रों को नई तकनीक के बारे में बताते हुए  

CNN

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22. भविष्य को लेकर उम्मीद से भरी आंखें 

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20वीं सदी के 1960-70s में अफ़ग़ानिस्तान में जीवन 21वीं सदी के पहले 2 दशकों से कहीं बेहतर था. उनका आगे आने भविष्य भी अंधकारमय लग रहा है.   

ये उन सभी लोगों के लिए एक अलार्म है जो धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा देते हैं या बर्दाश्त करते हैं. याद रखिये समय भले ही आगे चले, धर्मान्धता और कट्टरता आपको पीछे ही ले जायेगी.