Mahabharata Characters Life Lessons : महाभारत (Mahabharata) हिन्दू धर्म का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति के इतिहास वर्ग में आता है. वहीं, हिन्दू पौराणिक किताब गीता जोकि महाभारत का ही एक हिस्सा है, वो श्रुति के इतिहास वर्ग में आती है. कहा जाता है कि महाभारत युद्ध आरम्भ होने के ठीक पहले भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया था, वो श्रीमद्भगवद्गीता के नाम से प्रसिद्ध है.
ये दोनों ही महाकाव्य हमें बहुत कुछ सिखाते हैं. इसमें कुछ ऐसी बातें भी बताई गई हैं, जो व्यक्ति अपनी ज़िंदगी में लागू कर सकता है. यहां महाभारत के 9 कैरेक्टर्स की लिस्ट है और साथ में ये भी बताया गया है कि व्यास द्वारा याद की गई और अर्जुन द्वारा सुनी गई बातों से हम क्या सीख सकते हैं. आइए आपको बताते हैं.
1- कृष्ण ने बताया कि सबको अपनी ड्यूटी निभानी चाहिए
कृष्ण ने अपना पूरा मुंह खोलकर अर्जुन को ब्रह्मांड दिखाया था. कृष्ण, अर्जुन को बताते हैं कि कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि धर्म चट्टान की तरह (धार) और मोम की तरह लचीला (बहता हुआ) दोनों है. धर्म आपका संस्थागत धर्म नहीं है. ये आपका स्वाभाविक और बाध्यकारी कर्तव्य है. ये नैतिक प्रकृति का है और आप इसके साथ पैदा हुए हैं. एक राजा का धर्म अपने राजकीय कर्तव्यों का पालन करना है. धर्म ब्रह्मांड को एक साथ रखता है. कृष्ण हमें सिखाते हैं कि चुनौतीपूर्ण समय में कर्तव्यपरायण कैसे बने रहें.
2- दुर्योधन से हमने सीखा कि पतन से पहले अभिमान आता है
दुर्योधन हमें सिखाते हैं कि कैसे अंधा स्व-धर्म (स्वयं की इच्छा) आपको “अधर्म” की ओर ले जा सकती है. दुर्योधन का लालच ग़लत है, उनका तरीका ग़लत है. वो हमें सिखाते हैं कि अंधे अभिमान और गलत कार्यों के परिणाम होते हैं और व्यक्ति को अपने कार्यों और विचारों के बारे में सावधान और विचारशील होना चाहिए.
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3- कर्ण ने हमें दया के गुण के बारे में सिखाया
कर्ण को उसकी उदारता और दयालु स्वभाव के लिए ‘दानवीर’ के रूप में जाना जाता था. सूर्य देव के पुत्र होने के नाते, कर्ण के पास एक प्राकृतिक कवच था, जो एक ढाल के रूप में काम करता था. जब इंद्र ने तपस्वी के वेश में भिक्षा मांगी, तो कर्ण ने निःस्वार्थ भाव से इस अनमोल उपहार को दे दिया. इंद्र इस भाव से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने कर्ण को अपना वज्र दे दिया. कर्ण हमें सिखाते हैं कि हमारे पास देने के लिए कभी कुछ नहीं होता.
4- द्रौपदी ने हमें सिखाया कि हमें बोलने से पहले कैसे सोचना चाहिए
द्रौपदी ने अपने स्वयंवर के दौरान कर्ण को उसकी जाति और स्थान के बारे में ताना मारा. बाद में, जब दुर्योधन उनके महल में आया, तो उन्होंने अपने कठोर शब्दों से उसे नाराज कर दिया. कई इतिहासकारों का तर्क है कि इसी समय दुर्योधन ने पांडवों से बदला लेने की कसम खाई थी. द्रौपदी के कठोर शब्द एक प्रकार से युद्ध का कारण बने. ये हमें सिखाता है कि व्यक्ति को पता होना चाहिए कि उसे क्या बोलना है और कब बोलना है.
5- बदला लेने का शकुनि का संकल्प कुरु वंश के विनाश का कारण बना. बदला सब खा जाता है!
शकुनी हमें सिखाते हैं कि प्रतिशोध का पूरा विचार वास्तव में एक पूरी सभ्यता, चीज़ों का एक पूरा क्रम खा सकता है – जैसा कि हम महाभारत के अंत में देखते हैं.
6- अभिमन्यु का चक्रव्यूह भेदने का दुखद प्रयास हमें बताता है कि कैसे आधा ज्ञान काफ़ी ख़तरनाक हो सकता है
हालांकि, अभिमन्यु ने बहादुरी से चक्रव्यूह में प्रवेश करने के लिए स्वेच्छा से भाग लिया, लेकिन वो इससे बाहर नहीं निकल सके. उनका उदाहरण हमें दिखाता है कि कैसे आधे ज्ञान के ख़तरनाक परिणाम हो सकते हैं.
7- अर्जुन ने हमें सिखाया कि कैसे एकाग्रचित्त ध्यान किसी के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद कर सकता है
जब आप ज़िन्दगी में कुछ चाहते हैं, तो आपको अर्जुन की तरह उस पर केंद्रित होना चाहिए. केवल यही ध्यान आपको एक विजेता, एक निपुण व्यक्ति बना सकता है जिसका सभी सम्मान करते हैं.
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8- युधिष्ठिर ने हमें दो बातें सिखाईं
युधिष्ठिर एक धर्मी आत्मा थे, जो अपने सभी भाइयों में सबसे परिपक्व और दयालु थे. उनके गुण कुछ ऐसे हैं, जिनका हर किसी को प्रयास करना चाहिए और उनका अनुकरण करना चाहिए. फिर भी, अहंकार और लालच में उसने अपना राज्य, अपना धन, अपने भाइयों और अंत में अपनी पत्नी को दांव पर लगा दिया. दूरदर्शिता के साथ जोड़े जाने पर धार्मिकता बेकार है.
9- धृतराष्ट्र के कार्यों के परिणामों ने हमें सिखाया कि कैसे किसी को प्रेम में अंधा नहीं होना चाहिए
धृतराष्ट्र न केवल आंशिक रूप से दृष्टिहीन थे, बल्कि वे अपने बच्चों से भी अंधा प्रेम करते थे, और इस प्रकार उन्होंने कभी उन्हें फटकारा नहीं. अपनों के भटक जाने पर उन्हें सही करने से उनके लिए आपका प्यार कम नहीं होता, इससे उन्हें गलतियां ना करने में मदद मिलती है.