भारत वीरों की भूमि है. इतिहास गवाह है कि जब-जब बाहरी शक्तियों ने हमारे देश और हमारे देशवासियों पर आंख उठाने की कोशिश की, हमने मुंहतोड़ जवाब दिया. इस काम में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं ने भी कंधे से कंधा मिलाया. इतिहास खंखालें, तो आपको कई भारतीय वीरांगनाओं के बारे में जानने को मिलेगा. आइये, इसी क्रम में हम आपको भारत की एक बहादूर बेटी ‘नीरजा भनोट’ के बारे में बताता हैं, जिसने अपनी जान देकर प्लेन हाइजेक के दौरान 300 से ज्यादा यात्रियों को आतंकियों से बचाया था. 

नीरजा भनोट 

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नीरजा भनोट का जन्म 7 सितंबर 1963 को चंडीगढ़ में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा चंडीगढ़ में ली. बाद में उनका परिवार चंडीगढ़ से मुंबई आया, इसलिए नीरजा ने अपनी बाकी पढ़ाई यहीं मुंबई में पूरी की. करियर के शुरुआती दिनों में उन्होंने मॉडलिंग की. बाद में उनकी शादी करा दी गई.  

पति का व्यवहार सही नहीं था 

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मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, नीरजा की शादी मार्च 1985 में यूएई में रहने वाला एक इंजीनियर से करा दी गई. लेकिन, दो महीने बाद ही नीरजा के वैवाहिक जीवन पर काले बादल छाने लग गए. निरजा का पति उसे मारता-पीटता और देहज के लिए प्रताड़ित करता. जब नीरजा ये सब सह न पाई, तो वो पति का घर छोड़ वापस मुंबई आ गईं.  

Flight Attendant’s job के लिए किया अप्लाई  

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नीरजा ख़ुद को प्रूफ़ करना चाहती थी. इसलिए, उसने Pam Am में Flight Attendant’s job के लिए अप्लाई किया. नीरजा का सेलेक्शन हो गया और वो आगे ट्रेनिंग के लिए चली गईं. कहते हैं कि नीरजा को एक साल के अंदर ही एयर हॉस्टेस से फ्लाइट पर्सर बना दिया गया.  

प्लेन हाईजैक 

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वो दिन 5 सिंतबर 1986 था. नीरजा Pan Am की फ़्लाइट 73 में मौजूद थीं. ये फ़्लाइट मुंबई से अमेरिका जा रही थी, जिसे बीच में कराची रुकना था. कहते हैं जैसे ही फ़्लाइट कराची में रुकी, चार आतंकी सिक्‍योरिटी की ड्रेस में प्लेन के अंदर घुस गए. आंतकी इस विमान को साइप्रस ले जाना चाहते थे, ताकि इसके बदले वो वहां कैद फलस्‍तीनी कैदियों को रिहा करवा सकें. कहते हैं प्लेन 17 घंटों तक आतंकियों के कब्ज़े में था.  

नीरजा ने दिखाई समझदारी 

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नीरजा स्थिति को समझ चुकी थीं. उन्होंने अपनी सुझबूझ से कॉकपिट क्रू को अलर्ट कर दिया और कॉकपिट में बैठे पायलट और फ्लाइट इंजीनियर प्लेन से बाहर निकलने में कामयाब रहे. अब आतंकी प्लेन को आगे नहीं ले जा सकते थे.  

नीरजा को लगी गोली 

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डर के इस आलम में भी नीरजा ने अपना काम जारी रखा. अपनी जान की परवाह किए बगैर वो यात्रियों की मदद करती रहीं. नीरजा ने उस दिन 300 से ज्यादा यात्रियों की जान बचाई. लेकिन, इसी बीच कुछ बच्चों को बाहर निकालते वक़्त उन्हें गोली लग गई और उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए.    

अशोक चक्र से सम्मानित किया गया  

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नीरजा को इस वीरता के लिए मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया. नीरजा उन ख़ास लोगों में शामिल हुईं जिन्हें कम उम्र में अशोक चक्र मिला. वहीं, अमेरिका की तरफ़ से नीरजा को ‘Justice for Crime Award’ से नवाज़ा गया. वहीं, उन पर आगे चलकर एक बॉलीवुड फ़िल्म भी बनी, जिसमें सोनम कपूर ने नीरजा का रोल निभाया.