ख़ुफिया एजेंसी किसी देश की सुरक्षा में बहुत ही अहम रोल निभाती है. भारत में भी एक ऐसी एजेंसी है, जिसका नाम रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) है. साल 1968 में रॉ की स्थापना का मक़सद पाकिस्तान और चीन की गतिविधियों पर नज़र बनाए रखना था. पाकिस्तान पहला फ़ोकस था और चीन इसलिए क्योंकि वो भारत के ख़िलाफ़ पाकिस्तान की सामरिक दृष्टि से मदद कर रहा था. इसके साथ ही, रॉ देश के भीतर और बाहर हमारे हितों की रक्षा करने के लिए भी ख़ुफ़िया तौर पर काम करती रहती है.

amarujala

इसके लिए रॉ ने कई ख़ुफ़िया मिशन सफ़लतापूर्वक अंजाम दिये हैं. आज हम आपको रॉ के एक ऐसे ही मिशन के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने पाकिस्तान को न सिर्फ़ तगड़ा झटका दिया था, बल्कि अपनी क़ाबिलियत का लोहा भी मनवाया था.

ये भी पढ़ें: कैसे बनें RAW एजेंट? जानिए क्या हैं आवश्यक योग्यताएं, चयन प्रक्रिया, वेतन व अन्य सुविधाएं?

80 का दशक और भारत-पाक के बीच हथियारों की होड़

80 का दशक भारत और पाकिस्तान के इतिहास में बेहद महत्वपूर्ण है. क्योंकि साल 1974 में भारत के पोखरन परमाणु परीक्षण के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच हथियारों की एक होड़ शुरू हो गई थी. पाकिस्तान समझ चुका था कि अगर उसे भारत से मुकाबला करना है, तो हर हाल में परमाणु हथियार हासिल करने होंगे. 

storypick

ऐसे में पाकिस्तान परमाणु संसाधन संयत्र स्थापित करने के लिए हर मुमक़िन कोशिश करने लगा. इस काम में उसकी मदद फ़्रांस ने की. बिल्कुल वैसे ही जैसे भारत की मदद अमेरिका और कनाडा ने की थी. इस काम में पाक की मदद चीन ने भी की. चीन के तकनीशियनों ने परमाणु हथियार बनाने के लिए यूरेनियम को संशोधित करने में पाकिस्तान को सहायता दी.

indiatimes

हालांकि, फ्रांसीसी मदद के बारे में तो सबको पता था, लेकिन कहूटा में पाक के गुप्त परमाणु संयत्र का किसी को पता नहीं था. रॉ को भी इसकी जानकारी अफ़वाह के तौर पर ही मिली थी. ख़ैर, पाकिस्तान जिस रफ़्तार और लापरवाही से काम कर रहा था, उसे लेकर अब फ़्रांस भी चिंतित हो उठा. उस पर अमेरिका ने भी दबाव डालना शुरू कर दिया, जिसके बाद फ़्रांस ने पाक को मदद करना बंद कर दी. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. अब पाकिस्तान ने अपना सारा ज़ोर कहूटा के ख़ुफ़िया परमाणु संयत्र को विकसित करने पर लगा दिया था. 


रॉ ने कहूटा परमाणु संयत्र का पता लगाने के लिए निकाला बेहद नायाब तरीका

रॉ ने अपनी स्थापना के बाद से ही पाकिस्तान में अपना नेटवर्क बिछाना शूरू कर दिया था. अफ़वाह के तौर पर तो रॉ को पाक के इस कार्यक्रम के बारे में जानकारी थी, लेकिन समस्या ये थी कि इसकी पुष्टि कैसी की जाए. ऐसे में रॉ ने एक बिल्कुल अलग ही पैतरा अख़्तियार किया. 

storypick

दरअसल, कहूटा में पाकिस्तानी वैज्ञानिक हेयर ड्रेसर की दुकान में बाल कटवाने आते थे. ऐसे में रॉ ने बाल काटने वालों की दुकान के फ़र्श से पाकिस्तानी परमाणु वैज्ञानिकों के बालों के सैंपल जमा किए. जब उन वैज्ञानिकों के चुराए गए बालों के सैंपलों का परीक्षण किया गया, तो उसमें रेडिएशन के कुछ अंश मिल गए. अब इस बात की पुष्टि हो गई थी कि पाकिस्तान ने ‘वेपन ग्रेड’ यूरेनियम को या तो विकसित कर लिया है या उसके बहुत क़रीब है.

भारतीय प्रधानमंत्री की चूक ने रॉ के मिशन पर फेरा पानी

कहते हैं कि इज़ारायल भी नहीं चाहता था कि पाकिस्तान परमाणु हथियार हासिल कर ले. ऐसे में इज़रायल की ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद, रॉ के साथ मिलकर काम कर रही थी. कहते हैं जब रॉ ने कहूटा परमाणु संयत्र होने की बात की पुष्टि कर दी, तो इज़रायल कहूटा संयत्र को बम से उड़ाना चाहता था, लेकिन तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई से एक बड़ी चूक हो गई.

staticflickr

कहा जाता है कि रॉ के एक एजेंट को 1977 में पाकिस्तान के कहूटा परमाणु संयंत्र का डिज़ाइन प्राप्त हो गया था. लेकिन पीएम मोरारजी देसाई ने इसे दस हज़ार डॉलर में खरीदने की पेशकश ठुकरा दी. इतना ही नहीं, उन्होंने ये बात पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल ज़िया उल-हक़ को बता भी दी. 

bobhata

दरअसल, मोरारजी देसाई ने जनरल जियाउल हक से फोन पर बातचीत के दौरान कह दिया कि उन्हें पाकिस्तान के ख़ुफिया कहूटा परमाणु संयत्र की जानकारी है. इसके बाद पाक सतर्क हो गया और जनरल ज़िया ने रॉ के उस एजेंट को पकड़वा कर एलिमिनेट करवा दिया.इस वजह से रॉ के हाथ ब्लू प्रिंट नहीं लगा.

रॉ का ये मिशन भले ही पूरी तरह से कामयाब न हो पाया हो, लेकिन इसके बाद पाकिस्तान अपने परमाणु कार्यक्रमों की जानकारी को गुप्त रखने को लेकर ज़्यादा चिंतित रहने लगा. वाक़ई में रॉ का ये अभियािन न सिर्फ़ ऐतिहासिक था, बल्कि दुनिया के सबसे जोखिम भरे मिशन में से भी एक था.