‘राम सब के हैं, राम सब में हैं.’ ये हिंदुओं की आस्था है. मगर फिर भी जाति-पाति का भेदभाव ऐसा है, जो राम भक्तों को भगवान राम से ही दूर करने लगता है. मगर जिनके रोम-रोम में राम का नाम बसा हो, उन्हें आप राम से कैसे दूर करेंगे. ‘रामनामी समुदाय’ (Ramnami Community) की कहानी कुछ ऐसी है, जिन्हें जब राम के दर्शन करने से रोका गया तो उन्होंने अपने पूरे शरीर को राम नाम से गुदवा डाला. (Ramnami Community Ram Tattoos)
![](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2023/07/image-216-1.png)
इतिहास में ‘रामनामी समुदाय’ के लिए ये विद्रोह का एक तरीका था. इन्होंने न सिर्फ़ शरीर, बल्कि जीभ और होठों पर भी ‘राम नाम’ गुदवा लिया. आइए जानते हैं क्या है इनकी कहानी-
Ramnami Community Ram Tattoos
![](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2023/07/2_1452680709_725x725_5f3bbc164dfb5.jpg)
क्या हुआ ऐसा, जो शरीर पर गुदवाया राम नाम का टैटू
रामनामी समुदाय पूर्वी मध्य प्रदेश, झारखंड के कोयला क्षेत्र और छत्तीसगढ़ में फैला हुआ है. कहते हैं कि छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा के चारपारा गांव में एक दलित युवक परशुराम ने लगभग 1890 में रामनामी संप्रदाय स्थापित किया था. इस स्थापना को भक्ति आंदोलन से भी जोड़ा जाता है.
![](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2023/07/image-217-1024x680-1.png)
दरअसल, इस समुदाय को जाति व्यवस्था का दंश झेलना पड़ा था. करीब एक सदी पहले परशुराम ने राम के दर्शन के लिए मंदिर में जाने की कोशिश की. मगर पुजारियों ने उन्हें मंदिर में प्रवेश करने से रोक दिया गया.
![](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2023/07/image-224-1024x681-1.png)
इससे नाराज़ होकर उन्होंने अपने पूरे शरीर पर ही राम नाम का टैटू बनवा लिया. उनको देख कर समुदाय के दूसरों लोगों ने भी राम नाम का टैटू बनवाया. हालांकि, कुछ ऊंची जाति के लोगों ने उन्हें सताना शुरू कर दिया. इस पर साल 1912 में परशुराम और उनके अनुयायियों ने ब्रिटिश कोर्ट में अपील की. डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने परशुराम के अनुयायियों के हक में फ़ैसला दिया और कहा कि ‘राम’ नाम किसी विशेष समूह की संपत्ति नहीं हो सकता है. उस पर सबका हक है. इसके बाद तेज़ी से राम नाम शरीर पर गुदवाने वालों की संख्या बढ़ी.
![](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2023/07/image-218-1024x689-1.png)
एक इंटरव्यू में 75 साल की रामनामी समुदाय की पुनई बाई ने कहा, “मुझे पूरे शरीर पर टैटू बनाने में लगभग 18 साल लगे. महज़ दो महीने की उम्र में इसकी शुरुआत हुई थी. केरोसीन लैम्प से निकलने वाले काजल से बनी डाई का इस्तेमाल कर गोदना शुरू किया गया था.”
![](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2023/07/image-219-1.png)
टैटू बनवाते ही बदल जाती है जीवनशैली
‘गोदना’ (राम का नाम गुदवाने) के बाद ये लोग एक अलग प्रकार की जीवन-शैली अपना लेते हैं. रमरमिहा नाम से भी मशहूर इस समुदाय के लोग टैटू करवाने के बाद रोज़ाना राम नाम का सुमिरन करते हैं. ये लोग शराब अन्य नशा छोड़ देते हैं. इनके कपड़े भी राम नाम से सजे होते हैं.
![](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2023/07/image-220-1024x673-1.png)
यहां तक घर की दीवारों पर राम लिखा होता है और एक दूसरे को राम के नाम से ही पुकारते हैं. इनके घरों में काली स्याही से घर की दीवार के बाहरी और अंदरुनी हिस्से में ‘राम राम’ लिखा हुआ मिल जाएगा.
![](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2023/07/image-222-1024x628-1.png)
राम नाम की संख्या के आधार पर इन्हें अलग-अलग रामनामी माना जाता है. मसलन, माथे पर दो राम नाम गुदवाने वाले को शिरोमणी, पूरे माथे पर राम नाम लिखवाने वाले को सर्वांग रामनामी और देह के हर हिस्से में राम नाम लिखवाने वाले को नख शिखा राम नामी के नाम से जाना जाता है.
![](https://wp.hindi.scoopwhoop.com/wp-content/uploads/2023/07/image-223-1024x672-1.png)
हालांकि, युवा पीढ़ी अब धीरे-धीरे इस परंपरा से दूर जा रही है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 2017 तक लगभग 1,00,000 रामनामी छत्तीसगढ़ के एक दर्जन गांव में मौजूद थे. युवा अब पूरे शरीर पर टैटू नहीं करवा रहे. हां इतना ज़रूर है कि आज भी इस समुदाय में जन्म लेने वाले बच्चे को राम नाम का टैटू करवाना अनिवार्य है. ये बच्चे के दो साल की उम्र पूरी होने से पहले करना होता है.
ये भी पढ़ें: क्यों भोलेनाथ की जय-जयकार ‘हर हर महादेव’ के साथ होती है? जानो और बोलो बम-बम भोले!