देश को अंग्रेज़ों से आज़ाद करवाने में लाखों भारतीयों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी. इनमें से कुछ के नाम हम जानते हैं तो कुछ गुमनाम हैं. ऐसे ही एक शहीद के बारे में आज हम आपको बताएंगे. जिनके बारे में कहा जाता है कि वो देश के लिए जान देने वाले सबसे कम उम्र के शहीद थे.

इनका नाम है बाजी राउत(Baji Rout). इतिहासकारों के मुताबिक, वो स्वतंत्रता संग्राम में शहादत देने वाले सबसे कम उम्र के शहीद थे. चलिए आज आपको देश के इस वीर-बहादुर बालक की कहानी भी बतलाते हैं. 

नाविक परिवार में हुआ जन्म

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बाजी राउत का जन्म ओडिशा के ढेकनाल में 1926 एक नाविक परिवार में हुआ था. बचपन में ही उनके पिता का देहांत हो गया था. इनकी माता ने ही इन्हें पाल-पोस कर बड़ा किया. रोज़ी-रोटी के लिए वो आस-पास के घरों में काम करती या फिर खेतों में मज़दूरी करती थीं.

अंग्रेज़ों और राजा से थे लोग परेशान

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बेटा जब थोड़ा सयाना हुआ तो वो भी नाव चलाने लगा. उन दिनों प्रदेश के राजा के प्रति जनता में बहुत आक्रोश था. वो उन्हें ऐसे-वैसे फालतू के कर लगा कर परेशान करता था. शंकर प्रताप सिंहदेव नामक ये राजा आए दिन लोगों को परेशान करने चला आता था. उसी समय में एक क्रांतिकारी हुआ करते थे जिनका नाम वैष्‍णव चरण पटनायक था. प्यार से इन्हें लोग वीर वैष्णव कहते थे. इन्होंने एक ‘प्रजामंडल’ नाम का एक दल बना रखा था. अपने इस दल के ज़िरये वो आज़ादी और बगावत की लहर को दूर-दूर तक फैलाते थे.

वानर सेना का हिस्सा थे बाजी राउत

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इस दल में बच्चों को भी शामिल किया गया था. बच्चों की इस टुकड़ी को वानर सेना कहा जाता था. बाजी राउत भी इसका हिस्सा थे. वीर वैष्णव क्रांतिकारी होने के साथ ही रेलवे में बतौर पेंटर काम भी करते थे. वो पूरे प्रदेश में सफ़र कर आज़ादी के लिए लोगों को आगे आने के लिए प्रेरित करते थे. जब ढेकनाल में बगावत के सुर ऊंचे होने लगे तो राजा शंकर प्रताप सिंहदेव ने अंग्रेज़ों और दूसरे राजाओं के साथ मिलकर षड्यंत्र रचा.

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क्रांतिकारी की खोज में निकले ब्रिटिश सैनिक

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उन्होंने 250 ब्रिटिश सैनिकों की टुकड़ी क्रांतिकारी की खोज में लगा दी. वो ढेकनाल भी पहुंचे. यहां कुछ लोगों को गिरफ़्तार किया और उन्हें मारा भी. अंग्रेज़ों को कहीं से पता चला कि वीर वैष्णव भुवन गांव में छिपे हुए हैं. ब्रिटिश सैनिकों ने तुरंत दबिश दी लेकिन वीर वैष्णव वहां से भागने में कामयाब रहे. सैनिकों ने गांव वालों को ख़ूब टॉर्चर किया लेकिन किसी ने मुंह नहीं खोला. इसी बीच सैनिकों को पता चला कि वीर वैष्णव ब्राह्मणी नदी को पार भाग गए हैं. उनका पीछा करते हुए वो नीलकांतपुर घाट पर पहुंचे. 10 अक्टूबर, 1938  का दिन था और इस दिन रात को पहरा देने की बारी बाजी राउत की थी.

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बाजी राउत को लगी अंग्रेज़ों की गोली

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अंग्रेज़ी सैनिकों ने उनसे नदी पार करवाने को कहा, लेकिन बाजी राउत ने ऐसा करने से इंकार कर दिया. बार-बार आदेश देने के बाद जब बाजी राउत टस से मस नहीं हुए तो अंग्रेज़ों ने बंदूक के बट से उन्हें मारना शुरू कर दिया. वो घायल अवस्था में चिल्लाने लगे ताकी गांववालों को पता चल जाए. लेकिन जब तक गांव वाले आते अनहोनी हो चुकी थी. क्रूर अंग्रेज़ों ने उन पर गोली चला दी. वो वहीं शहीद हो गए. गोली की आवाज़ सुन तेज़ी से गांववाले आए. वो बहुत ही ग़ुस्से में थे उन्हें आता देख अंग्रेज़ बाजी राउत की नाव लेकर भाग खड़े हुए.  

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वीर वैष्णव उनके शव को ट्रेन से कटक ले गए और उनकी शवयात्रा बड़े ही धूम-धाम से निकाली. छोटी-सी उम्र में देश के लिए जान देने वाले इस वीर बालक की शवयात्रा सैंकड़ों लोग शामिल हुए थे. 

इस वीर बालक को हमारा शत-शत नमन.