नवाबों, अदब और तहज़ीब का शहर लखनऊ. इमामबाड़ा, कबाबों का शहर लखनऊ. लखनऊ के बारे में वो कहानी बेहद मशहूर है, पहले आप पहले आप करने के चक्कर में गाड़ी छूट जाने की. आज हम नवाबों या कबाबों की बात नहीं करेंगे. आज हम बात करेंगे लखनऊ के बेग़म हज़रत अली बाग़ (Begum Hazrat Ali Park), क़ैसरबाग़ (Qaisarbagh) के पास की दो जुड़वां टॉवर (Twin Towers) की.

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Live History India के एक लेख के अनुसार, बेग़म हज़रत अली बाग़ के पास स्थित ये दो टॉवर कोई नये ज़माने की इमारतें नहीं हैं. ये दोनों टॉवर 19वीं शताब्दी के 2 मक़बरे हैं. ये मक़बरे हैं, नवाब सादत अली ख़ान II (Nawab Saadat Ali Khan II ) और उनकी अज़ीज़ बेग़म ख़ुर्शीद ज़ादी (Khurshid Zadi) की. 

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सआदत अली ख़ान द्वितीय और बेग़म ख़ुर्शीद ज़ादी के ये मक़बरे अवधी वास्तुकला का शानदार उदाहरण हैं. शुजाउद्दौला के बेटे सआदत अली, अवध के 6ठे नवाब थे. 1775 में सआदत अली ने लखनऊ को अवध रियासत की राजधानी बनाया. पहले अवध की राजधानी फ़ैज़ाबाद (Faizabad) थी.  

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सआदत अली एक कुशल शासक था और उसने अवध रियासत का सारा कर्ज़ उतारने के साथ ही एक से एक इमारतें भी बनवाईं. जुलाई 1814 में 60 की उम्र में सआदत अली की मौत हो गई. उसके बेटे, ग़ाज़ीउद्दीन हैदर (Ghazi-ud-din Haidar) ने ख़ास बाज़ार (अब क़ैसर बाग़) स्थित अपने निवास स्थान पर सआदत अली की क़ब्र बनवाई. ग़ाज़ीउद्दीन अपना घर तुड़वा कर अपने पिता के लिये क़ब्र की ज़मीन दी.  

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ख़ुरशीद ज़ैदी की मौत, सआदत अली से पहले हुई थी और उसके क़ब्र का निर्माण कार्य पहले ही शुरू हो चुका था. ग़ाज़ीउद्दीन ने 1824 में ज़ैदी की क़ब्र पूरी करवाई. सआदत ख़ान का मक़बरा काले-सफ़ेद संगमरमर से बना है. ख़ुरशीद ज़ैदी का मक़बरा सआदत अली के मक़बरे से कुछ ही दूरी पर है. Lucknow Observer के लेख के अनुसार इन मक़बरों को ‘लाखौरी’ ईंटों से बनाया गया है और इसमें लोहे की एक छड़ तक का इस्तेमाल नहीं हुआ है.

लखनऊ घूमने आने वाले या लखनऊ के बाशिंदे इन जुड़वा मक़बरे की तरफ़ कम ही आते हैं. बाहर से आये सैलानी, बड़ा इमामबाड़ा और रूमी दरवाज़ा का ही दीदार करते हैं लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि ये दोनों मक़बरे बड़ा इमामबाड़ा से भी ज़्यादा ख़ूबसूरत हैं.