Story Of Yuyutsu: आपने महाभारत (Mahabharata) की कहानियां सुनी होंगी. हो सकता है टीवी सीरियल भी देखा हो. इसमें दिखाया गया था कि पांच पांडवों ने भगवान श्रीकृष्ण की मदद से सभी 100 कौरव भाइयों को युद्ध में हरा दिया था. हम हमेशा से ये सुनते भी आए हैं कि गांधारी (Gandhari) और धृतराष्ट्र (Dhritarashtra) के 100 पुत्र थे. मगर शायद ही आपको मालूम हो कि कौरव 100 नहीं बल्क़ि 101 भाई थे. (Kaurava Who Fought For Pandavas)

जी हां, कौरवों का एक भाई ऐसा भी था, जो युद्ध में नहीं मारा गया था. आइए जानते हैं कौन था वो आख़िरी कौरव पुत्र, जो बच गया था. (How Many Children Dhritarashtra Had?)

कैसे हुआ था कौरवों का जन्म?

कहा जाता है कि एक बार गांधारी की सेवा से खुश होकर ऋषि व्यास ने गांधारी को एक वरदान दिया था. ये आशीर्वाद 100 पुत्रों का था. गांधारी गर्भवती भी हुईं, मगर दो साल तक बच्चों को जन्म ना दे सकीं. बच्चे की जगह उनके शरीर से एक मांस का टुकड़ा निकला. उस वक़्त ऋषि व्यास ने इन मांस के टुकड़ों के 101 टुकड़े कर के घड़ों में रखवा दिया.

हालांकि, ये 101 वां टुकड़ा भी पुत्र के लिए नहीं, बल्क़ि पुत्री के लिए था. दरअसल, गांधारी को एक लड़की भी चाहिए थी. ऐसे में 101 घड़ों में से 100 तो कौरव भाई निकले, जबकि एक घड़े से ‘दुशाला’ ने जन्म लिया, जो 100 कौरवों की अकेली बहन थी.

फिर 101 वां भाई कैसे पैदा हुआ?

प्रचलित कहानियों के आधार पर कहा जाता है कि 101 वां पुत्र गांधारी का नहीं, बल्कि़ एक दासी का था. कहते हैं कि जिस वक़्त गांधारी गर्भवती थीं, उस दौरान धृतराष्ट्र के एक दासी से संबंध थे. उसी दासी के गर्भ से एक पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम ‘युतुत्सु’ था.

Story Of Yuyutsu: महाभारत के युद्ध में रहा जीवित

युयुत्सु एक धर्मात्मा था, इसलिए दुर्योधन की ग़लत कामों को बिल्कुल पसन्द नहीं करता था और उनका विरोध भी करता था. युयुत्सु ने महाभारत युद्ध रोकने का अपने स्तर पर बहुत प्रयास किया था लेकिन उसकी नहीं चलती थी. जब युद्ध प्रारंभ हुआ तो पहले तो वो कौरवों की ओर ही था. मगर युधिष्ठिर के समझाने पर वो पांडवों की ओर से लड़ा. युयुत्सु ने महाभारत के युद्ध में अधर्म की जगह धर्म का साथ दिया.

युधिष्ठिर ने एक विशेष रणनीति के तहत युयुत्सु को सीधे युद्ध के मैदान में नहीं उतारा, बल्कि उसे योद्धाओं के लिए हथियारों और रसद की आपूर्ति व्यवस्था का प्रबंध देखने के लिए नियुक्त किया. युयुत्सु ने अपने इस दायित्व को बहुत ज़िम्मेदारी के साथ निभाया. ऐसे में जब पांडव महाभारत का युद्ध जीते तो युयुत्सु ही एकलौता धृतराष्ट्र का पुत्र जीवित बचा, जिसने बाद में उन्हें मुखाग्नि भी दी.

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