मंहगाई के इस दौर में 5 रुपये में क्या मिलता है? अगर अगली बार आप से कोई ये बात पूछे, तो जवाब में Cello Pen कहियेगा. इस ज़माने में आपको 5 रुपये कुछ मिले न मिले, लेकिन Cello Pen ज़रूर मिल जायेगा. हिंदुस्तान की आधी से ज़्यादा आबादी ऐसी होगी, जो आज भी अपनी जेब सेलो पेन (Cello Pen) लेकर घूमती है.
आज के दौर में लोग सिर्फ़ Cello के पेन तक सीमित नहीं रह गये हैं, बल्कि घरों में उसका प्लास्टिक का सामान भी यूज़ होता है. जैसे कैसरोल, टिफ़िन, बोतल, ग्लास आदि. सदियों से लोग Cello ब्रांड पर आंख मूंद कर विश्वास करते आये हैं और आगे भी करते रहेंगे. हांलाकि, आज Cello ब्रांड के बारे में तो सब जानते हैं, लेकिन उसकी सफ़लता की कहानी किसी-किसी को ही पता है.
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चूड़ियों से लेकर कैसरोल तक का सफ़र
इसके बाद कंपनी के ओनर घीसूलाल राठौड़ प्लास्टिक के व्यापार में आये. घीसूलाल राठौड़ ने देखा कि उस समय स्टील और पीतल के बर्तन काफ़ी भारी और ज़्यादा दाम वाले होते थे. इसलिये उन्होंने सोचा क्यों न प्लास्टिक के बर्तन बना कर लोगों तक पहुंचाया जाये. आम जनता के लिये प्लास्टिक का सामान सस्ता और हल्का होता था.
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अब सेलो जूते-चप्पल बनाने के साथ-साथ अन्य कंपनीज़ के लिये प्लास्टिक का सामान भी बना रहा था. 1980 के समय की बात है, जब मार्केट में सोले प्रोडक्ट्स का व्यापार तेज़ी से बढ़ने लगा. कहा जाता है कि घीसूलाल राठौड़ को उनकी USA यात्रा के दौरान कैसरोल के बारे में पता चला. विदेशी लोग ऐसे ही छोटे-छोटे बर्तनों में खाना रखा करते थे. बस घीसूलाल राठौड़ को लगा कि ये भारतीयों के लिये बेस्ट आइटम हो सकता है और हुआ भी वही. 1980 में उन्होंने सेलो कैसरोल को लॉन्च किया और मार्केट में लोगों को ख़ूब प्यार पाया.
इसके बाद मार्केट में छात्रों की ज़रूरतों को देखते हुए सेलो पेन लॉन्च किये गये और वो भी सफ़ल हुए. आज के समय और लोगों की ज़रूरतों को देखते हुए कंपनी नये-नये प्रोडक्ट्स निकाल रही है. सेलो को भारतीय बाज़ार में आये हुए लगभग 60 साल हो गये और आज भी हर घर में आपको इसका कोई न कोई प्रोडक्ट ज़रूर मिल जायेगा.