भारत का वाराणसी शहर अपने सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व के लिए दुनियाभर में मशहूर है. देशभर से हर साल लाखों लोग वाराणसी के गंगा घाट के दर्शन करने आते हैं. वाराणसी में वैसे तो सैकड़ों मंदिर हैं, लेकिन सभी मंदिरों के बीच प्राचीन रत्नेश्वर महादेव मंदिर (Ratneshwar Mahadev Temple) श्रद्धालुओं के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है. ये मंदिर बनारस के ‘मणिकर्णिका घाट’ के पास है. इस प्राचीन मंदिर की अपनी एक अलग ही धार्मिक विशेषता है.

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वाराणसी के ‘मणिकर्णिका घाट’ पर स्थित ‘रत्नेश्वर महादेव मंदिर’ कलात्मक रूप से बेहद आलीशान है. अगर आप इसकी बनावट को ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे कि इस मंदिर में अद्भुत शिल्प कारीगरी की गई है. लेकिन श्रद्धालुओं को ‘रत्नेश्वर महादेव मंदिर’ की एक बात जो हैरान करती है वो है इसका प्राचीन रहस्य. वैज्ञानिक भी इसके इस रहस्य का पता नहीं लगा पाये हैं.

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रत्नेश्वर महादेव मंदिर का रहस्य! 

ये मंदिर अपने एक अजीबो-ग़रीब रहस्य के लिए भी जाना जाता है. दरअसल, पहले इस मंदिर के छज्जे की ऊंचाई ज़मीन से 7 से 8 फ़ीट हुआ करती थी, जो अब केवल 6 फ़ीट रह गई है. ये मंदिर सैकड़ों सालों से 9 डिग्री पर झुका हुआ है. समय के साथ इसका झुकाव बढ़ता जा रहा है. इससे साफ़ होता है कि मंदिर का झुकाव 9 डिग्री से बढ़ रहा है. ऐसा क्यों हो रहा है ये वैज्ञानिकों को भी नहीं मालूम.

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6 से 8 महीने पानी में रहता है डूबा

दरअसल, ये मंदिर ‘मणिकर्णिका घाट’ के एकदम नीचे है, जिसकी वजह से गंगा का पानी बढ़ने पर ये मंदिर 6 से 8 महीने तक पानी में डूबा रहता है. कभी-कभी तो पानी शिखर से ऊपर तक भरा रहता है. इस स्थिति में मंदिर में केवल 3-4 महीने ही पूजा हो पाती है. 6 से 8 महीने पानी में रहने के बावजूद भी इस मंदिर को कोई नुकसान नहीं होता.

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मंदिर की उम्र को लेकर भी हैं मतभेद

‘रत्नेश्वर महादेव मंदिर’ कब बना था इसकी सही-सही जानकारी इतिहास में भी नहीं मौजूद. मणिकर्णिका घाट के आसपास रहने वाले राजपुरोहित के मुताबिक़, ये मंदिर 15 शताब्दी में बनाया गया था. ‘भारतीय पुरातत्व विभाग’ के मुताबिक़, इस मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में हुआ था, जबकि रेवेन्यू रिकॉर्ड के मुताबिक़, सन 1857 में ‘अमेठी के राज परिवार’ ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था.

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इस मंदिर को लेकर मशहूर हैं कई पौराणिक कहानियां

अहिल्याबाई होल्कर का श्राप 

अहिल्याबाई होल्कर ने अपने शासनकाल में बनारस के आसपास कई सारे मंदिरों का निर्माण करवाया था. इस दौरान ‘अहिल्याबाई’ की एक दासी हुआ करती थी, जिसका नाम ‘रत्नाबाई’ था. ‘रत्नाबाई’ की ‘मणिकर्णिका घाट’ के आसपस एक ‘शिव मंदिर’ बनवाने की इच्छा थी. ऐसे में उन्होंने अपने पैसे लगाकर और थोड़ी बहुत ‘अहिल्याबाई’ की मदद से मंदिर बनवा लिया. जब मंदिर के नामकरण का समय आया तो ‘रत्नाबाई’ इसे अपना नाम देना चाहती थी, लेकिन ‘अहिल्याबाई’ ने इसका विरोध किया. रानी के विरुद्ध जाकर ‘रत्नाबाई’ ने मंदिर का नाम ‘रत्नेश्वर महादेव’ रख दिया. इस बात से नाराज़ ‘रानी अहिल्याबाई’ ने श्राप दे दिया, जिससे मंदिर टेढ़ा हो गया.

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क्रोधित संत ने दिया था श्राप

18वीं शताब्दी की बात है. इस दौरान एक संत ने बनारस के राजा से इस मंदिर की देखरेख करने की ज़िम्मेदारी मांगी. मगर राजा ने संत को अपमानित कर मंदिर की देखरेख की ज़िम्मेदारी देने से मना कर दिया. राजा की इस बात से क्रोधित होकर संत ने ‘श्राप’ दिया कि ये मंदिर कभी भी पूजा के लायक नहीं रहेगा. कहा जाता है कि इसीलिए ये मंदिर 6 से 8 महीने पानी में डूबा रहता है. हालांकि, इन कहानियों में कितनी सच्चाई है ये कोई नहीं जनता.

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अगर आप भी वाराणसी जाकर ‘रत्नेश्वर महादेव मंदिर’ के दर्शन करना कहते हैं तो आपको बनारस के किसी भी कोने से सीधे ‘मणिकर्णिका घाट’ के लिए ऑटो, टैक्सी आसानी से मिल जाएगी.

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