भारतीय रेलवे की शुरुआत को क़रीब 170 साल हो गए हैं. 16 अप्रैल 1853 को देश की पहली यात्री ट्रेन शुरू हुई थी. मगर आपको जानकर हैरानी होगी कि क़रीब 56 साल तक ट्रेनों में टॉयलेट की सुविधा नहीं थी. साल 1919 तक ट्रेनें बिना टॉयलेट के ही धड़ाधड़ पटरियों पर दौड़ती रहीं. और शायद आगे भी इसी तरह चलता रहता, अगर एक भारतीय का ग़ज़ब अंग्रेज़ी में लिखा लेटर अंग्रेज़ों को न मिलता.

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ये ऐसा लेटर था, जिसे पढ़कर अंग्रेज़ों को भी अपनी अंग्रेज़ी पर शक होने लगा. मतलब कल्पना कीजिए कि कोई आपको अंग्रेज़ी में ये समझाए कि ‘कटहल से उसका पेट बहुत ज़्यादा सूज रहा था… वो एक हाथ में लोटा और दूसरे में धोती पकड़ कर भाग रहा था… अचानक वो गिरता है और उसकी सारी शॉकिंग आदमी-औरतों के आगे एक्सपोज़ हो जाती है’. ये सब पढ़कर आपको कैसा फ़ील होगा? 

जी हां, ओखिल चंद्र सेन नामक एक यात्री ने अंग्रेज़ों को अपने दर्द से ऐसे ही वाकिफ़ कराया था. उन्होंने 2 जुलाई, 1909 को साहिबगंज रेल डिवीज़न पश्चिम बंगाल को एक पत्र लिखकर भारतीय रेलवे में शौचालय स्थापित करने का अनुरोध किया. 

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अगर हम इस पत्र के शब्द के बजाय भाव समझे, तो इसमें ओखिल चंद्र सेन कहते हैं- 

डियर सर, मैं यात्री ट्रेन से अहमदपुर स्टेशन आया और मेरा पेट दर्द की वजह से सूज रहा था. मैं शौच करने के लिए किनारे बैठ गया. उतनी ही देर में गार्ड ने सीटी बजा दी और ट्रेन चल पड़ी. मैं एक हाथ में लोटा और दूसरी में धोती पकड़कर दौड़ा और प्लेटफ़ॉर्म पर गिर पड़ा. मेरी धोती खुल गई और मुझे वहां मौजूद सभी महिला-पुरुषों के सामने शर्मिन्दा होना पड़ा. मेरी ट्रेन छूट गई और मैं अहमदपुर स्टेशन पर ही रह गया.

आगे ओखिल बाबू गार्ड पर अपना ग़ुस्सा ज़ाहिर करते हुए कहते हैं कि ये कितनी ख़राब बात है कि शौच करने गए एक यात्री के लिए ट्रेन का गार्ड कुछ मिनट रूक भी नहीं सकता. मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि उस गार्ड पर भारी जुर्माना लगाया जाए. वरना मैं इस बारे में अख़बारों में बता दूंगा. आपका विश्वसनीय सेवक. ओखिल चंद्र सेन.

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ओखिल चंद्र सेन के इस दर्दभरे लेटर को पढ़ने के बाद ही रेलवे अधिकारियों ने ट्रेनों में टॉयलेट बनवाए. तय हुआ कि उस वक़्त 50 मील से अधिक चलने वाली ट्रेनों के सभी लोअर क्लास डिब्बों में शौचायल की व्यवस्था हो. 

शायद इसीलिए कहते हैं कि शब्दों में क्या रखा है गुरू, भावनाओं को समझो…