आज भले भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे को फूटी आंख न सुहाते हों, लेकिन सच्चाई तो ये है कि ये दोनों कभी एक थे. भारत और पाकिस्तान दोनों को ही अंग्रेजों से एकसाथ आज़ादी मिली थी. दोनों मुल्कों के लोगों ने आज़ादी की लड़ाई भी एकसाथ लड़ी थी. आज़ादी देने के साथ ही अंग्रेज़ों ने हमें एक से दो कर दिया. लोगों को अपना मुल्क चुनकर इधर से उधर जाना पड़ा.

लेकिन, हुक़ूमतों की लड़ाई से दिलों की दूरियां भला बढ़ती हैं क्या? तभी तो कभी दोनों मुल्कों के बीच कोई प्रेम कहानी पनपती है और शादी तक पहुंच जाती है, तो कभी एक मासूम बच्चे को इलाज के लिए सारी नफ़रत भूलकर एक मुल्क़ से दूसरे मुल्क़ लाया जाता है.

बॉलीवुड भी इन बातों से अछूता नहीं है. कई बार हमारी फ़िल्मों में दोनों देशों के बीच पनपने वाली प्रेम कहानी को दिखाया गया है. कई फ़िल्में दोनों देशों के युद्ध पर बनीं हैं, जो हमें पड़ोसी मुल्क़ को दुश्मन देश मानने के लिए प्रेरित करती हैं. वहीं कुछ ऐसी फ़िल्में भी हैं, जो बताती हैं कि दिल की धड़कनें तो कोई सरहद नहीं जानती हैं. चलिये, ऐसी ही कुछ फ़िल्मों के बारे में बताते हैं, जो दोनों हुक्मरानों के बयानों से परे आम लोगों की भावनाएं दिखाती हैं.

1. गदर – एक प्रेम कथा

 इस फ़िल्म में एक ट्रक ड्राइवर तारा सिंह और एक मुस्लिम लड़की सकीना की प्रेम कहानी है. बंटवारे के वक़्त सकीना का परिवार पाकिस्तान चला जाता है, लेकिन सकीना यहीं छूट जाती है. तब उसकी मदद तारा सिंह करता है और दोनों में प्यार हो जाता है. दोनों शादी भी कर लेते हैं. लेकिन एक दिन जब सकीना अपने परिवार वालों से मिलने पाकिस्तान जाती है तो इनकी मुहब्ब्त दोनों मुल्कों की नफ़रत के जाल में फंस जाती है. सकीना को पाकिस्तान में ही रहने के लिए मजबूर किया जाता है, लेकिन तारा सिंह दुनिया से लड़कर अपनी पत्नी को वापस ले आता है. ये फ़िल्म दूसरी सबसे ज़्यादा देखी जाने वाली हिंदी फ़िल्म है. फ़िल्म ने सिनेमाघरों से करीब 78.6 करोड़ रुपये की कमाई की थी.

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2. वीर-ज़ारा

2004 में आई इस फ़िल्म की कहानी ने सबको रुला दिया था. प्यार में सरहद तो क्या कोई अपनी पूरी ज़िंदगी भी दांव पर लगा सकता है, इस बात की बेहतरीन मिसाल है वीर-ज़ारा की कहानी. भारत से वीर प्रताप अपनी ज़ारा को लेने जाता है जहां उसे एक जासूस होने के झूठे आरोप में फंसा लिया जाता है. उससे ये कहकर कुबूलनामा लिया जाता है कि इसके बदले में ज़ारा को वो लोग हमेशा खुश रखेंगे. ज़ारा की खुशी के लिए वीर ये कुबूल कर लेता है और 22 सालों तक पाकिस्तान की जेल में रहता है. उधर, वीर के ज़िंदा होने से अंजान ज़ारा भारत आ जाती है और वीर के गांव में लड़कियों का एक स्कूल चलाती है, जो कभी वीर का सपना था. 22 साल बाद इन दोनों को वीर का केस लड़ रही वकील सामिया मिलवाती है. फ़िल्म का ये सीन बेहद इमोशनल होता है और दर्शकों की धड़कनें थाम लेता है.

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3. रिफ़्यूजी

ये फ़िल्म भी एक पाकिस्तानी लड़की और एक भारतीय लड़के की प्रेम कहानी है. फ़िल्म में रिफ़्यूजी (अभिषेक बच्चन) एक पाकिस्तानी परिवार को बॉर्डर पार कराने की ज़िम्मेदारी लेता है. वो उन्हें बॉर्डर के पार भेज तो देता है, लेकिन इसी बीच उस परिवार की बेटी नाज़ और रिफ़्यूजी को प्यार हो जाता है. रिफ़्यूजी नाज़ से मिलने के लिए एक बार फिर से बॉर्डर पार करता है. नाज़ उसे अपने साथ ले चलने के लिए कहती है लेकिन बॉर्डर पार करते वक़्त दोनों पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा पकड़े जाते हैं. आगे की कहानी इसी प्यार और नफ़रत के बीच जूझते दो प्रेमियों के हालातों को दिखाती है. ये फ़िल्म अभिषेक बच्चन और करीना कपूर, दोनों की ही डेब्यू फ़िल्म थी.

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4. एक था टाइगर

वैसे तो RAW और ISI एक-दूसरे के दुश्मन हैं. RAW भारत की इंटेलिजेंस एजेंसी है और ISI पाकिस्तान की. लेकिन क्या हो अगर इनके ही दो कर्मचारियों को एक-दूसरे से प्यार हो जाए? इस फ़िल्म में इसी चीज़ को मज़ेदार तरीके से दिखाया गया है. इसमें सलमान खान यानि, टाइगर एक RAW एजेंट हैं. उन्हें एक प्रोफ़ेसर पर नज़र रखने के लिए डबलिन भेजा जाता है जहां उसे प्रोफ़ेसर की ही केयरटेकर ज़ोया (कटरीना कैफ़) से इश्क़ हो जाता है. ज़ोया एक ISI एजेंट है. दोनों को एक-दूसरे के पेशे के बारे में बाद में पता चलता है. फिर क्या, मुहब्बत के आगे नफ़रत कभी जीती है भला? दोनों न सिर्फ़ अपना पेशा छोड़ देते हैं, बल्कि अपने मुल्क़ को भी छोड़कर दुनिया से गुमनाम होकर एकसाथ रहने लगते हैं.

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5. टोटल सियापा

नीरज पांडे की फ़िल्म टोटल सियापा 2014 में रिलीज़ हुई थी. ये एक कॉमेडी फ़िल्म ज़रूर है लेकिन इसकी भी वही कहानी है. लंदन में एक पाकिस्तानी लड़के को एक भारतीय लड़की से प्यार हो जाता है. वो लड़की के पंजाबी परिवार को इंप्रेस करने की कोशिश करता है. लेकिन उसके पाकिस्तानी होने के कारण सब सियापा हो जाता है.

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6. बजरंगी भाईजान

2015 में आई इस फ़िल्म की चर्चा आज भी सलमान खान की सबसे कामयाब फ़िल्मों के चलते होती रहती है. इस फ़िल्म की कहानी बखूबी साबित करती है कि दोनों देशों में दुश्मनी बस हुक़ूमतों की है. तभी तो भारत का पवन चतुर्वेदी बिना कुछ सोचे समझे पाकिस्तान की खोई हुई मूक बच्ची मुन्नी को उसके घर पहुंचाने निकल पड़ता है. उधर पाकिस्तान में भी जब एक पत्रकार चांद नवाब को जब पवन की नेकदिली का पता चलता है, तो उसे वहां के सुरक्षा अधिकारियों से बचाकर, वापस भारत भेजने में कोई कसर नहीं छोड़ता. अंत में बॉर्डर पर एक तरफ़ से पवन का स्वागत करने के लिए और एक तरफ़ से उसे विदा करने के लिए बड़ी संख्या में दोनों ओर की आवाम इकट्ठा हो जाती है.

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7. पीके

इस फ़िल्म में भी अनुष्का शर्मा यानि जग्गु को एक पाकिस्तानी लड़के सरफ़राज़ से प्यार हो जाता है. दोनों को ही एक-दूसरे के दुश्मन मुल्क़ से होने से कोई फ़र्क नहीं पड़ता. फ़िल्म के एक गाने की लाइन भी यही है कि ‘बिन पूछे मेरा नाम और पता, चल दो न साथ मेरे’. इधर जग्गू के घर वालों को सरफ़राज़ पर इसलिए भरोसा नहीं है क्योंकि वो पाकिस्तानी है. उन्हें लगता है कि ये इंसान उनकी बेटी को धोखा दे देगा. लेकिन, फ़िल्म के अंत में ये सब बातें बेबुनियाद निकलती हैं और साबित होता है कि इश्क़ में सरहदों के कोई मायने नहीं होते.

Storysoviets

बेशक देशभक्ति भरी फ़िल्में लोगों में जोश पैदा करती हैं लेकिन इसी जॉनर की फ़िल्मों में जो प्यार दिखाया जाता है उसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. इन फ़िल्मों से ये भी साफ़ होता है कि कैसे दोनों देशों के आम लोगों के बीच एक-दूसरे के लिए कोई बैर नहीं है और दोनों ही देश के लोग महज़ राजनीति और सरकार की दुश्मनी के मारे हैं.