बॉलीवुड फ़िल्में टाइम पास का सबसे सही ज़रिया है. लेकिन कई बार कई फिल्मों में ऐसे ऐसे करैक्टर आ जाते हैं जो फ़िल्म का मज़ा किरकिरा कर देते हैं. एक तरफ़ जहां कई किरदारों को बड़े ध्यान से लिखा जाता है वहीं कुछ को बस फ़िल्म में रख दिया है. इसके चलते कई किरदार Irritating हो जाते हैं.
1. सुशीला : मैं प्रेम की दीवानी हूं
वैसे तो इस फ़िल्म में सबने ख़ूब एक्टिंग की है मगर वो एक्टिंग इतनी ज़्यादा हो गयी है कि वो कब ‘ओवर एक्टिंग’ बन गयी शायद किसी को पता ही नहीं चला.

2. डॉ. घुंघरू : वेलकम
फ़िल्म वेलकम ने हमें क्या नहीं दिया! उदय शेट्टी जैसा ‘भाई’ दिया, मजनू जैसा आर्टिस्ट दिया, सैकड़ों मीम्स दिए लेकिन सारे बने-बनाये काम पर परेश रावल का कैरेक्टर डॉ. घुंघरू पानी फ़ेर देता है. डॉ. घुंघरू के स्क्रीन में आते ही कुछ ना कुछ गड़बड़ होना तय रहता है और घुंघरू अपने अजीब ऐटिट्यूड से और ज़्यादा दिमाग़ ख़राब करता है.

3. आकाश मल्होत्रा : दिल चाहता है
हां, मैंने कह दिया, था दिल चाहता है का आकाश(आमिर ख़ान) Annoying. आकाश किसी और की नहीं सुनता, किसी लड़की को ‘लाइन मारने’ के लिए कॉलेज की पार्टी तक को ख़राब कर देता है जबकि सामने से लड़की साफ़ कह देती है कि वो इंटरस्टेड नहीं है. आकाश का दोस्त सिड (अक्षय खन्ना)जब बताता है कि उसे बड़ी उम्र की महिला से प्यार हो गया है तो ना सिर्फ़ आकाश उसका मज़ाक उड़ाता है बल्कि उसके प्यार का भी भला बुरा कहता है.

4. राज कपूर : रब ने बना दी जोड़ी
वैसे तो रब ने बना दी जोड़ी बे-सर पैर की फ़िल्म थी. मतलब ऐसा कैसे हो सकता है कोई इंसान मूंछे लगा ले और हटा ले तो इतना अलग हो जायेगा कि उसकी पत्नी भी उसे पहचान ना पाए.

5. स्वीटू : कल हो ना हो
फ़िल्म में नैना(प्रीति जिंटा) की पड़ोसी और बेस्ट फ्रेंड स्वीटू(डेलनाज़ ईरानी) बेवजह ही ख़ुश रहती है. वैसे ख़ुश रहना अच्छा है पर कोई बात तो होनी चाहिए ना! और लॉज़िक की बात करें तो हर सवाल या बात के जवाब में स्वीटू के पास कोई फ़ालतू सा ही कारण होता है.

6. सोनाली कक्कड़ (हिंदी टीचर) : मैं हूं ना
देशभक्ति और कारण जौहर की फ़िल्मों के जैसा कॉलेज के कॉकटेल से बनी इस फ़िल्म में कमाल का एक्शन(मज़ाक है) था. मगर इस फ़िल्म में कुछ(बहुत) सी चीज़ें थीं जो ‘कुछ भी’ था जैसे फैंसी से कॉलेज की हिंदी टीचर. कोई कितना भी कम अंग्रेज़ी जानता हो, Prom Night को Permo Night नहीं बोलेगा. हिन्दी का घोर अपमान किया गया ह्यूमर(अगर यही करने को कोशिश थी तो) के नाम पर.

7. जीतू : हंगामा
यार कितनी सही फ़िल्म थी(है) हंगामा. कितनी भी बार देख लो बोर नहीं होने वाले लेकिन क्या चिपकू आदमी था यार जीतू(अक्षय खन्ना). ठीक है, तुम बॉस हो, अपनी कर्मचारी को(जो लड़की है) घर छोड़ने आये हो तो गेट में छोड़ के जाओ ना!

8. सलमान ख़ान (लगभग) हर फ़िल्म में:
इससे पहले भाई के फ़ैन लोग नाराज़ हों बता दूं की लगभग इसीलिए लिखा गया है. वैसे भाई की कोई ‘अच्छी’ फ़िल्म ज़हन में आये तो बता के जाना. हम भी तो जानें की सच में ऐसा कुछ है क्या!

9. माया : बॉडीगार्ड
हेज़ल कीच ने माया की भूमिका निभाई थी जो दिव्या(करीना कपूर ख़ान) की सबसे अच्छी दोस्त थीं. माया अपनी सबसे अच्छी दोस्त को धोखा दे कर लवली (सलमान खान) के साथ चली जाती है. अंत में सब लोग यही कहते हैं, “कोई सेन्स है इस बात का?” लेकिन फ़िल्म में भाई थे तो स्क्रिप्ट की अपेक्षा करना भी सही नहीं है.

10. बाबू : सोनू के टीटू की स्वीटी
और इसी के साथ लिस्ट में एंट्री होती है कार्तिक आर्यन की फ़िल्म की. एक ही तरह के एक्सप्रेसन और स्क्रिप्ट से अपना काम चलाने वाले कार्तिक आर्यन किसी फ़िल्म में हों और उनसे ज़्यादा कोई इरिटेट कर सकता है इस बात कर यकीन करना थोड़ा मुश्किल है मगर हां ऐसा हुआ है.
