चुनाव के मौसम में हर बात राजनीति की ओर बढ़ जाती है. इससे माहौल में गंभीरता सी आ जाती है. इससे अच्छा फ़िल्मों की बात की जाए, मगर अफ़सोस यहां भी राजनीति घुस गई.  

चुनाव के माहौल में वाद-विवाद से ब्रेक लेकर इन राजनैतिक फिल्मों को देखिए, जिनका प्लॉट राजनीति के इर्द-गिर्द बुना गया है.  

1. किस्सा कुर्सी का

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1977 में रिलीज़ हुई इस फ़िल्म को भारत सरकार को बैन कर दिया गया. माना जाता है कि इसकी कहानी में इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी के ऊपर कटाक्ष किया गया था. इसे आपातकाल के दौरान बैन कर दिया गया था. इसे अमृत नहाटा ने निर्देशित किया था और शबाना आज़मी मुख्य भूमिका में थीं.  

2. गुलाल

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छात्र राजनीति के ऊपर केंद्रित एक बेहतरीन फ़िल्म. इसके संवाद और संगीत को ख़ासा पसंद किया गया था. ‘आरंभ है प्रचंड’ आज भी लोगों को ज़ुबानी याद है. 2009 में रिलीज़ हुई ये फ़िल्म फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड्स में ‘बेस्ट स्टोरी’ के लिए नॉमिनेट हुई थी.  

3. राजनीति

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लंबी चौड़ी स्टार कास्ट के साथ रिलीज़ हुई यह फ़िल्म एक राजनैतिक परिवार के भीतर की कहानी दिखाती है. कुछ लोग इसके प्लॉट को ‘महभारत’ से जोड़ कर देखते हैं. 60 करोड़ की बजट से तैयार हुई ये फ़िल्म 135 करोड़ कमा कर सुपरहीट घोषित हुई थी.  

4. आंधी

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1975 में रिलीज़ हुई ‘आंधी’ का एक गाना बहुत चर्चित हुआ था, ‘सलाम कीजिए, आली जनाब आए हैं, ये पांच सालों का देने हिसाब आए हैं’. इसके निर्देशक और स्क्रीनप्ले लिखने वोले गुलज़ार ने माना था कि फ़िल्म बनाने की प्रक्रिया के दौरान उनके दिमाग़ में इंदिरा गांधी का किरदार चल रहा था, ये फ़िल्म भी बैन हुई थी.  

5. पीपली लाईव

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कहने को तो पीपली लाईव में भारतीय न्यूज़ चैनलों को लताड़ा गया है. लेकिन फ़िल्म का हिस्सा देश के नेताओं के ऊपर भी केंद्रित है कि कैसे वो एक घटना को अपने हिसाब से भुनाने के लिए होड़ में रग जाते हैं. कम बजट की इस फ़िल्म को अंतर्राष्ट्रीय फ़ेस्टिवलों में भी सराहा गया था, इसका निर्देशन अनुषा रिज़वी ने किया है.  

6. रंग दे बसंती

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रंग दे बसंती नए ज़माने की देशभक्ति वाली फ़िल्म थी. फ़िल्म के निर्देश्क राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने फ़िल्म के लिए 7 साल शोध किया था. यही कहा जाएगा कि फ़िल्म पर किया गया ये इन्वेस्टमेंट सफ़ल रहा. देश के साथ-साथ विदेशों में भी इसकी ख़ूब तारीफ़ हुई थी. फ़िल्म के साथ कई विवाद जुड़ गए थे, जिसने इसकी पब्लिसिटी में योगदान दिया.  

7. नायक

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इस फ़िल्म के बाद से कोई भी राजनैतिक पटल पर अचानक उभरता है या कुछ क्रांतिकारी काम करता है, तो उसकी पहली तुलना नायक से ही की जाती है. ‘एक दिन का मुख्यमंत्री’ सबको पसंद आया था.  

8. New Delhi Times

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एक पत्रकार, जो देश की राजनीति में चल रहे भ्रष्टाचार को एक्स्पोज़ करता है. इसके लेखक गुलज़ार थे, साल 1986 में रिलीज़ हुई इस फ़िल्म ने कई राष्ट्रीय पुरस्कार जीते थे, उनमें से एक था बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड, जो कि शशि कपूर को मिला था.  

9. हू तू तू

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गुलज़ार द्वारा लिखी गई और निर्देशित इस फ़िल्म के बारे में बहुत कम लोगों को पता है. तब्बू, सुनील शेट्टी और नाना पाटेकर मुख्य भूमिका में थे. दो वर्गों के संघर्ष पर बनी इस फ़िल्म को उसके दमदार अभिनय के लिए जाना जाता है. तब्बू को इस फ़िल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था.  

10. सत्याग्रह

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राजनैतिक परिस्थिति को देखते हुए लगा था कि यह फ़िल्म दिल्ली में हुए अन्ना हज़ारे की भूख हड़ताल से प्रेरित होगी, लेकिन ऐसा था नहीं. एक आदर्शवादी इंसान जब बिना अपने आदर्शों से समझौता किए सिस्टम से भिड़ता है, तब क्या होता है, इसकी कहानी बताती है ‘सत्याग्रह’. इसकी स्टार कास्ट भी बड़ी थी और इसके निर्देशक प्रकाश झा थे.