ज़िंदगी में पहले ही मुसीबतें कम नही थीं. रोज़ी-रोटी की ख़ातिर वैसे भी पूरा दिन ऑफ़िस वालों के नाम हो रखा है. कभी जो छुट्टी पाते थे तो दोस्तों के साथ घूम-फिर कर दिल बहला लिया करते थे. लेकिन कोरोना महामारी ने उसकी भी वाट लगा दी. आलम ये है कि लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग की संगत में हर शख़्स अकेला महसूस कर रहा है.   

चिंता, बेचैनी और तनाव तो जैसे रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा ही लगने लगे हैं. ऐसे में थोड़ी सी ख़ुशी और तनाव मुक्त होने के लिए हिंदी फ़िल्में अच्छा ज़रिया बन सकती हैं. वो फ़िल्में जो कॉमेडी से भरपूर हैं और इनमें आपको फ़ील गुड करवाने का ढेर सारा कंटेंट भी है. आज यहां हम ऐसी ही 10 फ़िल्मों का ज़िक्र कर रहे हैं, जिन्हें बिना दिमाग़ ख़र्च किए आप देख सकते हैं और आपका मूड मस्त फ़्रेश भी हो जाएगा.   

1-गुड न्यूज़  

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अक्षय कुमार, क़रीना कपूर ख़ान, दिलजीत दोसांझ और कियारा आडवानी इस फ़िल्म की मेन कास्ट है. फ़िल्म बेहद रिफ्रेशिंग और पॉजिटिव है. फ़िल्म की कहानी तो दोनों कपल के आर्टिफिशियल तरीके से बच्चे पैदा करने की है, लेकिन इस प्रोसेस में स्पर्म की अदला-बदली बेहतरीन सिचुएशनल कॉमेडी पैदा करती है. फ़िल्म में जो ‘गूफ़ अप’ होते हैं, उन्हें कॉमिक और कहीं-कहीं इमोशनल ढंग से बड़ी ही ख़ूबसूरती के साथ दिखाया गया है. साथ ही फ़िल्म में सोशल मैसेज भी है कि एक महिला अपनी प्रेग्नेंसी में काम करना चाहती है या नहीं, ये ख़ुद उसका फ़ैसला है. हालांकि, ये मैसेज भी कोई बहुत ज्ञानी टाइप मूड में देने के बजाय हल्के-फुल्के तरीके से ऑडियंस तक पहुंचाया गया है.    

2- क़रीब-क़रीब सिंगल  

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मूवी देखने के लिए ये वजह ही काफ़ी होगी कि इस फ़िल्म में दिवंगत अभिनेता इरफ़ान ख़ान हैं. कहानी एक 35 साल की उम्र की विधवा महिला जया (पार्वती थिरूवोथु) और 40 साल की उम्र के कवि योगी (इरफ़ान ख़ान) के इर्द गिर्द घूमती है. दोनों की मुलाक़ात एक ऑनलाइन साइट के ज़रिए एक काफ़ी शॉप में होती है. योगी अपनी 3 पुरानी गर्लफ्रेंड से मिलाने जया को लेकर सफ़र पर निकलता है जो देश के अलग अलग शहरों में रहती हैं. रोड ट्रिप को कॉमेडी तड़के के साथ जिस तरह से पेश किया गया है, वो आपके मूड को एकदम फ़्रेश कर देगा. साथ ही योगी और जया के बीच की क्यूट रिलेशनशिप आपको धीमे-धीमे मुस्कुराने पर मजबूर कर देगी.   

3- बधाई हो  

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इस फ़िल्म की कहानी एक ऐसे अधेड़ दंपत्ति की है, जो एक बार फिर माता-पिता बनने वाले हैं. नकुल कौशिक (आयुष्मान खुराना) की ज़िंदगी में तब भूचाल आ जाता है जब उसे पता चलता है कि उसके पिता (गजराज राव) और मां (नीना गुप्ता) फिर पैरेंट्स बनने जा रहे हैं. फ़िल्म के क़िरदार इतने वास्तविक लगते हैं कि आप एक पल को भूल जाएंगे कि कोई मूवी चल रही है. क़िरदारों की आदायगी ज़बरदस्त कॉमेडी पैदा करती है, साथ ही ऐसे कपल की लाइफ़ भी दिखाती है, जिन्हें परिवार और समाज शर्मिंदा होने पर मजबूर करने की कोशिश करता है, लेकिन वो दोनों एकदूसरे के लिए हमेशा मज़बूती के साथ खड़े रहते हैं.   

4- बरेली की बर्फ़ी  

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अश्विनी अय्यर तिवारी द्वारा निर्देशित इस फ़िल्म में आयुष्मान खुराना, कृति सेनन और राजकुमार राव मुख्य भूमिकाओं में हैं. फ़िल्म की कहानी बरेली में रहने वाली बिट्टी (कृति सेनन) के इर्द गिर्द घूमती है, जिसके जीवन में लेखक प्रीतम विद्रोही (राजकुमार राव) की एक किताब पढ़ने के बाद बड़ा बदलाव आता है और फिर विद्रोही से मिलने की कोशिश में उसकी मुलाकात पुस्तक के प्रकाशक चिराग दुबे (आयुष्मान खुराना) से होती है, जो उस पुस्तक का वास्तविक लेखक है. बिट्टी को ये पता नहीं रहता है कि ये क़िताब चिराग ने ही लिखी है, लेकिन नाम प्रीतम का दे दिया है. इस फ़िल्म में कॉमेडी तो है ही साथ में नॉस्टैल्जिया भी भरपूर है. मसलन, छोटे शहरों में रेलवे स्टेशन पर बुक स्टॉल, सर्दियों की दोपहर मूंगफ़ली और रातें मालपुआ खाते गुज़ारना. वाकई में ये फ़िल्म बेहतरीन और देखने लायक है.  

5- सोचा न था  

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अभय देओल और आयशा टाकिया की ये फ़िल्म साल 2005 को रिलीज हुई थी. इम्तियाज़ अली द्वारा निर्देशित इस फ़िल्म ने आने वाले समय की कई फ़िल्मों को एक तरह से प्लॉट दे दिया. एक ऐसी जेनरेशन की कहानी जो किसी भी चीज़ को लेकर क्लियर नहीं है और कमिटमेंट से भागती है. फ़िल्म में अदिति और वीरेन भी इसी समस्या से पीड़ित हैं. पहले परिवार दोनों का रिश्ता करवाना चाहते थे, लेकिन बाद में वो ख़ुद एक-दूसरे से प्यार में पड़ जाते हैं. इस फ़िल्म को आए हुए क़रीब 15 साल हो गए हैं, लेकिन आज भी जब इसे देखते हैं तो लगता है कि ये अभी कि यंग जेनरेशन के बारे में बात कर रही है.    

6- वेक अप सिड  

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इस फ़िल्म की कहानी एक कॉलेज में पढ़ने वाले लड़के सिड (रनबीर कपूर) की है. एक ऐसा लड़का, जिसे सिर्फ़ डिस्‍को, पार्टी और घूमना-फिरना ही पसंद है. उसे लाइफ़ में क्या करना है, इसके बारे में वो कभी नहीं सोचता है, लेकिन कॉलेज में फ़ेल होने के बाद उसका अपने पिता से झगड़ा होता है और वो घर छोड़कर अपनी दोस्त आयशा मुखर्जी (कोंकणा सेन शर्मा) के पास चला जाता है. आयशा, जो सिड से बिल्क़ुल उलट है. करियर को लेकर फ़ोकस्ड और मैच्योर. सिड, आयशा के साथ रहते-रहते अपनी लाइफ़ के बारे में सोचना शुरू कर देता है और उसे फ़ोटोग्राफ़ी में अपना पैशन पा लेता है. ये फ़िल्म बेहद खूबसूरत है, साथ ही ही मुंबई शहर इसमें चार चांद लगा देता है. इस फ़िल्म को देखने के बाद आपको भी अपने दोस्तों से मिलने का मन कर जाएगा.   

7- दो दूनी चार  

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दो दूनी चार वर्ष 2010 में रिलीज हुई कॉमेडी ड्रामा है, जिसका निर्देशन हबीब फ़ैसल ने किया है. ये फ़िल्म एक मध्यवर्गीय दुग्गल परिवार की कहानी है, जो कार ख़रीदना चाहता है. ऋषि कपूर एक स्कूल टीचर हैं और उनकी पत्नी नीतू सिंह हाउस वाइफ़. दो बच्चे हैं, जो अभी स्कूल में है. ऐसे परिवार के लिए एक कार ख़रीदना भी किसी लग़्ज़री से कम नहीं है. फ़िल्म में दिखाया गया है कि एक व्यक्ति किस तरह से अपने बच्चों की मांगों को पूरा करते हुए अपने पड़ोसियों से प्रतियोगिता भी करता है. साथ ही एक टीचर होना कितना थैंक्सलेस जॉब है. एक आदमी की दुपहिया वाहन से लेकर चार पहिया वाहन तक की इस मीठी सी कहानी को देखना ग़ज़ब का एहसास देगा.   

8- एक मैं और एक तू  

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साल 2012 में रिलीज़ हुई एक रोमांटिक कॉमेडी फ़िल्म है, जिसका लेखन और निर्देशन शकुन बत्रा ने किया है. फ़िल्म की कहानी राहुल कपूर (इमरान ख़ान) और रायना ब्रिगांजा (करीना कपूर) के इर्द-गिर्द घूमती है. दोनों ही एकदूसरे से अलग है. राहुल अपने पैरेंट्स से डरने वाला एक लड़का है और रायना एक खुश मिजाज़ और जिंदा दिल लड़की. ये दोनों एक-दूसरे से मिलते हैं, फ़िल्म में रिफ़्रेंशिंग ट्विस्ट हैं, जो कहानी को बेहद मज़ेदार बनाते हैं.   

9- दम लगा के हाइशा  

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फ़िल्म में प्रेम (आयुष्मान खुराना) और संध्या (भूमि) की कहानी दिखाई गई है. प्रेम के पिताजी की एक कैसेट की दुकान है. प्रेम का परिवार बहुत बुरी परिस्थितियों से गुज़र रहा है और उसी दौरान उसके पिताजी फ़ैसला करते हैं कि प्रेम की शादी संध्या से कर दी जाए. संध्या एक बहुत पढ़ी लिखी लड़की है और प्रेम के साथ शादी करने को तैयार हो जाती है. लेकिन प्रेम को संध्या पसंद नहीं होती क्योंकि वो मोटी होती है. शादी के बाद दोनों का रिश्ता कई उतार-चढ़ाव से गुज़रता है. लेकिन आख़िरकार दोनों एक-दूसरे से प्यार करना सीख लेते हैं. फ़िल्में में कॉमेडी भरपूर है, लेकिन साथ ही एक बेहतरीन मैसेज भी है. कैसे हम ख़ुद को प्यार करना सीखें, एक-दूसरे को स्वीकार करना और समाज में सुंदरता को लेकर बनाई गई सड़ी-गली दीवारों को तोड़े. ये फ़िल्म देखने के साथ ही समझने लायक भी है.  

10- पीकू  

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इस फ़िल्म की कहानी पीकू (दीपिका पादुकोण), बाबा (अमिताभ बच्चन) और राणा (इरफ़ान ख़ान) के इर्दगिर्द घूमती है. पीकू पेशे से आर्किटेक्ट है और दिल्ली में अपनी शर्तों पर रहती है, लेकिन इसके साथ ही उसके लिए परिवार सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है. वो अपने पिता की देखभाल में कोई कमी नही रखती. अमिताभ बच्चन, दीपिका के पिता बने हैं. उम्र बढ़ गई है तो स्वास्थ्य को लेकर परेशानियां भी, लेकिन जितनी है नहीं उनसे ज़्यादा अमिताभ फ़ील करते और करवाते हैं. एक उम्रदराज़ चिढ़चिढ़े पिता की भूमिका में अमिताभ देखने लायक हैं. उस पर इरफ़ान जो कि पीकू और उसके पिता को कोलकाता अपनी कार से छोड़ने जाते हैं, उनकी दोनों के साथ केमेस्ट्री देखकर मज़ा ही आ जाता है. अगर आप क़िरदारों की आंखों में महज़ खोकर एक जिंदगी को निहारना चाहते हैं तो इस फ़िल्म को ज़रूर देखना चाहिए. दिन बन जाएगा.