हम साथ-साथ हैं फ़िल्म तो कई बार देखी होगी. परिवारिक रिश्तों और भावनाओं से सजी ये फ़िल्म बहुत ही अच्छी है. सूरज बड़जात्या की इस फ़िल्म में परिवार से जुड़ी हर एक छोटी बात, रिश्ते, रीति-रिवाज़ और रस्में सबकुछ बहुत ही बख़ूबी दिखाया गया है, जिसे देखकर लगता है कि ये अपने ही परिवार की कहानी है. इस फ़िल्म से बहुत कुछ सीखने को मिलता है, जो शायद किसी भी परिवार के लिए ज़रूरी होता है. 

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ऐसे ही कुछ संस्कार हैं, जो इस फ़िल्म ने हमें सिखाए हैं और जो इन संस्कारों को सीख चुका है वो संस्कारी की कैटेगरी में आ सकता है:

संस्कार 1

indiatimes

‘हम साथ साथ हैं’ ने हमें सिखाया है कि दिन की शुरुआत कॉफ़ी या चाय से नहीं, बल्कि परिवार के साथ मिलकर भगवान की प्रार्थना से की जानी चाहिए, तो चाय कॉफ़ी को बाय-बाय बोलने का समय आ गया है.

संस्कार 2

missmalini

आपका पति भगवान का दिया हुआ सबसे अनमोल तोहफ़ा है और उसे हमेशा झुकी नज़र से देखना चाहिए. क्या आपको भी ऐसा लगता है?

संस्कार 3

republicworld

महिलाओं को हमेशा पुरुषों को खाना देने के बाद ही खाना चाहिए, क्योंकि ऐसा हम नहीं कहते हैं ये संस्कार और फ़िल्म कहती है.

संस्कार 4

gfycat

स्कूल से बढ़कर परिवार हो सकता है ऐसा फ़िल्म ने बताया. मेरे लिए तो दोनों की अपनी अलग अलग इम्पोर्टेंस है. अब आपको वो गाना तो याद होगा ABCDEFGHI… JKLMN… जितनी जल्दी बच्चे इस गाने को सुनकर ABCD सीखे थे उतनी जल्दी तो स्कूल भी नहीं सिखा पाया. सही कहा या नहीं?

संस्कार 5

makeagif

अपने राष्ट्रीय पक्षी का सम्मान करना चाहिए. ये नहीं बताते तो पता नहीं चलता.

संस्कार 6

blogspot

अगर आप अपने परिवार के साथ मस्ती और अच्छा समय बिता सकते हैं तो बाहर जाने की क्या ज़रूरत है. ये मोबाइल का ज़माना है लोग घर में होकर भी बाहर होते हैं.

संस्कार 7

idiva

करियर से बड़ी चीज़ ज़िंदगी में शादी है, ज़िंदगी का आधार ही शादी करके घर बसाना है. ऐसा फ़िल्म का ये गाना जन्मों के साथी… हम साथ साथ हैं… कहता है.

संस्कार 8

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अच्छे घर के लोग अपनी लव लाइफ़ के बारे में खुलकर बड़ों के सामने बात नहीं करते हैं. बस एक-दूसरे को दूर-दूर से देखकर शर्माते हैं और इशारे करते हैं. ये पुराने ज़माने की बात हो गई है, क्यों सही कहा ना?

संस्कार 9

gfycat

मेहमानों का स्वागत पानी या चाय से नहीं नाचते-गाते करना चाहिए. बाकी आप देख लो जैसा सही लगे.

संस्कार 10

popxo

कुछ तो पते का इस फ़िल्म ने बताया, अपने भाई-बहनों के लिए अपने प्यार का इज़हार करने का मौका कभी न छोड़ें.

संस्कार 11

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‘नाम से तो संस्कारों का पता चल रहा है’ इस मामले में राम किशन जी का घर बिल्कुल सही उदाहरण है. इनकी पत्नी ममता और बेटे विवेक, विनोद, प्रेम और उनकी बेटी संगीता एक आदर्श परिवार की तस्वीर है. इनमें से आप भी कोई नाम रख सकते हो और संस्कारी गैंग में शामिल होना चाहो तो सकते हो.

संस्कार 12

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अपने माता-पिता के पीठ पीछे कभी भी बात न करें, क्योंकि ‘मां की डांट में ही उनका प्यार छुपा होता है.’ ज़्यादा प्यार सेहत के लिए हानिकारक होता है.

संस्कार 13

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फ़िल्म ने बताया कि ‘शर्माना ज़रूरी है’ अच्छे परिवारों की लड़कियों को हमेशा सबसे शर्म का पर्दा रखना चाहिए. शर्म लाज औरत का गहना होती है और ये बात सूरज बड़जात्या ने दिल से लगा ली.

संस्कार 14

popxo

आप भगवान का शुक्रिया कभी नहीं अदा कर सकते हैं उन्होंने जो भी हमारे लिए किया है. इसलिए उनका शुक्रिया अदा करने के लिए अपने पैरेंट्स का नाच-गाकर धन्यवाद करना ज़रूरी है क्या?