LGBTQ Movies: LGBTQ+ समुदाय के लोगों का जीवन हमारी तरह आसान नहीं है. उन्हें समाज में रहने के लिए काफ़ी संघर्ष करना पड़ता है. इतना ही नहीं उनके जीवन को समझ पाना आसान भी नहीं है. उनके लाइफ़ को आसानी से समझाने के लिए कई फ़िल्में बनी हैं, जिनको देखना चाहिए. बता दें, इनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए भारत में सेक्शन 377 हटाया गया. मगर आज भी LGBTQ+ समुदायों को समाज ने पूरी तरह नहीं अपनाया है. हर समुदाय के लोगों का संघर्ष है लेकिन इस समुदाय के लोगों को अपने अस्तित्व को स्वीकार करवाने के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी और अभी भी लड़नी पड़ रही है. चलिए हम इनके जीवन पर बनी कुछ फ़िल्में बता रहे हैं जिनको देखकर आप इनके बारे में बहुत कुछ समझ सकते हैं- (LGBTQ movies in Bollywood)
Hindi Movies On LGBTQ+
1. Bomgay (1996)
फ़िल्म में कुशल पंजाबी और राहुल बोस थे और ये फ़िल्म एक तरह से भारत की पहली होमोसेक्शुअल फ़िल्म थी जो रिलीज़ की गई थी. कुछ ही दिनों में ये फ़िल्म बैन कर दी गई, वजह थी फ़िल्म में दिखाए गए Bold Gay Scenes. इस फ़िल्म का निर्देशन Riyad Vinci Wadia और Jangu Sethnat ने किया था. इस फ़िल्म में कई शॉर्ट फ़िल्में थीं जिनके ज़रिए भारत में होमोसेक्शुअल आईडेंटिटी पर बात की गई.
2. Fire (1996)
मीरा नायर की ये फ़िल्म भी कॉन्ट्रोवर्सीज़ का शिकार हुईं. शबाना आज़मी, नंदिता दास, जावेद जाफ़री और कुलभूषण खरबंदा ने इस फ़िल्म में काम किया. समाज को इसमें दिखाया लेस्बियन रिश्ता पसंद नहीं आया. कुछ नेताओं ने भी इस फ़िल्म का जमकर विरोध किया था.
3. Mango Soufflé (2002)
ये फ़िल्म, महेश दत्तानी के प्ले ‘On a Muggy Night in Mumbai’ पर आधारित है. समाज के उच्च श्रेणी के घरों में समलैंगिकता को किस तरह लिया जाता है, ये फ़िल्म उस पर बात करती है.
4. The Pink Mirror (2003)
भारत में ये फ़िल्म, गु़लाबी आईना नाम से रिलीज़ की गई. इस फ़िल्म को सेंसर बोर्ड ने वल्गर और आपत्तिजनक चीज़ें दिखाने के लिए बैन कर दिया था. इस फ़िल्म की क्रिटिक्स ने काफ़ी तारीफ़ की थी और इसे कई फ़िल्म फ़ेस्टिवल में दिखाया गया.
5. Sancharram (2004)
ये मलायलम फ़िल्म भी असल ज़िन्दगी से प्रेरित होकर बनाई गई है. सामाजिक बेड़ियों से निकलना कितना मुश्किल होता है, फ़िल्म इस पर रौशनी डालती है. इस फ़िल्म का निर्दशन J. Pullappally ने किया.
6. My Brother… Nikhil (2005)
इस फ़िल्म की कहानी Dominic D’Souza की लाइफ़ पर आधारित है. इस फ़िल्म में जुही चावला, संजय सुरी, विक्टर बैनर्जी, लिलेट दूबे और पूरब कोहली ने काम किया. इस फ़िल्म में होमोसेक्शुएलिटी और एड्स पर बात की गई.
7. Memories of March (2010)
दीप्ती नवल और ऋतुपॉर्नो घोष की ये फ़िल्म एक बेहद ज़रूरी विषय पर बात करती है, ‘Acceptance’ या जो है उसे स्वीकार कर लेना. फ़िल्म का निर्देशन संजय नाग ने किया है. फ़िल्म में एक मां को उसके मृत बेटे के जीवन का अलग पहलू पता चलता है.
8. Chitrangada: The Crowning Wish (2012)
भारत में बनी बेहतरीन फ़िल्मों में से एक है ऋतुपॉर्नो घोष की चित्रांगदा. इस फ़िल्म के ज़रिए घोष ने कई चीज़ों पर बात की. LGBTQ+ संबंध, इस समुदाय के लोगों का उनके परिवार से संबंध, अपनी शरीर में परिवर्तन लाने की जद्दोजहद आदि. रवींद्रनाथ की चित्रांगदा के कहानी से ली गई है फ़िल्म की कहानी.
9. Loev (2015)
ये कहानी है 2 दोस्तों की ज़िन्दगी एक ट्रिप पर जाकर बदल जाती है. फ़िल्म में शिव पंडित और ध्रुव गणेश ने काम किया है निर्देशन सुधांशु सरिया ने किया है. इस फ़िल्म को भी कमर्शियली रिलीज़ नहीं किया गया था.
10. Aligarh (2015)
ये फ़िल्म असल ज़िन्दगी पर आधारित है. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर रामचंद्र सिरास की ज़िन्दगी के पहलुओं को हंसल मेहता ने, इस फ़िल्म के ज़रिए सुलझाने की कोशिश की है. प्रोफ़ेसर सिरास की प्राइवेसी में दखल दी गई. उन्हें नौकरी से निकाला गया. एक पत्रकार ने उनकी कहानी उठाई और उन्हें न्याय दिलाने के लिए लड़ाई लड़ी. मनोज बाजपेई ने प्रोफ़ेसर सिरास का किरदार निभाया है.
11. Evening Shadows (2018)
Sridhar Rangayan ने इस फ़िल्म का निर्देशन किया है. ये कहानी है एक रूढ़िवादी सोच वाले परिवार की जिसका बेट होमोसेक्शुअल है. फ़िल्म में सदियों पुरानी सोच और सच के बीच की रस्साकशी दिखाई गई है. फ़िल्म में मोना अंबेगांवकर, अनंत महादेवन और देवांश दोषी ने काम किया है.
12. Unfreedom (2014)
इस फ़िल्म पर भारत में बैन लगा हुआ है. ये कहानी है दो लेस्बियन्स की जो समाज द्वारा लगाए गए हर पाबंदी को तोड़ते हैं. फ़िल्म में विक्टर बैनर्जी, आदिल हुसैन, भानु उदय, भवानी ली ने काम किया है. फ़िल्म का निर्देशन राज अमित कुमार ने किया है.
13. Dear Dad (2016)
मसूरी की हसीन वादियां और समाज की सोच पर तीखे सवाल करने वाली एक कहानी है. पिता और बेटे के रिश्ते और पिता के हिम्मत करके क्लॉज़ेट से बाहर आने की इस कहानी में अरविंद स्वामी, हिमांशु शर्मा, एकावली खन्ना, अमन उप्पल और भाविक भसीन ने काम किया है. फ़िल्म का निर्देशन तनुज भ्रमर ने किया.
14. Bulbul Can Sing (2018)
ये कहानी है तीन टीनेजर्स की जो अपनी सेक्शुअल आईडेंटिटी एक्स्प्लोर कर रहे हैं. फ़िल्म का निर्देशन रीमा दास ने किया है. असम की ख़ूबसूरती के इर्द-गिर्द बुनी गई रोज़मर्रा की इस कहानी की स्क्रीनिंग टोरन्टो फ़िल्म फ़ेस्टिवल में हुई थी.
15. Do Paise Ki Dhoop Chaar Aane Ki Barish
इस फ़िल्म की कहानी है एक सेक्स वर्कर, उसके दिव्यांग बेटे और एक Gay गीतकार की. प्रेम और परिवार के सुलझी-उलझी इस कहानी का निर्देशन दीप्ती नवल ने किया है. फ़िल्म में मनीषा कोइराला, मकरंड देशपांडे, राजीत कपूर, मिलिंद सोमन और सनज नवल ने काम किया है.