Bollywood Actor Kanhaiyalal: भारतीय सिनेमा की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मों में मदर इंडिया (Mother India) का ज़िक्र सबसे पहले होता है. सन 1958 में 30वें अकादमी पुरस्कारों के दौरान महबूब ख़ान की फ़िल्म मदर इंडिया (1957) सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय फ़ीचर फ़िल्म श्रेणी के लिए Oscars Awards के लिए भेजी गई पहली भारतीय फ़िल्म थी. इस फ़िल्म को दुनियाभर से भेजी गई 4 अन्य टॉप फ़िल्मों के साथ नामांकित किया गया था. इस दौरान Mother India (1957) केवल 1 वोट से इटालियन फ़िल्म Nights of Cabiria (1957) से हार गई थी. Kanhaiyalal (कन्हैयालाल)
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महबूब ख़ान की फ़िल्म मदर इंडिया (1957) में नरगिस, राजेंद्र कुमार, सुनील दत्त, और राजकुमार मुख्य किरदारों में नज़र आये थे. इन दिग्गज कलाकारों के बीच एक कलाकार और थे जिसने अपनी दमदार एक्टिंग से इस फ़िल्म ख़ास बना दिया था. उनका नाम कन्हैयालाल (Kanhaiyalal) था. फ़िल्म में उन्होंने चालाक साहूकार (बनिया) सुखीलाल उर्फ़ ”लाला” का किरदार निभाया था. राधा और सुखीलाल के इर्द-गिर्द ही फ़िल्म की पूरी कहानी घूमती है.
कन्हैयालाल (Kanhaiyalal) ही वो कलाकार थे जिन्होंने हिंदी सिनेमा में विलेन (Villain) की नींव रखी थी. अगर हम मदर इंडिया (Mother India) फ़िल्म के रियल हीरो की बात करें तो वो कन्हैयालाल ही थे. उन्होंने भले ही फ़िल्म में नेगेटिव किरदार निभाया, लेकिन फ़िल्म की जान तो ‘सुखीलाल’ ही थे.
असल ज़िंदगी में कौन थे कन्हैयालाल?
कन्हैयालाल (Kanhaiyalal) का जन्म 1910 में वाराणसी में हुआ था. उनके पिता पंडित भैरोदत्त चौबे, जिन्हें चौबेजी के नाम से जाना जाता है, वाराणसी में ‘सनातन धर्म नाटक समाज’ के मालिक थे. पिता कला के क्षेत्र से जुड़े थे इसलिए एक्टिंग कन्हैयालाल के रगों में थी. लेकिन वो अपने पिता के साथ किसी भी प्रकार के मंचीय कार्य करने के लिए सहमत नहीं थे. इसलिए उन्होंने 16 साल की उम्र में लिखना शुरू किया और फिर बतौर एक्टर छोटी भूमिकाएं करने लगे. पिता की मृत्यु के बाद कन्हैयालाल के भाइयों ने कुछ समय तक ड्रामा कंपनी चलाने की कोशिश की, लेकिन असफल रहे. इसके बाद पिता की विरासत हमेशा-हमेशा के लिए ख़त्म हो गई.
कन्हैयालाल लिखने और निर्देशन का शौक था
कन्हैयालाल (Kanhaiyalal) ने इसके बाद बॉम्बे (मुंबई) में फ़िल्मी करियर की तलाश करने का फ़ैसला किया. उनके बड़े भाई संकट प्रसाद चतुर्वेदी पहले से ही भारतीय मूक फ़िल्मों में ख़ुद को एक बेहतरीन अभिनेता के रूप में स्थापित कर चुके थे. लेकिन कन्हैयालाल बॉम्बे फ़िल्मों में अभिनय करने के इरादे से नहीं, बल्कि लिखने और निर्देशन के इरादे से आये थे. शुरुआत में उन्हें सागर मूवीटोन की फ़िल्म ‘सागर का शेर’ में एक्स्ट्रा कलाकार के तौर पर काम करने का मौका मिला, लेकिन इस दौरान उनकी किस्मत ने एक ज़बरदस्त मोड़ लिया.
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कन्हैयालाल (Kanhaiyalal) को नाटकों का पहले से ही शौक था. इस बीच उन्हें बॉम्बे (मुंबई) में अपने द्वारा लिखित नाटक ‘पंद्राह अगस्त’ का मंचन करने का मौका मिला. इस बीच उन्होंने कई अन्य नाटक भी लिखे थे. जब इंडस्ट्री में लोग कन्हैयालाल को पहचानने लगे तो उन्होंने बतौर एक्टर फ़िल्मों में अपनी किस्मत आजमाने का फ़ैसला किया. सन 1939 में ‘एक ही रास्ता’ फ़िल्म में ‘बांके’ का किरदार निभाकर उन्होंने हिंदी फ़िल्मों में डेब्यू किया.
सन 1940 में कन्हैयालाल (Kanhaiyalal) को महबूब ख़ान की फ़िल्म ‘औरत’ में साहूकार ‘सुखीलाल’ की भूमिका मिली. इसके बाद उन्होंने बाद उन्होंने कई अन्य फ़िल्मों में भी चरित्र अभिनेता के रूप में काम किया. सन 1957 में महबूब ख़ान ने अपनी फ़िल्म ‘मदर इंडिया’ की घोषणा की, जो उनकी पिछली फ़िल्म ‘औरत’ की रीमेक थी. महबूब ख़ान ने ‘मदर इंडिया’ फ़िल्म में ‘सुखीलाल’ के किरदार के लिए भी कन्हैयालाल को ही चुना और इस फ़िल्म ने उन्हें ‘कन्हैयालाल’ से ‘द कन्हैयालाल’ बना दिया.
इन फ़िल्मों ने दी पहचान
कन्हैयालाल (Kanhaiyalal) ने ‘मदर इंडिया’ फ़िल्म में अपने स्वाभाविक अभिनय से ‘सुखीलाल’ के किरदार को जीवंत कर दिया. इसके अलावा भी कन्हैयालाल ने ‘भूख’, ‘गंगा जमुना’, ‘गोपी’, ‘उपकार’, ‘अपना देश’, ‘जनता हवलदार’, ‘दुश्मन’, ‘बंधन’, ‘भरोसा’, ‘धरती कहे पुकार के’, ‘हम पांच’, ‘गांव हमारा देश तुम्हारा’, ‘दादी मां’, ‘गृहस्थी’, ‘हत्यारा’, ‘पालकों की छांव में’, ‘हीरा’, ‘तीन बहुरानियां’, ‘दोस्त’ आदि फ़िल्में की. लेकिन कन्हैयालाल को उनकी यादगार भूमिकाओं में ख़ासकर खलनायक के रूप में ‘मदर इंडिया’, ‘गंगा जमुना’, ‘गोपी’ और ‘उपकार’ फ़िल्मों के लिए याद किया जाता है.
कन्हैयालाल (Kanhaiyalal) ने अपने 43 सालों के फ़िल्मी करियर में तक़रीबन 100 फ़िल्मों में अभिनय किया था. उनकी आख़िरी फ़िल्म साल 1982 में आई ‘हथकड़ी’ थी.
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