फ़िल्में कुछ वक़्त के लिए एक अलग दुनिया में ले जाती हैं. जहां कहानी किसी और की होती है, लेकिन हर कोई कहीं न कहीं खुद को उससे जोड़ लेता है. कुछ से रिलेट करता है तो कुछ से रिलेट करना चाहता है. मगर कई बार 2 घंटे की मूवी कुछ इस तरह से बनाई जाती है कि किसी का कहानी से जुड़ना तो दूर महज़ पूरी फ़िल्म ख़त्म होने तक झेल लेना ही बहुत बड़ी उपलब्धि होती है. दिलचस्प कहानी और बेहतरीन विषय की बात आए तो इस मामले में शॉर्ट फ़िल्में, मेनस्ट्रीम सिनेमा से कई गुना अच्छा परफॉर्म कर रही हैं. 2020 में रिलीज़ हुई ये शॉर्ट फ़िल्में इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं.

1. देवी

महज़ 13 मिनट की इस फ़िल्म ने बेहद सहजता के साथ ये साफ़ कर दिया कि रेप की वजह सिर्फ़ रेपिस्ट है. पूरी कहानी एक कमरे के अंदर है, जहां कई अलग-अलग उम्र, जगह और वर्ग की महिलाएं बैठीं हैं. उनमें सिर्फ एक चीज़ कॉमन है- उन सबकी मौत रेप की वजह से हुई. फ़िल्म में काजोल, नेहा धूपिया, श्रुति हसन, नीना कुलकर्णी, शिवानी रघुवंशी जैसी बेहतरीन कलाकारों ने अभिनय किया है. 

2. नवाब

बॉलिवुड एक्टर अपारशक़्ति ख़ुराना फ़िल्म में लीड रोल में हैं. फ़िल्म में दिखाया गया कि कैसे किसी को एक कुत्ते से स्नेह और लगाव होता है. महज़ 9 मिनट की शॉर्ट कॉमेडी फ़िल्म में लोगों को अपारशक्ति का बिल्कुल नया रूप देखने को मिलेगा. जो अभी तक सिल्वर स्क्रीन पर नहीं दिखा. 

3. द लवर्स

फ़िल्म की कहानी प्यार और बदले पर आधारित है. छोटी सी फ़िल्म ख़त्म होने से पहले ही कई सवाल खड़े कर जाती है. बहुत कम ऐसी फ़िल्में होती हैं, जो अपने मक़सद में इस तरह कामयाब होती हों. फ़िल्म बात करती है कि कैसे एक कानून जो किसी पीड़ित को न्याय देने के लिए बनाया गया था, उसका कुछ लोग गलत इस्तेमाल कर अपने निजी स्वार्थ को पूरा करते हैं. फ़िल्म में श्वेता बसु प्रसाद, ज़रीना वहाब और अनुराग मल्हान ने मुख्य किरदार निभाए हैं. 

4. घर की मुर्गी

निल बटे सन्नाटा और पंगा जैसी फ़िल्में बना चुके डायरेक्टर अश्वनी अय्यर तिवारी की इस मूवी में लीड रोल में साक्षी तनवर हैं. फ़िल्म में उन्होंने एक हाउसवाइफ़ का किरदार निभाया है. फ़िल्म बात करती है उन औरतों की जो घर में दिनभर काम करती हैं लेकिन न तो उनकी कभी सराहना होती है और न ही उनके काम को कभी महत्व दिया जाता है. जिस तरह से इस फ़िल्म को ट्रीट किया गया है, उससे ये जूस और इंग्लिश विंग्लिश जैसी फ़िल्मों के साथ खड़ी होती है. 

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5. कांदे पोहे

अक़्सर हम पिछली पीढ़ियों को उनकी अतार्किक रूढ़ियों के लिए कठघरे में खड़ा करते हैं, लेकिन हम खुद किन रूढ़ियों को पाले हुए हैं, उसे भूल जाते हैं. कांडे पोहे इसी विषय पर आधारित है. प्यारा सा लेकिन बेहर विचारोत्तेजक इस रोमांटिक नाटक में अहसास चन्ना और तुषार पांडे ने लीड रोल निभाया है. अरेंज मैरिज की पृष्ठभूमि के ख़िलाफ़ सेट है लेकिन सही-गलत जज करने के लिए दर्शकों को स्वतंत्र छोड़ा गया है. 

6. सर्वगुण संपन्न

हमारे पुरुष प्रधान समाज में अगर कोई महिला 25 साल के बाद भी बिना शादी के रहे तो वो चर्चा का सबसे बढ़िया मुद्दा हो जाती है. हर कोई इस बात का पता लगाने में ही लगा रहता है कि आख़िर ऐसी क्या कमी है लड़की में जो इसकी शादी नहीं हो पा रही. फ़िल्म का प्लॉट इसी विषय पर बेस्ड है. इस विषय को एक्सप्लोर करते हुए कहानी बेहद दिलच्सप मोड़ ले लेती है. 

7. बुद्ध (अवेकनिंग) 

महिला सशक्तिकरण का अर्थ हर किसी के लिए अलग हो सकता है, लेकिन इस बात को कोई अस्वीकार नहीं कर सकता है कि महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार दिये जाने की जरूरत है. फ़िल्म में तीन मुख्य पात्र हैं. जिनकी लाइफ़ एक-दूसरे से अलग है लेकिन तीनों को ही अपनी लाइफ़ में जेंडर के कारण कई तरह की परेशानियां उठानी पड़ती हैं.