Fair and Lovely

ये सिर्फ़ एक Brand नहीं, इस देश की मानसिकता है, जहां इंसान के मन से ज़्यादा उसके रंग को देखा जाता है. यहां काली देवी तो हो सकती है, पर लड़की नहीं. भारत में 70 प्रतिशत से ज़्यादा आबादी का रंग गहरा है. ऐसा देश, जहां ये रंग आम बात होनी चाहिए, घटिया और संकीर्ण मानसिकता की वजह से फ़ेयरनेस क्रीम के लिए सबसे बड़ा बाज़ार बन गया.

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रोज़ टीवी/ न्यूज़पेपर में कितने ही ऐसे Ad आते हैं, जो आपको ‘कई Tone गोरा’, ‘Fair and Lovely’, ‘Fair and Handsome’ बनाने के दावे करते हैं. फ़िल्म इंडस्ट्री का हर बड़ा स्टार, इन फ़ेयरनेस क्रीम Brands को बेचता दिखता है. चाहे वो किंग खान, शाहरुख़ खान हों, दीपिका पादुकोण, जॉन अब्राहम, शाहिद कपूर हों या फिर सिद्धार्थ मल्होत्रा.

रंगभेद की इस मार्केटिंग को धड़ल्ले से बढ़ाने, झूठ फैलाने में इन सभी का उतना ही योगदान है, जितना इन Brands का.

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हालांकि कंगना जैसे स्टार भी थे, जिन्होंने अपने करियर के शिखर पर होने के बावजूद इन सभी अनफ़ेयर फ़ेयरनेस Brands को न कहा. नंदिता दास ने ‘Unfair and Lovely’ कैंपेन चला कर लोगों को जागरूक करने की कोशिश की, लेकिन कभी भी किसी बॉलीवुड स्टार ने अपने ही Co-Stars के खिलाफ़ बोलने की हिम्मत नहीं दिखाई.

सिर्फ़ एक नाम को छोड़ कर

अभय देओल

‘यहां आपको कोई नहीं बताने वाला कि ये Ads पूरी तरह से नस्लभेदी, बेइज्ज़त करने वाले और बुनियादी तौर पर ग़लत हैं.’

इसके बाद उन्होंने अपने एक पोस्ट में भी लिखा:

आपको इस सोच को ख़त्म करना होगा कि कोई एक ख़ास रंग, किसी दूसरे रंग से बेहतर या कम है. आपको इस सोच की मार्केटिंग में भागीदार नहीं बनना है. अगर आप शादी के इश्तिहार देखें, तो वहां लड़की की क्वालिफ़िकेशन से ज़्यादा उसके रंग पर ध्यान दिया जाता है. 
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इससे पता चलता है कि ये सोच हमारे समाज में कितनी बुरी तरह से धंसी हुई है. ‘Dusk’, जिसका मतलब ढलती शाम होता है, उसे हम लोग किसी का स्किन कलर बताते हैं. आप भले ही इस सोच को समाज से नहीं मिटा सकते, लेकिन कम से कम अपने परिवार से शुरुआत कर सकते हैं.