वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण ने हिंदी सिनेमा को जो ख़्याति दिलाई, वो शायद ही कोई डायरेक्टर दिला सकता है. इन्होंने ‘प्यासा’, ‘चौदहवीं का चांद’, ‘कागज़ के फूल’, ‘मिस्टर एंड मिसेज़ 55’ और ‘आर-पार’ जैसी क्लासिक फ़िल्मों को बनाया था. अगर आप सिनेप्रेमी हैं, तो ये भली-भांति जानते होंगे कि हम किसकी बात कर रहे हैं.

हम बात कर रहे हैं हिंदी सिनेमा के अद्भुत डायरेक्टर गुरु दत्त, जिनका असली नाम वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण था. दिग्गज फ़िल्ममेकर, सत्यजीत रे के बाद एक गुरु दत्त ही ऐसे डायरेक्टर थे,जिनकी फ़िल्मों में लाइट और कैमरे का बेहतरीन संगम देखने को मिलता था. उनकी फ़िल्मों के किरदारों की तरह ही, उनकी लाइफ़ भी काफ़ी उलझी हुई थी.

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कहते हैं कि गुरु दत्त को नशे की लत लग चुकी थी और उन्हें नींद भी नहीं आती थी. वो न जाने कौन-सी कशमकश में रहते थे. 39 साल की उम्र में ही वो दुनिया छोड़कर चले गए थे. उनकी मौत भी आज तक लोगों के लिए रहस्य बनी हुई है. कुछ लोगों का कहना है कि गुरु दत्त ने आत्महत्या की थी. लेकिन उनकी छोटी बहन देवी दत्त इस बात से इत्तेफाक नहीं रखती.

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अपने बड़े भाई की रहस्यमयी मौत के बारे में उन्होंने एक इंटरव्यू में बात की थी. उन्होंने कहा कि, मेरे भाई ने ख़ुदकुशी नहीं की थी. ये सिर्फ़ एक हादसा था, जो नींद की गोलियों के ओवरडोज़ का नतीजा था.

उनके आख़िरी दिन को याद करते हुए देवी ने कहा, ‘गुरु दत्त रोज़ाना की तरह तंदरुस्त लग रहे थे. वो अपनी अगली फ़िल्म ‘बहारें फिर भी आएंगी’ की शूटिंग के लिए तैयार थे. लेकिन ऐन वक़्त पर एक कलाकार के न आने पर उन्हें अपनी शूटिंग कैंसिल करनी पड़ी. इसके बाद वो हमारे साथ कोलाबा में शॉपिंग करने गए.

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शाम को लौटे तो उन्होंने अपनी पत्नी गीता से फ़ोन पर इस बात के लिए झगड़ा किया कि उनके बच्चे घर पर क्यों नहीं हैं. वो चाहते थे कि वो वीकेंड अपने बच्चों के साथ बिताएं. लेकिन बहुत देर हो जाने के कारण गीता ने उन्हें वहां नहीं भेजा.

कुछ देर बाद डायलॉग राइटर अबरार अल्वी आ गए, जो उनसे एक सीन के सिलसिले में बात करना चाहते थे. फिर मैं उनके कमरे से बाहर आ गई. इसके 24 घंटे बाद ही उनकी लाश हमारे समाने थी. मुझे क्या पता था कि ये वो आख़िरी लम्हे हैं, जो मैंने उनके साथ बिताए थे.’

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आपकी जानकारी के लिए बता दें कि देवी दत्त ने नसीरुद्दीन की फ़िल्म ‘मासूम’ से बतौर प्रोड्यूसर बॉलीवुड में डेब्यू किया था. इन्होंने इसे अपने मेंटर गुरू दत्त और गीता को डेडिकेट किया था.

गुरु दत्त कई बार ख़ुदकुशी करने की कोशिश कर चुके थे. इस संदर्भ में उनके साथ काफ़ी फ़िल्मों में काम कर चुकीं वेटरन एक्ट्रेस वहीदा रहमान का कहना है कि वो एक ऐसे आदमी थे, जिनके पास सब कुछ होते हुए भी संतुष्टी नहीं थी.

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अपने एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, ‘वो हर वक़्त संतुष्टी की तलाश में भटकते थे और उनकी ये प्यास कोई नहीं बुझा सकता था. जो चीज़ उन्हें ज़िंदगी नहीं दे पाती, उसकी तलाश उन्हें मौत से होती. उनमें बचने की चाह नहीं थी. मैंने कई बार उन्हें समझाने की कोशिश की कि एक ज़िन्दगी में सबकुछ नहीं मिल सकता और मौत हर सवाल का जवाब नहीं है. और आख़िरकार वही हुआ जिसका डर था.’

Feature Image Source: Bumppy

Source: Dnaindia