बॉलीवुड एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण ने हमेशा ही लोगों के बीच ख़ुल कर अपने डिप्रेशन को लेकर बात की है. समय-समय पर उन्होंने मानसिक स्वास्थ्य के अलग-अलग मुद्दों पर भी बात की है, क्योंकि उन्हें मालूम है कि समाज में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता फैलाना कितना ज़रूरी है. 

हाल ही में दीपिका को स्विटज़रलैंड के दावोस में आयोजित हो रहे ‘वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम’ के लिए क्रिस्टल अवॉर्ड (Crystal Award) से सम्मानित की गई हैं. 

दीपिका ने इस दौरान डिप्रेशन से अपनी लड़ाई के बारे में बात करते हुए कहा- 

मुझे डिप्रेशन तब हुआ, जब मैंने सोचा भी नहीं था. उस वक़्त मैं अपने करियर के शिख़र पर थी, मेरी फ़िल्में अच्छा कर रही थीं और मैं एक अच्छे रिश्ते में भी थी. सब कुछ परफ़ेक्ट था. बावजूद इसके एक दिन मैं उठी और लगा सब सही है लेकिन मैं बेहोश होकर गिर पड़ी.  क़िस्मत से उस दिन घर में काम कर रहे लोगों ने मुझे फ़र्श पर पड़ा देख लिया. इसके बाद वो मुझे डॉक्टर के पास लेकर गए. इस दौरान डॉक्टर बोले कि काम और थकान की वजह से ब्लड प्रेशर गड़बड़ा गया है. डिप्रेशन या मानसिक बीमारी के लिए ये पहले लक्षणों में से एक है. इसके बाद काफ़ी लम्बे वक़्त तक मुझे न किसी से मिलने का न ही कहीं बाहर जाने का मन करता था. बस सोने का ही मन करता था. इस दौरान मेरी मम्मी घर आई हुई थीं. जब मेरे माता-पिता जा रहे थे मैं काफ़ी रोने लगी. उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या हुआ है मगर मेरे पास इसका कोई जवाब नहीं था. इस दौरान मेरी मां मुझसे बोलीं कि हो सकता है मुझे किसी प्रोफ़ेशनल की मदद लेनी चाहिए. इस तरह से मैंने एक मनोचिकित्सक(Psychiatrist) के पास जाना शुरू किया.   जब मुझे पता चला कि मैं डिप्रेशन से गुजर रही हूं और कोई मुझसे पूछता कि मैं कैसी हूं तो मुझे झूठ बोलना पड़ता था कि मैं एकदम ठीक हूं. जबकि वास्तव में मैं बेहद बुरी स्थिति से गुज़र रही थी. 

दीपिका साथ ही कहती हैं कि यदि वो प्रोफ़ेशनल की मदद नहीं लेती तो उसका नतीज़ा न जाने क्या होता. जब मैं सही होने लगी तो मुझे समझ में आया कि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर लोग कुछ नहीं बोलते हैं. तब मुझे लगा कि मुझे इसके बारे में खुल कर बात करनी चाहिए’. फिर मैंने सोच लिया कि मुझे ऐसे लोगों की मदद करनी चाहिए. यही वजह है कि मैं अपनी बीमारी को लेकर लोगों के सामने आई और ‘Live Love Laugh’ फ़ॉउंडेशन की शुरुआत की. 

दीपिका ने साथ ही कहा कि कैसे भारत और कई देशों में माता-पिता मानसिक मुद्दों को लेकर बात करने में असहज होते हैं. जो भी इंसान मानसिक बीमारी से लड़ रहा है मैं बताना चाहती हूं कि आप अकेले नहीं हो’. साथ ही इस बात पर भी ज़ोर दिया कि समाज में मानसिक मुद्दों को लेकर जो भी गलतफ़हमियां हैं उन सबसे उन्हें बाहर निकलने और जागरूक होने की ज़रूरत है.