आज मां की जयंती पर, एक भावनात्मक ब्लॉग लिखते हुए अमिताभ बच्चन ने अपने इस ख़ूबसूरत रिश्ते के कई अनुभव और क़िस्से साझा किये हैं. कैसे वो तब भी उन्हें एक छोटे बच्चे की तरह ही मानती थीं, जबकि वो ख़ुद दादा बन चुके थे.

आप इस पूरे लेख को यहां पढ़ सकते हैं, लेकिन इस ब्लॉग के कुछ अंश हम आपके लिए ख़ास तौर पर लाये हैं.

वो लिखते हैं, ‘मां की जयंती है… 12 अगस्त … जब आप असफ़ल हुए, उसने सांत्वना दी … जब आप कामयाब हुए वो ख़ुशी से रोई … अपनी आख़री सांस तक वो जानना चाहती थी कि मैंने पेट भर के खाया या नहीं … और जब भी मैं बाहर जाता, वो जल्दी लौटने को कहती थी … हालांकि, मेरी पोती हो चुकी थी … लेकिन यही तो होती है, मां!’

उन्होंने ये भी लिखा कि तेजी बच्चन ही थीं, जिन्होंने उनके जीवन में फ़िल्मों के लिए शौक़ पैदा किया … ‘उन्होंने मुझे रंगमंच, फ़िल्में और संगीत से मिलवाया … वो एक शाम मुझे दिल्ली के कनॉट प्लेस के मशहूर Gaylords रेस्टोरेंट भी ले गयीं थीं’

उन्हें ड्राइव करने का बहुत शौक़ था. किसी को गाड़ी में बिठा कर कॉफ़ी पिलाने या अपने पसंदीदा होटल में खाना खिलाने ले जाने का मौक़ा वो कभी नहीं छोड़ती थीं.

वो जानती थी कि एक कवी को कुछ अच्छा लिखने के लिए, कुछ ख़ूबसूरत सोचने के लिए, समय चाहिए होता है और इसलिए मेरे पिता को उन्होंने वो सब कुछ दिया, जिसके बदले उनको काफ़ी त्याग करना पड़ा.

उनके स्टाइल और फ़ैशन का कोई जवाब नहीं था!

लाल गुलाब के लिए उनका प्यार, उनके बनाये हर घर में दिखता था!

स्कूल की एथेलेटिक्स मीट में मुझे और मेरे भाई को पोडियम पर जीतता देख, वो फ़ौरन अपना बॉक्स कैमरा निकाल कर तस्वीर खींचती थीं और फिर अपने बैडरूम को मेरे जीते हुए कप्स से सजाती.

वो कप्स, वो तसवीरें अब कहां ग़ायब हो गयी हैं, ये कोई नहीं जानता लेकिन उन्होंने अपने दोस्तों को, अपने साथियों को, हर उस इंसान को जिसको वो चाहती थी, उनको बहुत कुछ दिया… मेरे पास अब सिर्फ़ यादें है … और यही मेरे लिए सब कुछ है!