मैंने अनुपमा (Anupamaa) सीरियल देख लिया है. अब मुझे क़यामत से डर नहीं लगता. काहे कि क़यामत के दिन भी पूरी दुनिया मिलकर इतना नहीं रोएगी, जितना इस सीरियल में अकेले अनुपमा रोए डाल रही. अब तो अपन को डर लगता है कि किसी दिन अनुपमा की आंखें बाहर निकल कर निर्देशक महोदय को थपड़िया न दें. काहे कि जिस हिसाब से ये अनुपमा को रुला रहे, सरकार एक दिन उसकी आंखों को बाढ़ क्षेत्र घोषित कर देगी.

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मतलब इस सीरियल ने हर चीज़ की अति ही कर डाली है. कहने को तो अनुपमा (Anupamaa) का क़िरदार बड़ा प्रोग्रेसिव है, मगर निर्देशक महोदय की कृपा के चलते ये प्रोग्रेसिव कम, उंगलीबाज़ ज़्यादा मालूम पड़ता है. काहे कि पूरे सीरियल में अनुपमा को सबकी लेथन समेटते दिखाया गया है, बस वो ख़ुद की ही ज़िंदगी में फैला रायता नहीं समेट पा रही.

वहीं, अनुपमा सीरियल पूरे टाइम रिश्तों-विश्तों की बात करता रहता है, मगर बदनसीबी ये है कि इस सीरियल में कोई रिश्ता चलता न दिखाई देगा. पति वनराज शाह का अपनी सेक्रेटरी काव्या से रिश्ता है. काव्या अपने पति को छोड़ चुकी है. अनुपमा को इस अफ़ेयर की जानकारी होती है, तो वो वनराज को छोड़ देती है. 

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इस बीच अनुपमा (Anupamaa) के पुराने दिलजले आशिक़ अनुज कपाड़िया की एंट्री होती है, जिसके पास छोड़ने के लिए घंटा कुछ होता नहीं, इसलिए वो अपनी बहन मालविका को उसके बॉयफ़्रेंड से छुड़वा देता है. मालविका की जिससे शादी होती है, वो पति राक्षसी होता है. इसलिए अनुज, उन दोनों को भी एक-दूसरे से छुड़वा देता है. क्योंकि फिर वही, अनुज के पास ख़ुद छोड़ने को घंटा कुछ नहीं होता.

चलो, ये भी ठीक है. छुटा-छुटव्वल तो लाइफ़ में चलता है. मगर ये क्या ख़ुरपेंच के है कि ये लोग सबकुछ छोड़ने के बाद भी एक-दूसरे की लाइफ़ में गुत्थम-गुत्था करते हैं. सब के सब गले में फंसी हड्डी हो गए हैं, न उगले जाएं, न निगले जाएं. 

अनुज कपाड़िया तो इस मामले में और छीछीलेदर फैलाए है. मतलब ससुरा 26 साल से कुंवारा बैठा था. काहे कि अनुपमा को प्यार करता है. अबे अनुपमा न हुई, ऐश्वर्या राय हो गई कि आदमी को सलमान ख़ान बना छोड़ेगी. 

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वहीं, ज़रा निर्देशक की चालाकी देखिए. अनुज को अनुपमा का कॉलेज फ़्रेंड दिखाया गया है. वो लौंडा जो ताबड़तोड़ अंग्रेज़ी बोलने वाला बड़का बिज़नेसमैन है. दूसरी तरफ़, अनुपमा को दिखाया जा रहा खाली सिलबट्टे पर मसाला पीसने का एक्सपर्ट. क्यों? काहे कि अपने डायरेक्टर साहेब को भी मिक्सी में पिसे मसाले में स्वाद नहीं आता. चाहिए तो उसे भी सिलबिट्टे पर पिसा मसाला. 

अब एक और नौटंकी देखिए. सीरियल में मालविका को घरेलू हिंसा का शिकार दिखाया गया है, जो डिप्रेशन में है. एक दिन उसे पैनिक अटैक आता है, तो उसे संभालने कौन आता है…… अरे और कौन, अनुपम्म्म्म्म्माााा.

यहां जितना मालविका नहीं रो रही, उससे ज़्यादा अनुपमा टेसुएं गिराए दे रहीं. देखा-देखी अनुज भी अपनी छाती पीटे डाल रहा. ये देखकर हमारा मूड ख़राब. हम सोचे थे कि अभी अपना अनुजवा, अनुपमा संग इश्क़ फ़रमाएगा. और ये ससुरा निर्देशक है कि बोल रहा, नहीं, नहीं, अभी नहीं, अभी करो इंतज़ार…. अरे घंटा इंतज़ार. अपन को चाहिए नमक इश्क़ का. हाय रे!

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मगर स्क्रीन पर इश्क़ देखने की जितनी तड़प हमें थी, उससे कहीं ज़्यादा अपने अनुज भाई को करने की. तो बस लौंडा खेल कर गया. ऐसे मौक़े पर जब वो मालविका को सहारा दे, उसके बजाय अनुजवा, अनुपमा का हाथ पकड़ फैल गया. एक-आद बार तो चूमा भी. विद्या कसम मैंने अपनी आंखों से देखा. 

इतना ही नहीं, मौक़ा देख तो वो अनुपमा (Anupamaa) की गोदी में सिर ही रख दीहिस. मैं तो भइया बोला कि देख अनुपमा फ़ायदा उठा रहा. मगर अनुपमा उस वक़्त मेंटल हेल्थ पर मन ही मन रिसर्च कर रही थी, तो मेरी सुनी नहीं. इतने में वनराज भी आ गया और अनुज भी औकातानुसार गोदी से सरक लिया. बोला, देखो मेरी बहन की आंखें सदमे में काली पड़ गईं. मैंने गौर से देखा, बहना की आंखें गुलाबी ही थीं. काली तो मेरी पड़ रही थीं ये सीरियल देखकर.

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ख़ैर, इस वक़्त तक अनुपमा की मेंटल हेल्थ पर रिसर्च ख़त्म हो चुकी थी. उसे ‘तकिया फाड़’ इलाज मिल गया था. अनुपमा ने मालविका के हाथ में तकिया देकर उसे कूटने का निर्देश दिया. इधर तकिया फाड़ इलाज शुरू हो चुका था. मालविका धकापेल तकिया को मारे पड़ी थी. इधर मैं और उधर वनराज यही सोच रहे थे कि ये अनुपमा कितनी ज़ालिम है रे. अपनी खुन्नस मालविका के सहारे तकिया पर निकलवा रही.

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मतलब मेंटल हेल्थ का ये इलाज तो सिर्फ़ अमीरों के नसीब में है. ज़रा सोचिए कोई ग़रीब आदमी अपने घर के चद्दर-तकिया फाड़कर अपना ऐसा इलाज करने लगे तो मेंटल हेल्थ का तो पता नहीं, मगर घरवाले उसकी फ़िज़िकल हेल्थ ज़रूर बिगाड़ देंगे. 

अब मैं सोच रहा था कि आगे इस सीरियल में क्या होगा. क्या मालविका का पुराना बॉयफ़्रेंड वापस आएगा या पति? अनुज का 26 साल का इश्क़ मुकम्मल होगा या नहीं? वनराज इस भसड़ से अपना कुछ फ़ायदा उठा पाएगा कि नहीं? क्या काव्या वनराज के अड़ियल और छिछोरपन का आख़िरी मुकाम होगी या नहीं?

तब ही अचानक मेरे दिमाग़ को तगड़ा झटका लगा और मैं सोचने पड़ गया. व्हाट् आइ एम डूइंग ब्रो. मैं क्यों इस सीरियल को लेकर इतना जज़्बाती हो रहा. मगर तब तक देर हो चुकी थी. मैं इस महामारी रूपी सीरियल से पूरी तरह संक्रमित हो चुका था. मेरा छोटी गोल्ड की डबल डोज़ और रम की बूस्टर डोज़ भी इस संक्रमण से मुझे बाहर न ला पाई.

आख़िरकार, मैं अनुपमा (Anupamaa) सीरियल देख रहा हूं और अब मुझे क़यामत से डर नहीं लगता.