अनुराग कश्यप, बॉलीवुड का वो फ़िल्मकार जिसे हमेशा से उसकी लीक से हटकर फ़िल्मों के लिए जाना जाता है. गोरखपुर में जन्में अनुराग कश्यप ने अपनी फ़िल्मों में हिंदी सिनेमा का एक अलग रूप दिखाया. फ़िल्मों में देसीपन को कैसे दिखाना है, कोई अनुराग कश्यप की फ़िल्मों में देखो. छोटे शहर की कहानी को बड़े पर्दे पर बख़ूबी चित्रित करने वाले फ़िल्मकार हैं अनुराग कश्यप.

उनकी फ़िल्मों के लिए ये कहना बिलकुल भी ग़लत नहीं होगा, कि एक ख़ास तबका या दर्शक वर्ग बेसब्री से उनकी फ़िल्मों के रिलीज़ होने का इंतज़ार करता है. शायद इसकी सबसे बड़ी वजह उनकी फ़िल्मों के दमदार डायलॉग्स हैं. उनके डायलॉग्स ज़मीनी और देसी होते हैं. यक़ीन नहीं होता तो एक बार याद कीजिये अनुराग कश्यप की ब्लैक फ़्राइडे, देव डी, गुलाल, गैंग्स ऑफ़ वासेपुर, बॉम्बे टॉकीज, अग्ली, बॉम्बे वेलवेट, रमन राघव 2.0, मुक्केबाज़, सत्या और हाल ही में आई वेबसीरीज़ सेक्रेड गेम्स में उनके लिखे डायलॉग्स को.

तो आइये आज अनुराग कश्यप की फ़िल्मों के उन डायलॉग्स को पढ़ते हैं, जिनसे थिएटर तालियों और सीटियों की ही आवाज़ सुनाई देती है.

आखिर में यही कहेंगे कि अनुराग की फ़िल्मों ने उस बाउंडरी को तोड़ा, जिसके हिसाब से बॉलीवुड को हमेशा लगता रहा है कि सिर्फ़ हीरो का रोमांस करना, नाचना और एक्शन करना ही दर्शकों को तालियां और सीटी बजाने पर मजबूर करता है.

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