हम काफ़ी हद तक अजीब और भ्रमित करने वाले समय में रह रहें हैं. हर दिन अपने साथ नई जानकारी लेकर आता है. कभी मौसम, कभी महामारी, कभी ये, कभी वो – लिस्ट वाकई लंबी है.
News Cycle के चलते आप चिंता और डर की दुनिया में गोते न लगाए इसके लिए मनोरंजन जरूरी है. अगर फ़िल्में आपके कुछ सवालों का ज़वाब भी दे दे तो सोने पर सुहागा हो जाएगा.
तो चलिए आपको बताते हैं उन फ़िल्मों के बारे में जो आज की दुनिया को काफ़ी हद तक वैसा का वैसा दिखाती है और अलग-अलग चीज़ें Explain करती हैं:
1. Jojo Rabbit (2019)
फ़िल्म का हीरो, जोजो, 10 साल का बच्चा है दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बड़ा हो रहा है. हिटलर उसका आदर्श है और काल्पनिक दोस्त भी. अंध राष्ट्रवाद में डूबे लोग कैसे सोचते हैं और क्या करते हैं, उसकी झांकी इस फ़िल्म में आपको मिल जायेगी. अंध राष्ट्रवाद, प्रोपगैंडा और नफ़रत से ख़तरों से रूबरू करवाती ये फ़िल्म आपको बांधे रखेगी.
2. Network (1976)
अगर कोई एक फ़िल्म है जो TRP के भूखे ब्रॉडकास्ट न्यूज़ चैनलों का सच सामने लाती है तो वो ये फ़िल्म है. फ़िल्म भले ही कई दशकों पुरानी हो मगर टीवी के पर्दे के पीछे का Decision Making System वही है. ये फ़िल्म उसी को उजागर करती है और आपको एक समझदार दर्शक बनाती है. TRP और Viewership पाने की होड़ में मीडिया कितना बेईमान हो सकता है, इस फ़िल्म में अच्छे से बताया गया है.
3. मुल्क़ (2018)
धर्म के नाम पर फैली नफ़रत और उसपर फर्ज़ी राष्ट्रवाद का तड़का लग जाए तो क्या क्या होगा, यही बता की कोशिश करती है ये फ़िल्म. फ़िल्म में मुराद अली मोहम्मद (ऋषि कपूर) की देशभक्ति पर पर सवाल उठते हैं और यही उनकी लड़ाई बन जाती है. किसी के धर्म को उसके खिलाफ़ कैसे इस्तेमाल किया जाता है, इसी पर है ये फ़िल्म.
4. Sorry We Missed You (2019)
डिलीवरी और E-Commerce के पूरे सिस्टम में हम सबसे नीचे काम रहे लोगों का चेहरा, उनकी दिक्क़ते, उनके शोषण आदि को नहीं जानते हैं. कैसे ये Gig Economy लोगों का फ़ायदा उठाती है, इसी को सामने लाती है ये फ़िल्म.
5. Office Space (1999)
ये डार्क कॉमेडी ऑफ़िस और कॉर्पोरेट कल्चर पर आधारित है जो हमारी रोज़ की ज़िंदगी पर Capitalism के असर को दिखाती है. फ़िल्म पूंजीवादी समाज और इंडस्ट्री पर व्यंग्य है जिनमें कामगारों के कर्तव्य और जिम्मेदारियां उनके वरिष्ठों की सनक पर निर्भर करती है.
6. Bombshell (2019)
कार्यस्थल पर होने वाले यौन शोषण और उससे लड़ने में क्या-क्या दिक्क़ते आती हैं, उसे ये फ़िल्म बख़ूबी बयान करती है. ये फ़िल्म #MeToo मूवमेंट के संदर्भ में है और सच्ची घटना पर बनी है.
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7. आर्टिकल 15
जातिगत भेदभाव और उससे जुड़े अपराधों के बारे में हम आए दिन पढ़ते रहते हैं. शहरों से दूर, गांवों में जाति कितनी बड़ी समस्या है, हर लेवल पर, हर क्षेत्र में – इसी को दिखाने की कोशिश करती है ये फ़िल्म.
8. थप्पड़
वक़्त बदला मगर महिलाओं के साथ कितना इंसाफ हुआ? घरों के अंदर लुटती-पीटती, घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के आत्म-सम्मान और उनकी लड़ाई को बख़ूबी बयां करने की कोशिश करती है ये फ़िल्म.
9. शिकारा
कश्मीर मुद्दे पर लोगों के नफ़रत, पागलपन और तरह-तरह धारणाओं को करने बेहतर करने का प्रयास है करती है ये फ़िल्म. फ़िल्म 90s के दौर में कश्मीरी पंडितों के पलायन और उस समय की उथल-पुथल को सामने रखती है.
10. Aranyer Din Ratri (1970)
सत्यजीत रे की ये फ़िल्म ‘हम’ और ‘वो’ की विभाजकारी नीति को दर्शाते हुए इसके ख़तरों से अवगत कराती है. ये फ़िल्म एक दूसरे के प्रति हमदर्दी और इज्ज़त के महत्व को सामने रखती है, भले ही ‘वो’ किसी भी रंग, रूप, जगह, जाति, धर्म से क्यों न हो.
11. Chakra (1981)
शहरों में हमारी आंखों के सामने हो कर भी न होने वाले मज़दूरों की कहानी कहती है ये फ़िल्म. गांव की ग़रीबी से निकलकर शहर आना कितना अच्छा या बदतर होता है, यही बयां करती है ये फ़िल्म.
आप इस लिस्ट में कौन सी फ़िल्म जोड़ना चाहेंगे? कमेंट सेक्शन आपकी राह देख रहा है.