विज्ञापन क्षेत्र का एक शब्द है ‘प्रॉडक्ट प्लेसमेंट’. दरअसल ये प्रचार करने का एक तरीका है. इसमें किसी ख़ास ब्रांड के प्रोडक्ट को बहुत सावधानी से फ़िल्म में जगह दी जाती है. इसकी ख़ासियत ये होती है कि देखने वाले को पता भी नहीं चलता कि वो किसी विज्ञापन को देख रहा है और विज्ञापनदाता का काम भी हो जाता है. इस काम को करने में रचनात्मकता की ज़रूरत पड़ती है. कहानी का प्रवाह भी न टूटे और ब्रांड भी लोगों की नज़रों में आ जाए, दोनों काम एक साथ करना है.

ये हुई वो बात जो होनी चाहिए, लेकिन हम बात करेंगे उनकी, जिन्होंने इस काम को सही तरीके से नहीं किया. इन फ़िल्मों ने प्रोडक्ट प्लेसमेंट के नाम पर थोड़ी बहुत क्रिएटिविटी भी नहीं दिखाई, सीधे प्रोडक्ट को उठाया और फ़िल्म की कहानी के ऊपर रख दिया. देखने वाले आराम से पहचान सकता है कि कहां फ़िल्म चल रही और कहां विज्ञापन.

देखते हैं इन 11 फ़िल्मों को जिनमें प्रोडक्ट प्लेसमेंट के नाम पर मज़ाक हुआ है.

1. Mission Istanbul और Mountain Dew

अगर आप इस फ़िल्म के बारे में जानते हैं तो हमारी संवेदनाएं आपके साथ हैं और अगर आप इस फ़िल्म का नाम पहली बार सुन रहे हैं तो आप अब तक किस्मत के धनी थे. इस फ़िल्म में ऐसा कुछ भी नहीं था जिसके लिए इसे याद रखा जाए सिवाए Mountain Dew के विज्ञापन के. हद तो तब हो जाती है जब एक सीन में फ़िल्म के मुख्य तीन किरदार Mountain Dew की टैग लाइन भी बोल देते हैं.

2. कोई मिल गया और Bournvita

फ़िल्म देखते हुए तो कभी-कभी ऐसा भी लगता है कि रोहित की शक्तियों का राज़ जादू नहीं Bournvita है. फ़िल्म के सिर्फ़ पहले पार्ट में नहीं, बल्की तीनों पार्ट में Bournvita मौजूद है. फ़िल्म देखने के दौरान कोई भी इस प्रोडक्ट को चाह कर भी इग्नोर नहीं कर पाएगा.

3. जानी दुश्मन और Sansui

जानी दुश्मन अपने-आप में अनोखी फ़िल्म थी.कहानी, किरदारी और तकनीक के आधार पर इसकी काफ़ी आलोचना की जा चुकी है. हम सीधे प्रोडक्ट प्लेसमेंट वाले हिस्से पर जाते हैं. जैसा कि शुरू में हमने बताया था कि प्रोडक्ट प्लेसमेंट मतलब चुपके से प्रचार करना. इस फ़िल्म को इससे कुछ मतलब ही नहीं है.जानी दुश्मन में पूरा का पूरा विज्ञापन चलती फ़िल्म के बीच में दिखाता है, वो भी बैक टू बैक दो बार.

4. यादें और पास-पास

ऐसी बहुत सी चीज़ें होती हैं जिसकी वजह से एक परिवार साथ रहता है, रिश्तों में मजबूती होती है. इस फ़िल्म को देखने के बाद उन कारणों में एक कारण जुड़ जाता है और वो कारण है पास-पास. लोग खाना खाते हैं क्योंकि उन्हें भूख लगता है. लेकिन यादें में लोग खाना इसलिए खाते हैं क्योंकि उन्हें खाने के बाद पास-पास खाना पसंद है.

5. हाल्फ़ गर्लफ्रेंड और लायरा, क्लोज़-अप, हीरो, मेक माई ट्रिप

चेतन भगत की नोवल पर फ़िल्म बनाना अपने आप में एक टैलेंट है, लेकिन उससे भी बड़ा टैलेंट है एक साथ चार प्रोडक्ट को प्लेस करना, जहां एक सीन में सबसे पहले लायरा पर्दे पर दिखता है उसके बाद एक झटके में तीन और ब्रांड एक साथ पर्दे पर नज़र आते हैं.

6. मेरे डैड की मारुती और मारुती अर्टिगा

फ़िल्मों में प्रोडक्ट प्लेसमेंट बच्चे किया करते हैं जो लेजेंड होते हैं वो प्रोडक्ट के ऊपर पूरी फ़िल्म बना देते हैं. मारुती ने 2012 में अपनी इस कार को बाज़ार में उतारा था और 2013 में ये फ़िल्म आई थी ताकि इसे लोगों के बीच Popular किया जा सके.

7. शहंशाह और ब्लैक डॉग

एक सीन में अमरीश पुरी कहते हैं कि जब भी वो किसी ‘गोरी तितली’ को देखते हैं तो उनको ब्लैक डॉग पीने का दिल करता है. दर्शक के सामने किसी भी ब्रांड का इससे बुरा प्रेजेंटेश्न नहीं हो सकता.

8. युवराज और नाइकी

प्रोडक्ट प्लेसमेंट के चक्कर में पूरे फ़िल्म में बेचारे अनिल कपूर को अपने मौज़े दिखाते रहने पड़े हैं. एक तो फ़िल्म बुरी ऊपर से इतने अच्छे कलाकार के साथ ऐसा सलूक.

9. चुप-चुप के और टाईड

फ़िल्म का नाम भले ही ‘चुप-चुप के’ है लेकिन उन्होंने प्रोडक्ट प्लेसमेंट खुल्लम-खुल्ला किया है. एक सीन में राजपाल यादव बिना किसी शर्म के टाईड का प्रचार करते दिखते हैं. उनसे जो काम बचा रह गया उसको डायरेक्टर ने कैमरा एंगल से पूरा कर दिया.

10. फिर हेरा फेरी और डॉमिनोज़

डायरेक्टर ने न ही हमारे प्यारे बाबू राव गणपत राव आप्टे से प्रोडक्ट प्लेसमेंट करवाया बल्की डॉमिनोज़ के ऑफ़र भी बतलवाए. हालांकि ये प्रोडक्ट प्लेसमेंट इतना बुरा भी नहीं था फिर भी विज्ञापन जैसा प्रतीत होता है.

11. आबरा का डाबरा और पार्ले-जी

पार्ले-जी पहले से ही दुनिया का सबसे बड़ा ग्लुकोज़ बिस्किट ब्रांड है उसे ऐसे प्रोडक्ट प्लेमेंट की ज़रूरत भी नहीं थी, फिर भी उन्होंने की. और प्रोडक्ट प्लेस किया भी तो ऐसी फ़िल्म में, जो हैरीपॉटर की खुरचन से बनी थी. डायरेक्टर ने टीवी के विज्ञापन को बिना किसी कांट-छांट के फ़िल्म में चला दिया, वहां मन नहीं भरा तो एक शॉट अख़बार में छपने वाले विज्ञापन का.