बचपन में भले हमें सिखाया गया हो कि पड़ोस में रहने वाली लड़की हमारी बहन होती है, पर इसके बावजूद पागल-प्रेमी हो चुका मन ये बात कहां मनाता है? कभी छत पर घंटों बैठ कर पड़ोस के छज्जे पर उसे तलाश करना, तो कभी क्रिकेट खेलते वक़्त जानबूझ कर बॉल को उनके घर में फेंकना कि बस एक बार, सिर्फ़ एक बार उसे देख सकें. बचपन की कुछ ऐसी ही खट्टी-मिठ्ठी यादों को जवानी के पलों में अपनी फ़िल्म ‘बहन होगी तेरी’ में समेट कर लाये हैं, श्रुति हसन और राजकुमार राव.

इस मिडिल क्लास फ़ैमिली की स्टोरी को फ़िल्म के रूप में ढालने का काम किया है निर्देशक अजय के पन्नालाल ने, जो बतौर निर्देशक इससे अपनी शुरुआत कर रहे हैं.

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