1954 वो साल है जब बॉलीवुड में पहली बार फ़िल्म फ़ेयर अवॉर्ड्स दिए गए थे. तब से लेकर अब तक फ़िल्म फ़ेयर हर साल फ़िल्मों से जुड़े कई अवॉर्ड यहां काम करने वाले कलाकारों को देता आ रहा है ये मंच. जैसे बेस्ट एक्टर/एक्ट्रेस, डायरेक्टर, फ़िल्म, सिंगर आदि. मगर जब फ़िल्म फ़ेयर अवॉर्ड की शुरुआत हुई थी तब इसमें बेस्ट सिंगर के लिए एक ही अवॉर्ड दिया जाता था, फिर चाहे वो मेल प्लेबैक सिंगर हो या फ़ीमेल सिंगर.
मगर एक सिंगर की वजह से फ़िल्म फ़ेयर को प्लेबैक सिंगिंग के लिए दो कैटेगरी बनानी पड़ी. मेल सिंगर्स के लिए अलग और फ़ीमेल सिंगर्स के लिए अलग. वो सिंगर कौन थीं और उनकी खोज किसने की थी इससे जुड़ी एक इंटररेस्टिंग स्टोरी आज हम आपके लिए लेकर आए हैं.
बात 1966 की है. इसी साल इंडस्ट्री के जुबली कुमार उर्फ़ राजेंद्र कुमार की एक सुपरहिट फ़िल्म रिलीज़ हुई थी सूरज. इसमें वैजयंती माला, मुमताज़ और अजीत जैसे कलाकार भी थे. इस फ़िल्म के गाने भी सुपरहिट हुए थे जैसे ‘बहारों फूल बरसाओ’, ‘तितली उड़ी उड़ जो चली.’
इस फ़िल्म का संगीत दिया था शंकर जयकिशन ने. सूरज फ़िल्म के दो गीतों ‘बहारों फूल बरसाओ’ और ‘तितली उड़ी उड़ जो चली’ के बीच फ़िल्म फ़ेयर में बेस्ट सिंगर का क्लैश हो गया. ‘बहारों फूल बरसाओ’ को महोम्मद रफ़ी साहब ने गया था और ‘तितली उड़ी’ को गाया था नई पार्श्व गायिका शारदा ने. फ़िल्म फ़ेयर के बेस्ट सिंगर के अवॉर्ड के लिए इन दोनों को नॉमिनेट किया गया था.
पुरस्कार ज़रूर रफ़ी साहब को मिला, लेकिन इसके बाद से फ़िल्म फ़ेयर ने बेस्ट फ़ीमेल और मेल प्लेबैक सिंगर के अवॉर्ड की दो अलग-अलग कैटेगरी बनाने की घोषणा की थी. यानी शारदा जी की वजह से इस कैटेगरी को दो भागों में बांटा गया. वैसे शारदा जी खोज का श्रेय जाता है बॉलीवुड के शो मैन राज कपूर जी को.
तेहरान में किसी शो में उन्होंने शारदा जी को गाते हुए सुना था. वहीं से वो उनकी आवाज़ के फ़ैन हो गए और उन्हें मुंबई आकर उनसे मिलने को कहा. मुंबई में राज कपूर ने शारदा जी को शंकर जय-किशन जी से मिलवाया. शंकर जी शारदा की आवाज़ से इंप्रेस हो गए और उन्होंने ठान लिया कि वो शारदा जी को पहला मौक़ा देंगे. अपनी अगली फ़िल्म सूरज में उन्हें ये मौक़ा दिया, जिसके लिए वो बेस्ट सिंगर के फ़िल्म फ़ेयर के अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट हुई थीं.
आप ये दिलचस्प क़िस्सा यहां सुन सकते हैं.