‘मुगल-ए-आज़म’ न सिर्फ़ एक ऐतिहासिक फ़िल्म है, बल्कि हिंदी सिनेमा में मील का पत्थर है. इस फ़िल्म ने कामयाबी की जो इबारत लिखी वो इसके बाद कोई फ़िल्म नहीं लिख सकी. सेट, भव्यता, कॉस्ट्यूम्स, डायलॉग, एक्टिंग के मामले में आज भी इसका कोई मुकाबला नहीं है. रिलीज़ के बाद इस फ़िल्म ने न सिर्फ़ थियेटर में बल्कि सिनेमा के इतिहास में वो धूम मचाई जिसकी शायद किसी को उम्मीद नहीं थी.

लेकिन इस फ़िल्म के बनने की कहानी खुद किसी फ़िल्मी कहानी से कम नहीं है. फ़िल्म के बारे में आइडिया से लेकर इसके पर्दे पर आने तक लगभग एक दशक से ज़्यादा का समय लगा और इस सफ़र में कई ऐसी घटनाएं हुईं जिन्हें जानकर आपको हैरानी होगी.

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1. इस फ़िल्म के डायरेक्टर के.आसिफ़ को इस फ़िल्म का ख़्याल 1944-45 के दौर में आया था. उन्हें इस फ़िल्म की प्रेरणा इम्तियाज़ अली ताज के एक नाटक से मिली थी, जो सलीम और अनारकली की प्रेम कहानी पर आधारित थी. उस वक़्त तक इस कहानी के दो स्क्रीन वर्ज़न पहले से ही मौजूद थे. एक 1928 में साइलेंट फ़िल्म के रूप में और दूसरी, 1935 में बोलती फ़िल्म थी. दोनों में अनारकली का किरदार मशहूर अदाकारा सुलोचना ने निभाया था.

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2. ये फ़िल्म 1.5 करोड़ की लागत में बनी थी, जबकि ‘जब प्यार किया तो डरना क्या’ गाने का शीशमहल बनाने में ही 10 लाख रुपये खर्च हो गए थे.

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3. मुगल-ए-आज़म देश के 150 सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई थी और करीब डेढ़ दशक तक बॉलीवुड की सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फ़िल्म थी. मुगल-ए-आज़म की कमाई का रिकॉर्ड 15 साल बाद ब्लॉकबस्टर फ़िल्म ‘शोले’ ने तोड़ा था.

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4. फ़िल्म की यूएसपी है इस फ़िल्म की भव्यता. सेट और कॉस्ट्यूम्स की बारीकियों पर भी खूब ध्यान दिया गया था. इसका अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि फ़िल्म के कॉस्ट्यूम्स को सिलने के लिए दर्ज़ी दिल्ली से बुलाए गए थे, एम्ब्रॉयडरी के लिए कारीगरों को सूरत से बुलाया गया था, सुनार हैदराबाद से आए थे, मुकुट डिज़ाईन करने के लिए कोल्हापुर के कारीगर आए थे, लोहार राजस्थान से और मोची आगरा से बुलाए गए थे.

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5. फ़िल्म में लड़ाई के सीन को फ़िल्माने में 2 हजार ऊंट, 4 हज़ार घोड़े और 8 हजार सैनिकों का इस्तेमाल किया गया था.

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6. फ़िल्म की शूटिंग जितनी महंगी थी, उतनी ही संघर्षपूर्ण भी. शुरुआत में आसिफ़, सिने स्टूडियो के मालिक शिराज अली हाकिम के साथ मिलकर फ़िल्म बना रहे थे, लेकिन 1947 में विभाजन के बाद हाकिम पाकिस्तान चले गए और आसिफ़ अकेले रह गए.

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7. दिलीप कुमार और मधुबाला एक दूसरे से प्यार करते थे. लेकिन, मुगल-ए-आज़म की दहलीज़ पर आते-आते दोनों के बीच दरार पड़ चुकी थी. आधी फ़िल्म शूट हो जाने तक हालात ऐसे थे कि दोनों एक दूसरे से बात भी नहीं करते थे. याद कीजिए फ़िल्म का वो रूमानी दृश्य जब सलीम और अनारकली के होंठों के बीच में सिर्फ़ एक पंख होता है. ये दृश्य सबका दिल धड़का देता है, लेकिन खुद दिलीप कुमार और मधुबाला उस वक़्त एक दूसरे से बिल्कुल बात नहीं करते थे.

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8. एक दृश्य में सलीम को अनारकली के गाल पर थप्पड़ मारना था. दिलीप कुमार इतने गुस्से में थे कि उन्होंने मधुबाला को एक ज़ोरदार थप्पड़ जड़ दिया और मधुबाला के आंसू निकल आए.

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9. जिन दृश्यों में मधुबाला बेड़ियों में जकड़ी हुईं हैं, उनमें नेचुरल फ़ील लाने के लिए मधुबाला ने लोहे की असली बेड़ियां पहनी थीं. इन्हें पहनकर उन्हें चलने और खड़े होने में काफ़ी मुश्किल होती थी, लेकिन उन्होंने नकली बेड़ियों का इस्तेमाल नहीं किया.

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किसी भी फ़िल्म के बनने के दौरान ऐसी कई कहानियां होती हैं जो पर्दे के पीछे रह जाती हैं. दर्शक तो वही देखते हैं जो पर्दे पर दिखता है. फ़िल्म बनाने में की गई मेहनत से ही कोई भी फ़िल्म दर्शकों के दिलों में उतर पाती है. मुगल-ए-आज़म ने भी ऐसे ही मेहनत और संघर्ष के बाद दर्शकों पर जो जादू चलाया वो आज तक बरकरार है.