मूड ख़राब हो, मूड अच्छा करना हो, चिल करना हो, बोरियत मिटानी हो समेत चाहे कोई भी कंडीशन हो, जब लाइफ़ में थोड़ा एंटरटेनमेंट चाहिए होता है, तो लोग फ़िल्मों का ही रुख करते हैं. हालांकि, जब हम रिफ़्रेश मूड में होते हैं, तो हम एंटरटेनमेंट से ज़्यादा क्रिएटिविटी ढूंढते हैं और इस मामले में शॉर्ट फ़िल्म से बढ़िया ऑप्शन भला और क्या हो सकता है. ये आपका समय भी बचाती हैं और उतने ही टाइम में आपको गुड कंटेंट भी दे देती हैं. इन में हमेशा कोई न कोई मैसेज छुपा होता है, जो फ़िल्मों से कई ज़्यादा प्रभावशाली होता है.   

यहां हम आपको उन 10 बढ़िया शॉर्ट फ़िल्मों के बारे में बताएंगे, जो आपको ज़रूर देखनी चाहिए.

1. ख़ुजली

साल 2017 में आई इस शॉर्ट फ़िल्म को सोनम नायर ने डायरेक्ट किया था. ये जैकी श्रॉफ़ (Jackie Shroff) की पहली शॉर्ट फ़िल्म थी, जिसमें उनके साथ नीना गुप्ता (Neena Gupta) लीड रोल में थीं. ये मूवी एक ओल्ड एज कपल की ज़िंदगी पर फ़ोकस है, जो सेक्स को एक नए सिरे से एक्सप्लोर कर रहे हैं. ये एक ओल्ड कपल के बारे में है, जो फ़िल्म ‘फ़िफ्टी शेड्स ऑफ़ ग्रे’ से इंस्पायर्ड हैं. फ़िल्म में जैकी एक कॉमन मैन का क़िरदार निभा रहे हैं, जिन्हें ख़ुजली की समस्या है. एक बार जब वो अपने बेटे के रूम में ख़ुजली की क्रीम ढूंढने जा रहे होते हैं, जहां उन्हें हथकड़ी मिलती है. इनके बारे में बात करते हुए कैसे जैकी अपनी पत्नी नीना से सेक्स और ह्यूमर को एक साथ जोड़ते हैं, फ़िल्म में यही दिखाया गया है. इसे आप यूट्यूब पर देख सकते हैं. 

2. जूस

शेफ़ाली शाह के बेहतरीन परफॉरमेंस के साथ ये महिला सशक्तिकरण के बारे में बात करती हुई और अपने अधिकारों को लेकर बुदबुदाती हुई फ़िल्म है. इसमें उन यंग भारतीय महिलाओं का चित्रण किया गया है, जिनकी ज़िंदगी किचन तक ही सीमित है. वो अपना काम संभालती रहती हैं, वहीं उनके पति मेहमानों के साथ गप्पे मार रहे होते हैं. ये फ़िल्म बिना कहे भी बहुत कुछ कह जाती है.

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3. ख़ीर

ख़ीर दो पीढ़ियों एक बच्चा और उसके दादा और उनके लव और रिलेशनशिप पर नज़रिए के बारे में एक शॉर्ट फ़िल्म है. मूवी में अनुपम ख़ेर कैसे अपनी पोती को सांत्वना देते हैं, जब वो ग़लती से उनकी दोस्त को उनकी प्रेमिका समझ बैठती है, फ़िल्म उसी के बारे में है. उसकी पोती मायूस हो जाती है, क्योंकि उसे लगता है कि उसके दादा की दोस्त उसकी दादी की जगह ले लेगी. ये इस विचार को सामान्य बनाने का भी प्रयास करती है कि उम्र और किसी के साथ रहने की इच्छा दो असंबंधित चीज़ें हैं.

4. जय माता दी

ये फ़िल्म काफ़ी मज़ेदार है, जो कि गैर शादीशुदा कपल पर फ़ोकस करती है. ये कपल एक साथ रहना चाहता है, लेकिन समाज उन्हें ऐसा करने नहीं देता. फ़िल्म में कैसे अनन्या की माता उन्हें बचाने आती हैं, जब वो अपने बॉयफ्रेंड सूरज के साथ लिव-इन में रहने का फ़ैसला करती है. ये फ़िल्म आपको एक तरफ़ हंसाएगी तो एक तरफ़ आपको समाज की इस दकियानूसी सोच की तरफ़ विचार करने पर मजबूर कर देगी.

5. नेकेड

ये फ़िल्म उन सभी लोगों के बारे में है, जो सोशल मीडिया पर औरतों को बुरा-भला कहते हैं. साथ ही ये उन महिलाओं के लिए भी हैं, जो लोगों की इस हरकत को बर्दाश्त करते हुए इस पर आवाज़ नहीं उठाती हैं. फ़िल्म ‘सैंडी’ (कल्कि कोचलिन) की कहानी से शुरू होती है, जिसको उसकी दोस्त से पता चलता है कि सोशल मीडिया पर उसका सेक्स टेप लीक हो चुका है. जब वो इंटरनेट की ख़बरों को पढ़ती है, तो हर जगह उसको गालियां और बुरा-भला कहने वाले लोग मिलते हैं. दूसरी तरफ़ ‘रिया’ (रिताभरी) एक पत्रकार के रोल में दिखाई गई हैं, जो सैंडी के साथ इंटरव्यू की तैयारी कर रही होती है. दोनों की इंटरव्यू में मुलाकात होती है, जिसके ज़रिए वो बताती हैं कि कंप्यूटर के सामने बैठकर गाली देना बहुत आसान होता है. महिलाओं को ये सब नज़रअंदाज़ न करके उसे रिपोर्ट करना चाहिए. 

6. छुरी

इस फ़िल्म में अनुराग कश्यप, सुरवीन चावला और टिस्का चोपड़ा ने काम किया है. इसमें अनुराग एक बेवफ़ा पति के क़िरदार में दिखे हैं. ‘छुरी‘ एक ऐसी पत्नी की कहानी है जो अपने पति के लव अफ़ेयर्स से थक चुकी है और उसकी लवर के साथ हिसाब चुकता करने का फ़ैसला करती है. लेकिन इसमें कोई धमकी या कठोर शब्द शामिल नहीं हैं, पत्नी सिर्फ अपने बच्चों के लिए एक शेड्यूल निर्धारित करना चाहती है, इसलिए वो विनम्रता से समझौता करने का सुझाव देती है. कैसे एक महिला अपने पति के अफ़ेयर को हैंडल करती है, फ़िल्म उसी के बारे में है.

7. नवाब

अगर इस फ़िल्म को अपारशक्ति ख़ुराना के बेस्ट कामों में से एक कहें, तो ग़लत नहीं होगा. ये फ़िल्म एक आदमी और एक कुत्ते की कहानी बताती है, जो उसे मिला था जब वो अपनी एक्स वाइफ़ के साथ था. अब उनका तलाक हो चुका है और इसलिए वो अपने और अपने कुत्ते ‘नवाब’ के साथ रहने के लिए जगह ढूंढ रहा है. डॉग शेल्टर से लेकर सड़क के बीच में परित्याग तक, कहानी एक बिंदु से दूसरे बिंदु पर जाते हुए दर्शकों को नुकसान और दुःख के बारे में एक उल्लसित और प्यारी कहानी में गहराई से ले जाती है. 

8. खाने में क्या है?

ये शॉर्ट फ़िल्म सेक्सुअलिटी के उस पहलू पर ध्यान आकर्षित करती है, जहां महिलाओं की इच्छाओं पर केवल बंद दरवाजों के पीछे फुसफुसाते हुए ही चर्चा की जाती है. ये एक बेटी की मां के साथ सेक्स बातचीत पर दिल को छू लेने वाली प्यारी और मज़ेदार कहानी है. इसमें महिलाएं केवल रसोई में पकाए जाने वाले व्यंजनों की सामग्री के बारे में बात कर रही हैं, लेकिन वो बात धीरे-धीरे क्या मोड़ लेती है. ये आपको फ़िल्म देखने के बाद पता चल जाएगा.

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9. बुद्ध अवेकनिंग

पितृसत्ता इतने लंबे समय तक कायम रहने का एक कारण ये है कि जहां कुछ महिलाओं ने अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई, वहीं अधिकांश महिलाओं ने ऐसा कभी नहीं किया. ये मूवी महिलाओं पर रोशनी डालती है, जिनकी दुनिया अलग-अलग है. लेकिन वो अन्याय और लिंग पूर्वाग्रह के फिल्टर के माध्यम से देखे जाने पर वो एक जैसा जीवन साझा करती हैं. इस फ़िल्म को फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड के लिए भी नोमिनेट किया गया था.

10. घर की मुर्गी

ये मूवी आंख खोल देने वाली है, जिसमें फ़ैमिलीज़ का घर की बहू जो होममेकर्स हैं उनके साथ बुरे बर्ताव को दिखाया गया है. इसमें साक्षी तंवर ने बेहतरीन भूमिका निभाई है. फ़िल्म शानदार ढंग से गृहणियों के जीवन को दर्शाती है और इस बात पर प्रकाश डालती है कि वे कितनी महत्वपूर्ण हैं. इसे आप यूट्यूब पर देख सकते हैं. 

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