भगवान आभाजी पलव, जिन्हें भारतीय सिनेमा में भगवान दादा के नाम से जाना जाता है. एक वक़्त था जब इनका नाम भारत के सबसे अमीर एक्टर में शामिल था. मगर वक़्त ने किया कुछ ऐसा सितम कि भगवान दादा की पूरी ज़िंदगी ताश के पत्तों की तरह ढह गई. हिंदी सिनेमा में अपने डांस के लिए फ़ेमस हुए भगवान दादा एक्टर और डायरेक्टर दोनों थे इन्होंने अपने करियर की शुरुआत 1938 में फ़िल्म ‘बहादुर किसान’ (Bahadur Kisan) से की थी. मगर इन्हें पहचान 1952 में गीता बाली के साथ आई फ़िल्म ‘अलबेला’ से मिली. इस फ़िल्म ने भगवान दादा को बॉलीवुड का वो स्टार बना दिया था, जिसके डांस और हाव-भाव के आगे बॉलीवुड की हिरोइनें भी फ़ेल थीं.

Bahadur Kisan
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भगवान दादा (Bhagwan Dada) ने अपने करियर में बहुत दौलत-शोहरत कमाई. उस दौर में वो समुद्र किनारे एक 25 कमरों वाले बंगले में रहते थे. उनके घर में नौकरों की पूरी फ़ौज थी. घर के गैरेज में आलीशान गाड़ियों को लाइन लगी थी. फिर ऐसा क्या हुआ कि इस उम्दा कलाकार को अपने आख़िरी के दिन तंगहाली में मुंबई की एक चॉल में बिताने पड़े.

bhagwan dada
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आइए भगवान दादा के निजी और हिंदी सिनेमा के जीवन के बारे में जानते हैं:

भगवान दादा फ़िल्मों में आने से पहले अपने पिता की तरह ही मुंबई की एक टेक्सटाइल मिल में काम करते थे. मगर फ़िल्मस्टार बनने का सपना भी देखते थे. इसी सपने को पूरा करने के लिए भगवान दादा ने फ़िल्ममेकिंग सीखी और लो बजट फ़िल्में बनाना शुरु किया. अपनी फ़िल्मों में कास्ट का खाने से लेकर उनके कपड़ों तक का पूरा खर्चा भगवान दादा ही उठाते थे. वहीं से वो अपने डांस के लिए फ़ेमस हो गए.

फिर 1938 में इन्होंने ‘बहादुर किसान’ नाम की एक फ़िल्म बनाई जिसको वो सह-निर्देशक थे. हालांकि, इस फ़िल्म से उन्हें कुछ ख़ास पहचान नहीं मिली. इसके बाद, भगवान दादा ने 1951 में राज कपूर के कहने पर सोशल फ़िल्म अलबेला बनाई, जो उस साल की बड़ी हिट साबित हुई. 

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‘अलबेला’ के बाद से इनकी सफलता का पहिया चल पड़ा और भगवान दादा ने ‘झमेला’ और ‘भागम भाग’ जैसी फ़िल्में बनाईं, जो बड़ी हिट साबित हुईं. सफलता के साथ-साथ कमाई भी अच्छी होने लगी और उन्होंने जुहू में समुद्र किनारे 25 कमरों का बंगला ख़रीदा. इनके पास 7 लग्ज़री गाड़ियां थीं, जिन्हें वो सात दिन के हिसाब से चलाते थे. उस दौर में भगवान दादा भारत के सबसे अमीर और सबसे ज़्यादा फ़ीस लेने वाले अभिनेताओं में से एक थे. उनके साथ इस लिस्ट में दिलीप कुमार, देव आनंद और राज कपूर भी शामिल थे.

Bhagwan Dada
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मगर एक बुरी लत ने सबकुछ बर्बाद कर दिया. भगवान दादा को जुएं और शराब की बुरी लतें थीं. इसी के कारण वो बहुत सारे कर्ज़े में डूब गए और अपना कर्ज़ा चुकाने के लिए उन्हें अपनी सभी महंगी चीज़ों को बेचना पड़ा. 50 के दशक में अपने करियर के आख़िरी समय में उन्होंने काम की कमी के चलते कैरेक्टर रोल करना शुरु कर दिया. उन्हें काम भी मिलना कम हो गया था इसलिए पैसों के चलते भगवान दादा ने अपनी कार और घर सब बेच दिया.

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जुएं और शराब ने भगवान दादा को वहीं दोबारा पहुंचा दिया जहां से वो उठकर आए थे. वो दोबारा अपनी मुंबई के दादर की एक ख़स्ताहाल चॉल में रहने चले गए. इतने महान अभिनेता के जब बुरे दिन आए तो किसी भी इंडस्ट्री वाले ने उनका साथ नहीं दिया. इसके बाद, साल 2002 में 89 साल की उम्र में भगवान दादा का हार्ट अटैक से निधन हो गया और हिंदी सिनेमा का एक अनमोल नगीना तंगहाली की ज़िंदगी से निजात पाकर भगवान के पास चला गया.

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आपको बता दें, रेसलिंग कम्यूनिटी में वो भगवान दादा के नाम से जाने जाते थे इसलिए जब वो फ़िल्मों में आए तो यहां पर भी उन्हें भगवान दादा के नाम से ही पहचान मिली. वे आगे चलकर अपनी एक्शन फ़िल्मों के लिए मशहूर हुए. भगवान दादा ने डायरेक्शन के साथ-साथ फ़िल्म प्रोडक्शन भी किया.