आजकल रियल लाइफ़ को फ़िल्मी पर्दे पर उतारने का ट्रेंड है. अब तक महेंद्र सिंह धोनी, मैरी कॉम जैसे स्पोर्ट्स लिजेंड्स पर फ़िल्में बन चुकी हैं. ये बायोपिक ना सिर्फ़ पर्दे पर इनकी कहानी बताती हैं, बल्कि हमें इंस्पायर भी करती हैं. ऐसी ही एक कहानी है हॉकी प्लेयर संदीप सिंह की. संदीप इंडियन हॉकी टीम के पूर्व कप्तान हैं. इस साल उन पर बनी फ़िल्म ‘सूरमा’ रिलीज़ होगी और उनका किरदार निभाएंगे पंजाबी मुंडे दिलजीत दोसांझ.

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क्या आप जानते हैं कि संदीप सिंह की कहानी और उनकी ज़िंदगी में ऐसा क्या हुआ कि उन पर फ़िल्म बन रही है? अगर नहीं, तो हम आपको बताते हैं:

संदीप सिंह हैं हॉकी के सूरमा

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संदीप हरियाणा के कुरुक्षेत्र के एक छोटे से टाउन शाहबाद के रहने वाले हैं. सिर्फ़ वो ही नहीं, उनके बड़े भाई बिक्रमजीत सिंह भी फ़ील्ड हॉकी प्लेयर हैं. 2004 में इंटरनेशनल डेब्यू करने वाले संदीप 2009 में इंडियन हॉकी टीम के कैप्टन बने. उन्हें कैप्टन तक पहुंचने में इतना लंबा वक्त क्यों लगा, इसका जवाब हम आपको देते हैं.

गोली ने छीना संदीप का गेम

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22 अगस्त 2006 को संदीप नेशनल टीम जॉइन करने शताब्दी ट्रेन से जा रहे थे, दो दिन बाद उन्हें वर्ल्ड कप खेलने के लिए जर्मनी रवाना होना था. पर ट्रेन में कुछ ऐसा हुआ, जिसने संदीप से ये मौका छीन लिया. ट्रेन में उन्हें एक्सीडेंटली गोली लग गई. जिससे संदीप को लकवा मार गया था और वो करीब 2 साल तक व्हीलचेयर पर रहें. 

नहीं मानी हार और बने कैप्टन

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संदीप ने अपने साथ हुए इस हादसे को अपनी कमज़ोरी नहीं बनने दिया. 2 साल तक व्हीलचेयर पर रहने के बावजूद उन्होंने रिकवर किया. भले ही उनकी रिकवरी में वक्त लगा हो, लेकिन संदीप के बुलंद हौसलों के आगे किसी की ना चली. उन्होंने ना सिर्फ़ रिकवर किया, बल्कि वापस इंडियन टीम में शामिल भी हुए और 2009 में टीम के कैप्टन बने. ये संदीप का दृढ़ संकल्प ही था, जो उन्हें एक बार फिर गेम में वापस ले आया.

मिला अवॉर्ड

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संदीप की कैप्टनसी में इंडियन टीम ने 2009 में मलेशिया को हराकर सुल्तान अजलान शाह कप अपने नाम किया. भारत ने ये खिताब 13 साल के लंबे इंतज़ार के बाद जीता था. इस टूर्नामेंट में संदीप टॉप गोल स्कोरर भी रहे. 2010 में उन्हें हॉकी में उनकी उपलब्धियों के लिए अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया.

अतीत के पन्नों में ना जाने कहां छिपी रह गई थी संदीप की कहानी, जिसे अब शाद अली अपनी फ़िल्म में उतारने जा रहे हैं. फ़िल्म के टाइटल की तरह संदीप निश्चित रूप से असल ज़िंदगी के ‘सूरमा’ ही हैं, जिन्होंने मुश्किलों के आगे झुकने के बजाए, आगे बढ़ना सीखा.