राज खोसला 60-70 के दशक के मशहूर निर्देशक थे. वो गुरु दत्त और विजय आनंद की तरह ही गानों को फ़िल्माने और उनके साथ एक्सपेरिमेंट करने के लिए तैयार रहते थे. उनकी कुछ यादगार फ़िल्में हैं ‘दोस्ताना’, ‘वो कौन थी’, ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’, ‘दो रास्ते’, ‘काला पानी’, ‘सीआईडी’, ‘मेरा गांव मेरा देश’.
राज खोसला द्वारा निर्देशित फ़िल्मों में एक अलग ही प्रकार का थ्रिल होता था, जिन्हें दर्शक देखने के लिए बॉक्स ऑफ़िस तक दौड़े चले आते थे. महमूद राज खोसला को हिंदी सिनेमा का Alfred Hitchcock बुलाया करते थे. Hitchcock एक फ़ेमस हॉलीवुड डायरेक्टर थे. पर क्या आप जानते हैं राज खोसला मुंबई डायरेक्टर नहीं, बल्कि एक सिंगर बनने आए थे. राज खोसला से जुड़ा ये दिलचस्प क़िस्सा आज हम आपको बताएंगे.
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दरअसल, राज खोसला बचपन से ही सिंगर बनने का सपना देखते थे. उन्होंने 6 साल की उम्र में भारतीय शास्त्रीय संगीत की शिक्षा भी ली थी. ग्रेजुएट होने के बाद उन्होंने कुछ दिनों के लिए ऑल इंडिया रेडियो में इंटर्शिप भी की थी. इसके बाद वो सिंगर बनने का सपना लिए मुंबई आ गए. यहां कई दिनों तक संघर्ष करने के बाद एक कंपोज़र ने राज खोसला को एक गीत गाने का मौक़ा दिया.
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मगर बदकिस्मती से वो गाना मुकेश की झोली में चला गया. इसके बाद 1949 में आई फ़िल्म ‘भूल भूलैया’ में उन्हें एक गीत गाने का मौक़ा मिला. अगले साल 1950 में फ़िल्म ‘आंखें’ में भी एक गाना गाया. पर राज खोसला का सिंगिंग करियर कुछ ख़ास नहीं रहा.
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इंडस्ट्री में स्ट्रगल करते हुए उनकी दोस्ती देवानंद साहब से हो गई. उन्होंने राज खोसला के टैलेंट को पहचाना और समझ गए कि ये एक बहुत अच्छे डायरेक्टर बन सकते हैं. इसके बाद वो उन्हें गुरु दत्त साहब के पास ले गए. उस वक़्त गुरु दत्त फ़िल्म ‘बाज़ी’ बना रहे थे. देवानंद के कहने पर वो राज खोसला को अपना असिसटेंट बनाने को तैयार हो गए. इसके बाद राज खोसला ने गुरु दत्त की फ़िल्म ‘जाल’ और ‘आर-पार’ में भी काम किया.
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1954 में राज खोसला ने बतौर निर्देशक डेब्यू किया. उनकी पहली फ़िल्म का नाम था ‘मिलाप’, जिसमें देवानंद और गीता बाली ने लीड रोल निभाया था. इसके बाद आई फ़िल्म ‘सीआईडी’ ने बॉक्स ऑफ़िस पर धमाका कर दिया. फिर तो राज खोसला एक से बढ़कर एक हिट फ़िल्में बनाते चले गए.
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भले ही राज खोसला का सिंगर बनने का सपना न पूरा हुआ हो मगर उनके इस सपने की ही बदौलत हमें एक उम्दा निर्देशक ज़रूर मिल गया.
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