कहते हैं कि किसी भी देश के बारे में जानना हो, तो आप उस देश का साहित्य पढ़ लीजिये या उस देश का आर्ट सिनेमा देख लीजिये. इससे इस बात का अंदाज़ा तो हो ही जाता है कि उस देश में किस तरह के हालात हैं या उस देश का किस तरह का इतिहास रहा है. इस बात से बड़े-बड़े लेखक और फ़िल्म डायरेक्टर भी इत्तेफ़ाक़ रखते है. शायद बॉलीवुड भी इस बात को अच्छे से समझता है, तभी कई बड़े निर्देशक अपनी फ़िल्म की कहानी के लिए साहित्य का सहारा लेते हैं. आज हम भी आपके लिए कुछ ऐसी ही फ़िल्मों को लेकर आये हैं, जो कभी किसी उपन्यास से, तो कभी किसी नाटक से ली गई हैं. इन फ़िल्मों को देखने का मतलब है कि आधा साहित्य आपने पढ़ लिया. 

ओथेलो, मैकबेथ और हेमलेट

विशाल भारद्वाज का शेक्सपीयर से पुराना नाता रहा है. विशाल अपने कई फ़िल्मों की कहानी शेक्सपीयर के नाटकों से ले चुके हैं, जिनमें ‘ओथेलो, मैकबेथ और हेमलेट’ से बनी’ओमकारा’, ‘मक़बूल’ और ‘हैदर’ का नाम शामिल है. 

शतरंज के खिलाड़ी, सद्गति, गबन

हिंदी साहित्य में प्रेमचंद एक ऐसा स्तंभ हैं, जिनके बिना हिंदी साहित्य को पूरा नहीं माना जा सकता. प्रेमचंद के लेखन के बारे में कहा जाता है कि उनका लेखन समाज के उस निचले हिस्से से शुरू होता था, जो सदियों से रूढ़िवादी सोच और गरीबी के बोझ तले दबा हुआ था. इस बात से बॉलीवुड के कई बड़े निर्देशक भी अच्छी तरह वाकिफ़ थे शायद तभी उन्होंने प्रेमचंद की कहानियों को आधार बना कर अपने फ़िल्म की पटकथा लिखी.

देवदास और परिणीता

मशहूर बांग्ला लेखक शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय की कालजयी रचनाओं में से एक ‘देवदास’ और ‘परिणीता’ शामिल है. इन उपन्यासों की प्रसिद्धि का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इन पर बॉलीवुड सहित परीजनल सिनेमा इंडस्ट्री भी कई बार फ़िल्म बना चुकी है.

पिंजर

अमृता प्रीतम के उपन्यास पर आधारित ये फ़िल्म आज़ादी से पहले भड़की हिन्दू-मुस्लिम दंगों के बीच पनपी एक प्रेम कहानी की कहानी है, जिसे अमृता ने जितनी ख़ूबसूरती के साथ उपन्यास में उतारा है. उतनी ही ख़ूबसूरती के साथ निर्देशक चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने इसे पर्दे पर उतारा है.

सूरज का सातवां घोड़ा

निर्माता-निर्देशक श्याम बेनेगल बॉलीवुड में अपनी आर्ट फ़िल्मों के लिए पहचाने जाते हैं. धर्मवीर भारती के उपन्यास को पर्दे पर उतार कर उन्होंने ये साबित भी कर दिया कि क्यों उनकी गिनती बॉलीवुड के सबसे सफ़ल डायरेक्टर्स में होती है.

हज़ार चौरासी की मां

महाश्वेता देवी हिंदी में अपना ही एक स्थान रखती हैं. ‘हज़ार चौरासी की मां’ उनका केवल एक उपन्यास भर नहीं है, बल्कि इसके ज़रिये वो सरकार, समाज और प्रशासन पर कड़ा प्रहार करती हैं. उनके इस उपन्यास को भी उसी दर्द के साथ पर्दे पर उतारा गया है.

तमस

भीष्म साहनी के उपन्यास पर आधारित ये फ़िल्म समाज की रूढ़िवादी सोच और छूत-अछूत से लड़ रहे एक शख़्स की कहानी है, जिसमें ओम पुरी ने अपने अभिनय से जान दाल दी थी.

गाइड

आर. के. नारायण के उपन्यास ‘गाइड’ पर आधरित ये फ़िल्म एक ऐसे शख़्स की कहानी है, जो अपने ज़िंदादिल के साथ दुनिया की सैर के लिए निकलता है.

शूटआउट एट लोखंडवाला

हुसैन ज़ैदी के उपन्यास ‘डोंगरी टू दुबई’ पर आधारित ये फ़िल्म मुंबई में अंडरवर्ल्ड की शुरुआत और उसके फ़ैलाव की कहानी है.

पहेली

राजस्थान की रहने वाली विजयदान देता की लघुकहानी ‘चौबोली’ पर आधरित पहेली एक पिशाच की कहानी है, जो एक लड़की के प्यार में पड़ जाता है और उसके पति के घर से बाहर जाने के बाद उसकी जगह ले लेता है.

अब अगर फ़िल्म देखते वक़्त घरवाले कहें कि पढ़ाई करो, तो साफ़-साफ़ कह देना वही कर रहे हो.