आज जब हम ट्रेलर से फ़िल्मों की सफलता का पता लगा लेते हैं, वहीं एक समय ऐसा भी था जब फिल्में बॉक्स ऑफिस पर आने के बाद ही हिट और फ्लॉप साबित होती थीं. लेकिन वो एक घिसा-पिटा Dialogue है न, ‘होनी को कुछ और ही मज़ूर था’. कुछ फिल्में अपने भाग्य में हार और जीत दोनों ही लिखवा कर लायी थीं.

इन फ़िल्मों की शुरुआत ऐसी हुई थी, कि सबने कहा, मामला एक हफ़्ते का ही है. शोले तो देखी ही होगी, माफ़ कीजियेगा, शोले बहुत बार तो देखी होगी आपने? इस फ़िल्म को देख कर आज कोई कह सकता है कि कीर्तिमानों का कीर्तिमान साबित करने वाली ये फिल्म शुरुआत में फ्लॉप हो गयी थी? लेकिन इस फ़िल्म का सिक्का जय के सिक्के की तरह खोटा नहीं था. जिस फिल्म को फ़िल्मी पंडितों ने Flop करार दे दिया था, उसे सालों बाद BBC ने Film of the Millennium के अवॉर्ड से नवाज़ा. लेकिन आज की जेनेरेशन इस बात को मान ही नहीं पाएगी कि जिन फ़िल्मों को वो Cult और Iconic मानते हैं, वो असल में Box Office पर फ्लॉप थी.

चलिए जानते हैं, ऐसी ही कुछ फ़िल्मों के बारे में जो Box Office पर फ्लॉप हो गयी थी:

1. अग्निपथ

इस फ़िल्म को Best Actor का नेशनल अवार्ड मिला, इस फिल्म का रीमेक किया गया और यही वो फ़िल्म थी, जिसके किरदार विजय दीनानाथ चौहान को लोग आज भी याद रखते हैं. और ये वो फ़िल्म है, जो फ़्लॉप हुई थी.

1990 में आई इस फ़िल्म को लोग समझ नहीं पाये और ये फ़िल्म फ्लॉप को गयी. आज जब भी इस फ़िल्म को देखते हैं, तो यकीन नहीं होता कि इस फ़िल्म को लोग नापसंद कर सकते हैं.

2. उमराव जान

लगता है नेशनल अवॉर्ड्स का फ़िल्म के फ्लॉप होने से कोई नाता है. अगर ये फ़िल्म भी फ्लॉप हो सकती है, तो हमें नहीं पता कि बॉक्स ऑफिस पर क्या चलता है? उमराव जान में शायद रेखा को हमने अपनी एक्टिंग के चरम पर देखा था और स्क्रिप्ट के लिहाज़ से भी ये फ़िल्म बहुत ख़ास थी. लेकिन इसे हिंदी सिनेमा की बदकिस्मती ही कहें, जो लोग इसे समझ नहीं पाये.

3. कागज़ के फूल

हां ये वो कड़वा सच है, जिसे शायद अपनाना कोई पसंद नहीं करेगा. गुरु दत्त के दिल के सबसे करीब जो फिल्म थी, वो थी कागज़ के फूल और उन्हें यकीन था कि लोग पर्दे पर एक डायरेक्टर की सफलता और विफलता की साइकिल को देखने के लिए सिनेमाघर में ज़रूर आएंगे. लेकिन उनका अनुमान गलत साबित हुआ. कागज़ के फूल बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरी. और इस दर्द को गुरु दत्त सम्भाल नहीं पाये. ये फिल्म अपने समय से कई साल आगे थी, जिसका खामियाज़ा इसे भुगतना पड़ा.

4. लम्हे

ये फ़िल्म मसाला और आर्ट फिल्म का परफेक्ट एग्जाम्पल थी, लेकिन इसे भी लोगों ने नकार दिया. इस वक़्त आप किसी से पूछें, तो लम्हे को लोग ‘Must Watch’ फिल्मों की श्रेणी में रखते हैं. लेकिन इस फिल्म को उस वक़्त लोगों ने पसंद नहीं किया. श्रीदेवी, अनिल कपूर और अनुपम खेर के एक्टर्स की दमदार कलाकारी भी फ़िल्म को सफल होने से बचा नहीं पायी.

5. सिलसिला

इस फ़िल्म के बारे में कुछ भी कहने से पहले मैं ये सोच रही हूं कि भारत में ऐसी फिल्म को फ्लॉप करने से पहले एक कमिटी बैठनी चाहिए. अमिताभ-रेखा की इस फ़िल्म को देखने के लिए लोग आज कुछ भी करने के लिए तैयार रहते हैं. लेकिन उस वक़्त लोगों को ये स्टोरी, ऐसी स्टार कास्ट भी उन्हें सिनेमाघरों तक नहीं खींच पायी!

6. The Burning Train

इस फ़िल्म को भारत की देसी ‘Speed’ मूवी कहा जाता है और इसे बनाने वाले निर्देशक रवि चोपड़ा को ये विश्वास था कि फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर कमाल करेगी. इस मल्टी-स्टार्रर फिल्म में एक्शन, कॉमेडी, ड्रामा, इमोशंस, सब कुछ था, लेकिन फिर भी ये फ़िल्म कुछ खास नहीं कर पायी. हालांकि आज इस फ़िल्म को एक Advanced Cinema के तौर पर जाना जाता है. उस समय जिस तरह का कैमरा वर्क इस फिल्म में किया गया था, वो काबिलेतारीफ है!

7. जाने भी दो यारों

हम में से कितने लोग होंगे, जिनके Laptops और Hard Drives में ये मूवी राखी हुई होगी. इस फ़िल्म को Satire या व्यंग्य के बेहतरीन इस्तेमाल के लिए जाना जाता है. Issues पर फ़िल्म बनाना मुश्किल है लेकिन सामाजिक परेशानी को हास्य के माध्यम से दिखाना हर किसे के बस की बात नहीं. इस फ़िल्म ने ये किया था. लेकिन उस वक़्त Satire उस तरीके से Develop नहीं हो पाया था, जैसा आज के समय है. इसलिए ये फ़िल्म इतनी संभावनाओं के बावजूद फ्लॉप हो गयी. मैं कहूंगी, ये फ़िल्म हर उस इंसान को देखनी चाहिए जिसे सिनेमा को, फ़िल्म राइटिंग और Satire की बारीकियों को समझते हुए मनोरंजन चाहिए.

8. अंदाज़ अपना अपना

हां, ये फ़िल्म भी फ्लॉप की कैटेगरी में आती है. इस फ़िल्म का एक-एक सीन इतना फनी और मज़ेदार है कि कोई भी ये नहीं मान सकता कि इस फ़िल्म को लोगों ने जाने दिया. आमिर-सलमान, करिश्मा-रवीना, क्राइम मास्टर गोगो, इन सब को कोई भुला सकता है? ये वो फ़िल्म है, जिसे सब अपने दोस्तों के साथ बैठ कर देखते हैं और आगे भी देखते रहेंगे.

9. Oye Lucky Lucky Oye

इस फ़िल्म के लिए जितना बुरा फील होता है, उतना ही अभय देओल के लिए. ये फ़िल्म अनुराग कशयप की फ़िल्म Dev D से डायरेक्शन सेंस पहले रिलीज़ हुई थी ये फ़िल्म. और शायद यही वजह थी कि लोग अभय देओल के टैलेंट को समझ नहीं पाये, न ही दिबाकर बनर्जी के डायरेक्शन सेंस को. लेकिन आज इस फिल्म के लिए अभय देओल, ऋचा चड्ढा और परेश रावल को लोग बधाई देते नहीं थमते.

10. मेरा नाम जोकर

राज कपूर साहब के दिल के सबसे करीब जो फिल्म थी, वो थी मेरा नाम जोकर. इस फिल्म पर उन्होंने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था, लेकिन ये फ़िल्म लोगों का दिल नहीं जीत पायी. ये फ़िल्म बनाने में राज कपूर को 6 साल लग गए थे, लेकिन जनता जनार्दन को इसका सब्जेक्ट समझ नहीं आया. इसी फ़िल्म से ऋषि कपूर ने भी अपनी फ़िल्मी पारी शुरू की थी. फ़िल्म के फ्लॉप होने का राज साहब को बहुत धक्का लगा. लेकिन आज इस फ़िल्म को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल्स में भारत की सबसे बेहतरीन फिल्मों के तौर दिखाया जाता है.

11. शान

बॉलीवुड को उसका सबसे Iconic विलेन ‘शाकाल’ देने वाली ये फ़िल्म भी लोगों की समझ नहीं आई थी. इसके साथ कुछ-कुछ वैसा ही हुआ, जैसा रमेश सिप्पी की फिल्म शोले के साथ हुआ था. उस वक़्त के समाज को ये फ़िल्म थोड़ी Alien लगी. लेकिन अमिताभ-शशि कपूर की इस फ़िल्म को लोगों ने नकार दिया.

12. रॉकेट सिंह

इस फ़िल्म के बारे में इतना डिस्कशन नहीं होता है, क्योंकि ये फ़िल्म कम ही लोगों ने देखी थी. हालांकि इसका सब्जेक्ट,स्टोरी और कैरेक्टर्स,सभी बहुत कमाल के थे.

फ़िल्म बनी थी Sales वालों पर, जिनकी ज़िन्दगी में अगर कुछ इम्पॉर्टेंट होता है, तो वो है Target और Numbers. इतनी टेंशन के बीच कैसे एक निकम्मा सा आदमी अपनी ख़ुद की कंपनी खड़ी करता है, ये कहानी थी रॉकेट सिंह की. फ़िल्म में सरदार रॉकेट सिंह बने रणबीर कपूर ने इसमें अपने स्टारडम को हावी नहीं होने दिया था. लेकिन ये फ़िल्म अच्छी होने के बावजूद ज़्यादा नहीं चली. इसका गान तो याद है न? पॉकेट में रॉकेट है!

13. प्यार का पंचनामा

किसी फ़िल्म की जब कोई स्टार वैल्यू न हो, तो उसके साथ क्या होता है, ये प्यार का पंचनामा को देख आकर समझ आता है. हर लड़के की फेवरेट लिस्ट में रही इस फ़िल्म का कॉन्टेंट अच्छा होने के बाद भी ये फ़्लॉप हो गयी. लेकिन ये कहीं और चली… लड़कों के लैपटॉप्स पर! इसे सभी ने बहुत शेयर किया और ऐसे ही इस फिल्म का एक-एक डॉयलॉग, कॉन्टेंट, कैरेक्टर इतना मज़ेदार था कि ये सबको याद रहेंगे.

14. लक्षय

इस फ़िल्म में उस वक़्त उभर रही पीढ़ी की आशाओं पर बात की गयी थी. एक लड़का जो Confused है, लेकिन अपनी गर्लफ्रेंड को Prove करने के लिए आर्मी जॉइन कर लेता है. उसकी गर्लफ्रेंड एक महत्वकांक्षी लड़की है, जिसे मीडिया में जाना है. ये ही तो कहानी है हमारे समाज की, आज के युवाओं की? फरहान अख्तर ने तीर बिलकुल निशाने पर मारा था, लेकिन लोग उसे समझ नहीं पाये! खैर, आज बहुत से युवा इस फिल्म को देखते हैं.

15. दिल से

इस फ़िल्म में आज का सबसे ज्वलंत मुद्दा था आतंकवाद और इस खौफ में पनपा प्यार. फिल्म का म्युज़िक हर किसी ने पसंद किया लेकिन मणिरत्नम की सोच को समजह नहीं पाये. ऐसा लगता है ये फ़िल्म आज के समय के लिए बनी है और शायद यही वजह रही कि फ़िल्म इतना बड़ा मास्टरपीस होने के बाद भी बॉक्स ऑफिस पर अच्छ कारोबार नहीं कर पायी. लेकिन ये वो फ़िल्म है, जिसने बाकी सारी वसूली टीवी और इंटरनेट के ज़रिये कर ली.

16. स्वदेस

चक दे इंडिया को छोड़ दें, तो जिन भी फ़िल्मों में सुपरस्टार शाहरुख़ खान ने कैरेक्टर रोल किया किया, वो शायद लोगों को नहीं जमा. फ़िल्म की स्क्रिप्ट भी लीक से हटकर थी, एक नासा का साइंटिस्ट जो अपने देश के लिए कुछ करने को भारत आता है. शायद ये कुछ ऐसा था, जिसे लोग पाचा नहीं पाये. लेकिन अच्छे सिनेमा की भूख रखने वाले लोगों के लिए इस फ़िल्म ने ठंडी हवा का काम किया था.

और अंत में

17. शोले

वो फ़िल्म कैसे फ़्लॉप हो सकती है जिसे थिएटर में इतनी बार दिखाया गया कि उसके कर्मचारियों ने स्ट्राइक पर जाने की बात कह दी. शोले शायद भारत के इतिहास में दर्ज वो पन्ना है, जिसमें जय-वीरू, बसंती, मौसी जी, ठाकुर, और गब्बर जैसे किरदार गढ़े गए. हमें Suicide जैसा शब्द सिखाया है इस मूवी ने, लेकिन ये फ़िल्म फ्लॉप हो गयी थी. रिलीज़ होने के 3 महीने बाद तक इस फिल्म को सभी ने फ्लॉप कह दिया था. लेकिन ये रमेश सिप्पी और सलीम-जावेद का विश्वास था कि ये फिल्म दोबारा चली और ऐसी चली कि हमारे ज़ेहन में बस गयी.

इस लिस्ट में शामिल आधी से ज़्यादा फिल्में Cult बन चुकी हैं या बनने के रस्ते पर हैं. जिस Conviction (इसे बेहतर शब्द नहीं मिला) से इन फिल्मों के डायरेक्टर ने इन्हें बनाया था, वो भले ही पैसों के मामले में पूरा ना हुआ हो, लेकिन इसकी भरपाई सालों बाद लोगों की प्रशंसा ने कर दी. हम कहते हैं साहब बॉलीवुड में हर कोई मसाला ही बनाता है, Parallel सिनेमा की ज़िम्मेदारी लोग क्यों नहीं लेते? तो तर्क ये है कि जब हम ख़ुद आइटम नंबर और घिसे-पिटे प्लॉट्स को देखने जाएंगे, ऐसा सिनेमा मात खाता रहेगा.

वो टाइम गया जब इंडिया फाइनल में मैच हार जाती थी, तो हम कहते थे, कोई नहीं फाइनल तक तो पहुंचे। अब इंडिया फाइनल में गयी है, तो मैच जीत के ही आना है. ऐसा ही अच्छी फिल्मों के साथ होता है, उन्हें नेशनल अवॉर्ड और नेशनल तालियां तो मिल जाती हैं, लेकिन दर्शक नहीं। ये ज़िम्मेदारी हमारी है कि हम इन फिल्मों को Commercial Success बनाएं.