Bollywood Films On Widows: समय बदलने के साथ समाज ने महिलाओं के प्रति अपने नज़रिए में भी बदलाव किया है. आजकल महिला सशक्तिकरण और बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ जैसे संवेदनशील मुद्दों पर ख़ुलकर बात की जा रही है. मां-बाप भी अपनी बेटियों को ज़्यादा से ज़्यादा पढ़ाने और ख़ुद के पैरों पर खड़े होने के लिए ज़ोर दे रहे हैं. बॉलीवुड भी वुमन ओरिएंटेड फ़िल्में बनाने पर फ़ोकस है. हालांकि, समाज का ज़्यादातर हिस्सा अब भी लड़कियों के प्रति दकियानूसी सोच रखता है. कई विधवा महिलाओं के लिए तो आज भी नई सिरे से ज़िंदगी शुरू करने का ख्याल लाना भी पाप माना जाता है और पति की मौत के बाद उनकी ज़िंदगी को व्यर्थ समझा जाता है.
देखा जाए तो ज़्यादातर फ़िल्ममेकर्स इस सेंसिटिव टॉपिक पर फ़िल्म बनाने से बचते हैं. लेकिन ऐसे कई डायरेक्टर्स या प्रोड्यूसर्स हैं, जिन्होंने पितृसत्तात्मक सोच के खिलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद की और विधवाओं की ज़िंदगी पर फ़िल्म बनाने का फ़ैसला किया.
आज हम आपको उन्हीं बॉलीवुड फ़िल्मों के बारे में बताएंगे, जो विधवा महिलाओं की ज़िंदगी को बेहद ख़ूबसूरत तरीके से बयां करती हैं. (Bollywood Films On Widows)
Bollywood Films On Widows
1. Is Love Enough?
ये फ़िल्म एक विधवा महिला वर्कर रत्ना और उसके मालिक अश्विन की प्रेम कहानी को दर्शाती है. दोनों समाज के विपरीत छोर से आते हैं. डायरेक्टर रोहेना गेरा ने बड़ी ही ख़ूबसूरती से हाई क्लास और लो क्लास के लोगों के बीच की दूरी पर कटाक्ष करते हुए दो अलग-अलग स्तर के व्यक्तियों के बीच की प्रेम कहानी को एक ही धागे में पिरोया है. फ़िल्म में रत्ना जब बड़े शहर में काम करने के लिए जाती है, तो उसे हरी चूड़ि पहनने का मन करता है. वो उसे झटपट ख़रीद लेती है. इस सीन के ज़रिए ये दिखाने की कोशिश की गई है कि वो पुरातन परंपराओं की बेड़ियों से ख़ुद को आज़ाद करना चाहती है. फ़िल्म में ऐसे कई सीन है, जो आपको एक नया नज़रिया देंगे. फ़िल्म को आप नेटफ्लिक्स पर देख सकते हैं.
2. पगलैट
बीते साल सान्या मल्होत्रा की आई फ़िल्म ‘पगलैट’ भी विधवाओं की ज़िंदगी को एक नए एंगल से दिखाती है. फ़िल्म में एक लड़की की कहानी को दर्शाया गया है, जो शादी होने के 5 महीने बाद अपने पति को खो देती है. वो उसके जाने का गम उस तरह से नहीं मना पाती, जिस तरह की समाज उससे उम्मीद कर रहा होता है. वो अपने सपनो को उड़ान देना चाहती है. फ़िल्म के आगे बढ़ने पर संध्या (सान्या मल्होत्रा) का गुस्सा अपनी मां की तरफ़ भी दिखता है, जिसके लिए हमेशा उसकी बेटी की शादी ही एकमात्र ज़िम्मेदारी थी. ये फ़िल्म बताती है कि एक विधवा की ज़िंदगी उसके पति के चले जाने से ख़त्म नहीं हो जाती.
3. क़रीब क़रीब सिंगल
ये एक रोमांटिक कॉमेडी फ़िल्म है, जिसमें एक्टर इरफ़ान ख़ान और पार्वती थिरुवोथु लीड रोल में हैं. फ़िल्म में दो विपरीत पर्सनैलिटी योगी और जया एक-दूसरे से डेटिंग एप पर मिलते हैं और धीरे-धीरे एक-दूसरे से कनेक्शन बनाते हैं. जया 35 साल की विधवा होती है, जिसको अपनी ज़िंदगी के अकेलेपन में एक हमसफ़र की तलाश होती है. जैसे-जैसे मूवी आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे ये जया और योगी के अतीत के पन्नों को खोलती जाती है. (Bollywood Films On Widows)
ये भी पढ़ें: बॉलीवुड फ़िल्मों के वो 7 कैरेक्टर्स जिन्होंने जाने-अनजाने में हमें ज़िंदगी का असली पाठ पढ़ा दिया
4. द लास्ट कलर
‘सूरज़ तो रोज़ ही जीतता है, चांद का भी तो दिन आता है न‘, इस फ़िल्म में नीना गुप्ता द्वारा बोला गया ये डायलॉग आपकी रगों में समा जाएगा. पहला सीन जब दिया पानी में बहता है से लेकर आख़िरी सीन तक जब विधवाएं रंगों के त्योहार होली को मनाती हैं, डायरेक्टर विकास खन्ना की ये फ़िल्म अपनी पूरी अवधि में पलकों को न झपकने के लिए मज़बूर कर देगी. फ़िल्म में एक 70 साल की विधवा और 9 साल के फूल बेचने वाले बच्चे की दोस्ती को दर्शाया गया है. इसका मुख्य फ़ोकस देश के कुछ हिस्सों में विधवाओं की दुर्दशा को उजागर करना है, जहां उन्हें अपने पति की मृत्यु के बाद पूर्ण परहेज़ का अभ्यास करने के लिए मजबूर किया जाता है.
5. डोर
इस फ़िल्म की कहानी दो महिलाओं के बारे में हैं, जो अलग-अलग बैकग्राउंड से आती हैं. वो दोनों क़िस्मत से एक-दूसरे से मिलती हैं. फ़िल्म में मीरा (आयेशा टाकिया) जो शादी के कुछ समय बाद ही विधवा बन जाती है, वो रिवाज़ों से बंधी हुई है. वहीं ज़ीनत (गुल पनाग) का पति एक मर्डर के केस में जेल में बंद है. दोनों की धीरे-धीरे दोस्ती हो जाती है. ज़ीनत के साथ मीरा को ज़िंदगी जीने का एक नया दृष्टिकोण मिलता है. फ़िल्म की कहानी आपको अंत तक बांधे रखेगी. (Bollywood Films On Widows)
6. राजनीति
इस पॉलिटिकल ड्रामा फ़िल्म में एक विधवा की कहानी को दर्शाया गया है, जो बाद में एक प्रेमिका, फिर पार्टी हेड और आख़िरकार एक राज्य की मुख्यमंत्री बन जाती है. मूवी में कैटरीना कैफ़, रणबीर कपूर समेत कई फ़ेमस स्टार्स ने काम किया है. आप इसे नेटफ्लिक्स पर देख सकते हैं.
ये भी पढ़ें: बॉलीवुड की वो 16 धांसू फ़िल्में जिनके जरिए महिला डायरेक्टर्स गाड़ चुकी हैं सफ़लता के झंडे
7. इश्किया
साल 2010 में आई इस फ़िल्म में दो नौजवानों को एक विधवा महिला से प्यार हो जाता है. फ़िल्म आपको गुदगुदाएगी साथ में अंत तक सस्पेंस बरक़रार रखेगी. विद्या बालन, अरशद वारसी और नसीरुद्दीन शाह ने फ़िल्म में लीड रोल निभाया है. (Bollywood Films On Widows)
8. वाटर
फ़िल्म साल 1938 के बैकग्राउंड पर बनाई गई है. ये एक वाराणसी के आश्रम में एक विधवा की लाइफ़ को एक्सप्लोर करती है. फ़िल्म कुप्रथा और बहिष्कार जैसे विवादास्पद विषयों पर तंज कसती है. मूवी में चुइया (सरला करियावासम) एक 8 साल की बच्ची है, जिसके पति की अचानक मौत हो जाती है. विधवापन की परंपराओं को ध्यान में रखते हुए, उसे एक सफेद साड़ी पहनाई जाती है, उसका सिर मुंडाया जाता है और उसे अपना शेष जीवन त्याग में बिताने के लिए एक आश्रम में छोड़ दिया जाता है. फ़िल्म में जॉन अब्राहम ने भी अहम भूमिका निभाई है.
इन फ़िल्मों ने समाज को एक नया दृष्टिकोण देने का काम किया है.