कहते हैं कि हमारे समाज का आईना हैं बॉलीवुड फ़िल्में. लेकिन जब इन्हीं फ़िल्मों में समाज को सच का आईना दिखाने की कोशिश की जाती है तो उस पर पाबंदी लगा दी जाती है. जी हां ज़्यादा दूर जाने की ज़रूरत नहीं है, इसका जीता-जागता उदाहरण है ‘पद्मावती’ से ‘पद्मावत’ हुई संजय लीला भंसाली की फ़िल्म. एक बात है कि फ़िल्मों से लोग बहुत कुछ सीखते हैं और उनको फ़ॉलो भी करते हैं. फ़िल्मों में अच्छी और बुरी कई तरह की बातें दिखाई जाती हैं, जिनमें संयुक्त परिवार, हंसी-मज़ाक, ख़ून-ख़राबा, मार-धाड़, नाचना-गाना. इनके अलावा प्यार-मोहब्बत और छेड़-छाड़ भी फ़िल्मों में भर-भर कर होता है. वैसे देखा जाए तो बॉलीवुड में ज़्यादातार फ़िल्म्स की कहानी प्रेम कहानी, रूठना-मानना, मिलन-जुदाई पर ही केंद्रित होती हैं.

आज का युवा हो या 70-80 के दशक के लोग सब फ़िल्मों से ही अपने प्यार का इज़हार करने का तरीका खोजते हैं. फ़िल्मी हीरो की तरह लड़की को प्रपोज़ करना, उसके लिए गाना गाना आज कल आम बात है. दोस्तों अगर आपने गौर किया हो कि 90 के दशक की ज़्यादातर फ़िल्मों में छेड़छाड़ के गीत होते थे. हीरो-हीरोइन को पटाने के लिए बुरी तरह उसके पीछे पड़ जाता है और अंत में हार कर लड़की हां ही कर देती है. अब ये प्यार है या ज़बरदस्ती ये तो कहा नहीं जा सकता है. हां लेकिन इसके लिए एक वर्ड है ‘हैरेसमेंट’. जी हां, हिंदी सिनेमा का एक दौर ऐसा भी था जब जिसके लिए ये कहना ग़लत नहीं होगा कि हैरेसमेंट या फिर छेड़छाड़ से फ़िल्में ज़्यादा अच्छी मानी जाती थी. वो दौर था बॉलीवुड का 90 का दौर. हमारी फ़िल्मों में हरैसमेंट को इतना नॉर्मल बना दिया है कि कोई लड़का बीच रास्ते किसी लड़के का हाथ पकड़ कर उसको रोकता है और उसकी इस हरकत को हल्की-फुल्की छेड़छाड़ करार दिया जाता है.

मगर आज हम आपको 90 के दशक में नहीं, बल्कि उससे पहले के यानि 70-80 के दशक में ले जाएंगे. उस दौर में भी हैरेसमेंट को गीतों के ज़रिये बेझिझक दिखाया जाता था और नार्मल माना जाता है. उस दौर की कई फ़िल्मों में ऐसे गाने हैं जिनके बोल और फिल्मांकन किसी हैरेसमेंट से कम नहीं था. और अगर इन गानों को लिखने के लिए राइटर को हैरेसमेंट शायर कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा.

तो चलिए आज ऐसे ही कुछ हैरेसमेंट वाले गानों को सुनते हैं:

लाल छड़ी मैदान खड़ी… फ़िल्म जानवर (1965)

https://www.youtube.com/watch?v=_o3y7fvoVNM

पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले, झूठा ही सही… जॉनी मेरा नाम (1970)

तेरा पीछा न छोडूंगा मैं सोनिये, भेज दे चाहे जेल में… फ़िल्म जुगनू (1973)

https://www.youtube.com/watch?v=jACmsWdo_M4

कह दूं तुम्हें या चुप रहूं, दिल में मेरे आज क्या है… फ़िल्म दीवार (1975)

https://www.youtube.com/watch?v=cFxozbrRHNQ

आज रपट जाएं तो हमें न उठाइयो… फ़िल्म नमक हलाल (1982)

बदन पे सितारे लपेटे हुए… फ़िल्म प्रिंस (1969)

https://www.youtube.com/watch?v=qHaqhXekAh0

एक लड़की भीगी-भागी सी… फ़िल्म चलती का नाम गाड़ी (1958)

आजा-आजा मैं हूं प्यार तेरा… फ़िल्म तीसरी मंज़िल (1966)

https://www.youtube.com/watch?v=x8ZrN_pizyQ

कोई हसीना जब रूठ जाती है तो और भी हसीन हो जाती है… फ़िल्म शोले (1975)

https://www.youtube.com/watch?v=T-SvdkQyW8o

तुमसे अच्छा कौन है दिल लो जिगर जान लो… फ़िल्म जानवर (1964)

आसमान से आया फ़रिश्ता प्यार का सबक सिखलाने… फ़िल्म An Evening In Paris (1967)

https://www.youtube.com/watch?v=sJboF0NUKN8

ओ मेरी, ओ मेरी शर्मीली आओ न तड़पाओ न… फ़िल्म शर्मीली (1971)

https://www.youtube.com/watch?v=5M2IYCuvnsY

एबीसीडी छोड़ो, नैनो से नैना जोड़ो… फ़िल्म राजा जानी (1972)

पर्दा है पर्दा… पर्दे के पीछे पर्दा नशि है, पर्दा नशि को बेपर्दा न कर दूं तो… फ़िल्म अमर अकबर एन्थोनी (1977)

https://www.youtube.com/watch?v=XjRgw1naMsc

लेकिन यहां समझने वाली बात ये है कि आज का दौर हो या हिंदी सिनेमा का गोल्डन पीरियड, ना का मतलब ना ही होता है. अगर कोई लड़की आपको ना कर रही है मतलब कि वो आपमें इंटरस्टेड नहीं है. फिर क्यों आप ज़बरदस्ती उसका पीछा कर रहे हैं? लेकिन ये बात भी है कि अगर लड़की आपको पसंद करती है तो न ही आपको उसके लिए चांद-तारे तोड़ने होंगे और ना ही उसका पीछा करना पड़ेगा. बस आपको छोटी सी ये बात समझनी है कि ‘No Means No’. क्यों इसमें क्या है समझने या समझाने लायक.

अगर आपको भी ऐसे गाने पता हैं तो कमेंट बॉक्स में हमें ज़रूर भेजें.