जब राजेश खन्ना ने कांग्रेस के टिकट पर बीजेपी के कद्दावर नेता लाल कृष्ण अडवाणी को जीत के लिए एक-एक वोट का मोहताज बनाया था, तब दिल्ली में बैठे राजनेताओं के उस अहम को ज़ोर का झटका लगा था, जो ये सोच बैठा था कि एक्टर का चार्म सिर्फ सिनेमा हॉल तक ही सीमित रहता है.

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पॉलिटिक्स और बॉलीवुड कभी-कभी न कभी एक दूसरे से टकरा ही जाते हैं, कभी इलेक्शन्स के वक़्त, तो कभी प्रचार में भीड़ खींचने के लिए. भारतीय राजनीती में जिस सबसे पहले बॉलीवुड स्टार ने कदम रखा था, वो थे कपूर खानदान की रीढ़, दिग्गज अभिनेता पृथ्वीराज कपूर. उसके कई सालों बाद देव आनंद ने भी अपनी नई पार्टी शुरू की, जिसे वो ज़्यादा दिन संभाल नहीं पाए, और ये बिखर गयी.

बात हो रही है राजनीती में फिल्म स्टार्स की, उन्हें पार्टी में टिकट मिलने की और MP-MLA बनने के बाद लोक सभा और असेंबली में उनकी Attendance की.हाल ही में MP सचिन तेंदुलकर की संसद में हाज़री कम होने की वजह से उन्हें काफी फटकार पड़ी थी.

लेकिन सवाल ये है कि ग्लैमर के चक्कर में लिए गए सेलेब्रिटीज़ क्या राजनीती या फिर संसद में अपनी भूमिका से न्याय कर पाते हैं? बॉलीवुड फिल्मों के गेस्ट अपीयरेंस की तरह इन सितारों का पार्लियामेंट में रोल मेहमान कलाकार तक ही सीमित रहता है क्या?

चलिए आज इन सभी के रिपोर्ट कार्ड पर नज़र डालते हैं:

मिथुन चक्रवर्ती, सचिन तेंदुलकर, रेखा

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राज्य सभा के 11 नॉमिनेटेड मेंबर्स में 3 ये सितारे हैं. राज्य सभा की सदस्यता मिलने के बाद, इन सितारों से आशा की गयी थी कि ये अपने-अपने क्षेत्र और कार्यक्षेत्र से जुड़े कुछ इश्यूज को लोगों के सामने रखेंगे. लेकिन जब स्टार मंत्री जी राज्य सभा में आएंगे ही नहीं, तो सवाल कैसे पूछेंगे. वैसे साल भर की इनकी अटेंडेंस कुछ इस तरह है:

  • 2 साल से राज्य सभा के सदस्य रहे मिथुन की उपस्तिथि सिर्फ़ तीन बार हुई है.
  • सचिन की अटेंडेंस 7 परसेंट.
  • और पिछले 4 सालों से सदस्य रही रेखा जी की केवल 5 परसेंट.

इनकी अटेंडेंस पर सबसे पहले टिप्पणी आयी शबाना आज़मी की, जिन्होंने कहा कि, ‘अगर आप सदन की प्रोसीडिंग्स का हिस्सा नहीं बनेंगे, तो आपने ये सदस्यता क्यों ली?’ इनका कहना बिलकुल ठीक है, इस जगह पर शायद किसी और बेहतर कैंडिडेट को सीट मिल सकती थी, जो कम से कम कुछ मुद्दों पर सवाल तो पूछता.

मैरी कॉम

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बॉक्सिंग को देश में फिर से सबका चहेता बनाने वाली मैरी कॉम एक MP हैं, लेकिन लोक सभा में उनकी हाज़री उनके खेल की तरह मज़बूत नहीं है. उनकी अटेंडेन्स है केवल 27 परसेंट. हालांकि मानसून सत्र की शुरुआत से हम उन्हें सदन में लगातार देख रहे हैं. उन्होंने खिलाड़ियों के लिए बेहतर ढांचे की मांग करते हुए उनकी परेशानियों को सबके सामने रखा.

चुनाव के दौरान पार्टियां स्टार प्रचारक के रूप में सबसे पहले बॉलीवुड का रुख करती हैं. स्टार भी प्रचार के दौरान ऐसे-एसे वादे करते हैं, कि आधी भीड़ पहले ही अपना वोट उनके फेवर में कर देती है. और ये अभी की बात नहीं है, पहले भी दारा सिंह, विनोद खन्ना, शत्रुघ्न सिन्हा, श्याम बेनेगल, गोविंदा जैसे कलाकारों ने संसद में अपनी भागीदारी के साथ न्याय नही किया और अपनी सीट को यूं ही ज़ाया कर दिया.

लता मंगेशकर

कभी MP रही लता मंगेशकर का जादू पॉलिटिक्स में नहीं चला. अपनी सदस्यता पर वो बोलीं कि ‘मैं पॉलिटिक्स के लिए नहीं बनी हूं, आप मुझसे ये काम मत करवाईये.’ वो अपनी मेम्बरशिप से खुश नहीं थीं.

धर्मेंद्र

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बीजेपी के लिए साल 2004 में बीकानेर सीट से चुनाव जीतने वाले धर्मेन्द्र इलेक्शन के ठीक बाद गायब हो गये. अपनी सीट को अनदेखा करने के लिए उन पर सवाल भी किये गये. यहां तक कि राजस्थान के कई अखबारों में ‘धर्मेन्द्र कहां हैं’ के विज्ञापन भी आये. बाद में उन्होंने इस सीट से ही पल्ला झाड़ लिया.

सवाल ये है कि इलेक्शन के समय आप पार्टी का एक चेहरा बन कर लोगों से चिकने-चुपड़े वादे करते हो, लेकिन जब काम करने का टाइम आता है, आप हाथ खड़े कर लेते हैं कि साहब हमसे हो न पाएगा. जब हो नहीं पाएगा, तो शुरू किया क्यों?

गोविंदा

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महाराष्ट्र में कांग्रेस की सीट पर एक बड़े नेता को हरा कर साल 2004 में गोविंदा MP बने थे. लेकिन उसके बाद से लेकर अपनी सदस्यता समाप्त होने तक, वो बस 27 बार ही सदन की कार्यवाही में बैठे. पूछने पर कहा, ‘मेरे खून में ही राजनीति नहीं है. मैं कभी पॉलिटिक्स में वापस नहीं आऊंगा’.

सर आपने तो ये बोल कर सफाई दे दी, लेकिन उन लोगों का क्या, जिन्होंने आपके भरोसे कांग्रेस को वोट दिया था. क्या आपकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं बनती इन लोगों के प्रति?

जया बच्चन, हेमा मालिनी, किरण खेर

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हालांकि इस फेहरिस्त में कुछ नाम ऐसे भी हैं, जिन्होंने न केवल नेता बनने के बाद अपनी ज़िम्मेदारी को समझा, बल्कि सदन में कई मुद्दों को उठाया भी.

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  • बीजेपी की चंडीगढ़ सीट की नेता किरण खेर की अटेंडेंस सबसे ज़्यादा 83 परसेंट है.
  • जबकि जया बच्चन की 79 परसेंट, लेकिन इन्होंने अभी तक 393 सवाल पूछे हैं. 
  • हेमा मालिनी जी की अटेंडेंस कम है, 38 परसेंट, लेकिन उन्होंने इस हाज़री के साथ 117 सवाल पूछे हैं.
  • जावेद अख्तर, जिनका कार्यकाल इस साल मार्च में ख़त्म हुआ, उनकी अटेंडेंस 53 % थी.

एक वो नाम, जो इन सभी से अलग था: सुनील दत्त

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सुनील दत्त राजनीति में आने से पहले से ही Socially काफी सक्रीय थे. फिर पार्टी में उन्होंने न केवल एक अच्छे और सम्मानित नेता के रूप में काम किया, बल्कि स्पोर्ट्स जैसी कॉन्ट्रोवर्शियल मिनिस्ट्री की बेहतरी के लिए कई कोशिशें कीं. इन सितारों की लिस्ट में केवल ये ऐसा पहला नेता था, जिसने अपने स्टारडम को कभी भी अपनी सुथरी राजनीती पर हावी नहीं होने दिया.

बेशक ये नाम बड़े इसीलिए बने हैं, क्योंकि इन्होंने अपने-अपने फ़ील्ड्स, चाहे वो स्पोर्ट्स हो या सिनेमा, में बेहतरीन योगदान दिया है. लेकिन जहां बात राजनीती की आती है, जो ज़िम्मेदारी एक नेता की होनी चाहिए, वो इन सितारों में नहीं दिखी. इसका साफ़ उदाहरण है इन सभी की अटेंडेंस. केवल चुनाव में ग्लैमर के लिए सेलेब्रिटीज़ को प्यादों की तरह न इस्तेमाल करें.

आप अपनी ख्याति की वजह से जीत तो जायेंगे साहब, आगे की लड़ाई आपको उन लोगों के सपनों को साथ लेकर लड़नी होगी. और इसमें, कोई रिटेक नहीं होगा!