हर साल बॉलीवुड में हज़ारों की तादाद में फ़िल्में बनती हैं, लेकिन इनमे कुछ ही फ़िल्में ऐसी होती हैं, जो दर्शकों तक पहुंच पाती हैं. क्योंकि कुछ फ़िल्मों पर सेंसर बोर्ड की कैंची चल जाती, तो वहीं कुछ को लेकर इतना हंगामा होता है कि फ़िल्में रिलीज़ ही नहीं हो पाती. दमदार कहानी और अच्छी स्टारकास्ट होने के बावजूद इन फ़िल्मों का रिलीज़ न होना, बॉलीवुड दर्शकों और समाज के लिये बड़ी हानि है.  

ऐसी ही कुछ फ़िल्मों पर नज़र डालियेगा: 

1. केमिस्ट्री (2011) 

साई कबीर के निर्देशन में बनी इस फ़िल्म में मुख़्य कलाकार सोहा अली ख़ान और श्रेयस तलपड़े थे. सोहा और श्रेयस तलपड़े फ़िल्म में एक्टिंग करने के साथ-साथ इसे प्रोड्यूस भी कर रहे थे. रिपोर्ट के अनुसार, कई अड़चनों की वजह से ये फ़िल्म आज तक बड़े पर्दे पर नहीं पहुंच पाई. साई कबीर ने ‘रिवॉल्वर रानी’ भी डायरेक्ट की थी. 

mid-day

2. पांच (2001) 

पांच का निर्देशन अनुराग कश्यप ने किया था, जिसे सेंसर बोर्ड ने देखते ही बैन कर दिया. रिपोर्ट के अनुसार, सेंसर बोर्ड ने लोगों के बीच हिंसा फैलने का हवाला देते हुए, इसे रिलीज़ करने से इंकार कर दिया. फ़िल्म में के.के मेनन, आदित्य श्रीवास्तव, विजय मौर्या और विजय राज जैसे सितारे थे.  

quora

3. किस्सा कुर्सी का (1977) 

इमेरजेंसी पर आधारित इस फ़िल्म में शबाना आज़मी अहम भूमिका में थी. रिपोर्ट के अनुसार, इस फ़िल्म के ज़रिये राजनाति के काले चेहरों को दर्शकों तक पहुंचाने की कोशिश की जा रही थी, पर तभी रातों-रात फ़िल्म को बैन करने का फ़ैसला सुना दिया गया.  

4. गरम हवा (1973) 

गरम हवा की कहानी मशहूर लेखक इस्मत चुगताई की ज़िंदगी पर आधारित थी. एम.एस सथ्यू के निर्देशन में बनी इस फ़िल्म की कहानी में उन मुस्लिम लोगों का दर्द बयां किया गया था, जो भारत-पाकिस्तान के विभाजन के बाद इधर-उधर हो गये थे. 

ytimg

5. आंधी (1975) 

राजनीतिक मुद्दों पर बनी ये फ़िल्म प्रधानमंत्री इंधिरा गांधी के जीवन से प्रेरित थी. फ़िल्म की कहानी में इंदिरा गांधी और उनके पति के रिश्ते का ज़िक्र भी था. हांलाकि, फ़िल्म के निर्देशकों ने इस तरह की सभी अफ़वाहों का खंडन करते हुए कहा था कि इंदिरा गांधी के जीवन से फ़िल्म का ताल्लुक नहीं है. इसके अलावा फ़िल्म में एक सीन ऐसा भी था, जिसमें उसकी एक्ट्रेस को चुनाव अभियान के दौरान सिगरेट और शराब पीते हुए दिखाया जाता है.  

cinestaan

6. फ़ायर (1996) 

निर्देशक दीपा मेहता के निर्देशन में बनी ये फ़िल्म हिंदी सिनेमा की पहली ऐसी मूवी थी, जो समलैंगिक संबंधों पर आधारित थी. समलैंगिक संबंध जैसे गंभीर मुद्दे पर बनी इस फ़िल्म के रिलीज़ पहले ही इसे लेकर चारों ओर काफ़ी विरोध किया जाने लगा, जिसे देखते हुए कुछ समय के लिये फ़िल्म की रिलीज़ पर रोक लगा दी गई.  

7. परज़ानिया (2005)

हिंदू-मुस्लिम दंगों पर बनी ये फ़िल्म राष्ट्रीय पुरुस्कार जीत चुकी है. फ़िल्म की कहानी 2002 गुजरात दंगों में गुम हुए एक लड़के अज़हर की कहानी है. फ़िल्म की कहानी को हिंसात्मक और राजनीतिक रूप से संवेदनशील बताकर इसे बैन कर दिया गया था.  

quora

8. उर्फ़ प्रोफे़सर (2000)

2000 में बनी इस फ़िल्म का निर्देशन पंकज आडवाणी ने किया था. फ़िल्म की कहानी मुंबई के गैंगस्टर पर आधारित थी, जो सुपारी लेकर लोगों की हत्या करता था. सेंसर बोर्ड ने फ़िल्म में हद से ज़्यादा गाली-गलौज होने का हवाला देते हुए इसे रिलीज़ करने से इंकार कर दिया. 

quora

9. हवा आने दे (2004) 

हवा आने दे एक इंडो-फ़्रेंच फ़िल्म थी, जो भारत-पाकिस्तान युद्ध जैसे संवेदनशाली विषय पर बनाई थी. सेंसर बोर्ड का कहना था कि फ़िल्म में 21 कट लगने के बाद ही इसे रिलीज़ किया जाएगा, पर फ़िल्म के डायरेक्टर पार्थो सेन गुप्ता ने ऐसा करने से मना कर दिया गया, जिस वजह ये फ़िल्म दर्शकों तक आने से रह गई.  

staticflickr

भारतीय दर्शकों को कई बार कुछ लोगों के विरोध के कारण अच्छी फ़िल्मों से हाथ धोना पड़ा है.