हिंदी सिनेमा के इतिहास में दो भारतीय अभिनेता हुए हैं जिन्हें ‘जुबली स्टार’ कहा गया है. करण दीवान और राजेंद्र कुमार. ख़ासकर राजेंद्र कुमार जब सफलता की चरम पर ते तब उन्हें जुबली कुमार कहा जाता था. उनकी ज़्यादातर फ़िल्में सिल्वर जुबली पूरी करती थी. हालांकि, इन दोनों के ही नाम सबसे ज़्यादा सिल्वर जुबली हिट देने का रिकॉर्ड नहीं है. ये रिकॉर्ड तो गुज़रे ज़माने के एक भूले-बिसरे एक्टर का है, जो अपनी Sex Comedy के लिए मशहूर था.

Dada Kondke
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1980 के दशक के इस मशहूर एक्टर का नाम था दादा कोंडके. गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने दादा कोंडके (Dada Kondke) के नाम से मशहूर कृष्णा कोंडके को सबसे ज़्यादा सिल्वर जुबली फ़िल्में देने वाले स्टार के रूप में मान्यता दी है. उस वक़्त तक एक्टर की 9 फ़िल्में सिल्वर जुबली हुई थीं.

चॉल की ग़रीबी में बीता बचपन

दादा कोंडके का पूरा नाम कृष्णा ‘दादा कोंडके’ था. उनका जन्म मुंबई के नायगांव में 8 अगस्त 1932 को एक चॉल में कोली परिवार में हुआ था. उनका परिवार कॉटन की मिल में काम करता था और किसी का भी फ़िल्मी दुनिया से दूर-दूर तक से नाता नहीं था.

Dada Kondke Sex Comedies
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दादा कोंडके का बचपन में उनकी चॉल और आसपास के इलाके में तगड़ा भौकाल था. उनके इलाके में कोई भी किसी को परेशान करता या उत्पात मचाता तो वौ उसकी धुनाई कर देते थे.

लोकल बैंड से सेक्स कॉमेडी तक

दादा कोंडके ने अपने मनोरंजन करियर की शुरुआत एक बैंड के साथ की और बाद में मंच अभिनय की ओर रुख किया. वो कांग्रेस के सेवा दल की सांस्कृतिक गतिविधियों में शामिल हो गए, जिसने उन्हें महाराष्ट्र में थिएटर हस्तियों से परिचित कराया. 1969 में, उन्होंने राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता नाटक तांबडी माटी से मराठी सिनेमा में डेब्यू किया. 1971 में, वो सोंगड्या और एकटा जीव सदाशिव जैसी फिल्में बनाने वाले निर्माता बन गये.

80 के दशक तक कोंडके ने हिंदी फिल्में भी बनाना शुरू कर दिया और भारतीय सिनेमा सेक्स कॉमेडी का तड़का लगा दिया. उनकी फ़ेमस फिल्मों में ‘खोल दे मेरी ज़ुबान’ और ‘अंधेरी रात में दीया तेरे हाथ में’ शामिल है.

Dada Kondke Movie
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1971 में जब दादा कोंडके की ‘सोंगड्या’ रिलीज़ हुई तो महाराष्ट्र के कई सिनेमाघरों ने देव आनंद की हिंदी फ़िल्म ‘तेरे मेरे सपने’ भी लगी. दादा कोंडके की फ़िल्म को हटा दिया गया. जिसके बाद मराठी जनता भड़क गई. मामला शिव सेना सुप्रीमो बाल ठाकरे तक पहुंच गया. उन्होंने ‘मराठी मानुस’ कोंडके की मदद की और बदले में कोंडके ने ठाकरे को चित्रपट शाखा, शिव सेना की सांस्कृतिक और फिल्म शाखा स्थापित करने में मदद की.

Dada Kondke Films
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बता दें, 14 मार्च 1998 को दादा कोंडके को उनके मुंबई स्थित आवास पर दिल का दौरा पड़ा और उनकी मृत्यु हो गई. वो 66 वर्ष के थे और अपनी अगली फिल्म ‘ज़रा धीर धरा’ पर काम कर रहे थे.

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