1940 में गुरदासपुर से धर्मदेव पिशोरीमल आनंद मुंबई के लिए निकले, सपना था कि हीरो बनना है. 10 सालों के अंदर ये नाम हर किसी की ज़बान पर था. बात हो रही है बॉलीवुड के सदाबहार कलाकार देव आनंद की.
वो बचपन से ही अभिनय से प्यार करते थे. ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद 1940 में देव आनंद अपने सपने को पूरा करने के लिए गुरदासपुर से मुंबई आ गए. मुंबई आकर वो मिलट्री सेंसर ऑफ़िस में क्लर्क की नौकरी करने लगे, साथ ही साथ फ़िल्मों में रोल पाने के लिए डायरेक्टर-प्रोड्यूसरों के ऑफ़िसों के चक्कर भी काटने लगे. इस दौरान उनकी मुलाकात प्रभात स्टूडियो के कर्ताधर्ता बाबूराव पाई से हुई. इस मुलाकात में बाबूराव को देव आनंद इतने पसंद आये कि उन्होंने फ़िल्म ‘हम एक हैं’ में उनको मुख़्य किरदार निभाने का ऑफ़र दे दिया.
फ़ीमेल फ़ैन मर-मिटने को रहती थी तैयार
देव आनंद पर्दे पर अपने अभिनय को लेकर जितने लोकप्रिय थे उससे कहीं ज़्यादा वो अपनी निजी जिंदगी की वजह से भी सुर्खियों में रहे. देव आनंद अपने फ़िल्मी करियर के दौरान बॉलीवुड की बड़ी से बड़ी अभिनेत्रियों के साथ अफ़ेयर को लेकर चर्चा में रहे. मेल से कहीं ज़्यादा उनकी फ़ीमेल फ़ैन फॉलोविंग हुआ करती थी. देव आनंद का चार्म ही कुछ ऐसा था कि लड़कियां उनके प्यार में अपना घर छोड़कर मुंबई तक पहुंच जाया करती थी.
बॉलीवुड का पहला फ़ैशन आइकन
उस दौर में वो जो भी पहन लें, वही फ़ैशन बन जाता था. कहा जाता है कि उस दौर में देव आनंद अगर काले कपड़ों में सड़क पर निकल जाए तो लड़कियां छतों से कूदने को भी तैयार हो जाती थीं. उनकी एक झलक पाने के लिए कई लड़कियों ने सुसाइड तक की कोशिश कर डाली थी. लगातार इस तरह के मामले बढ़ने पर कोर्ट ने देव आनंद के काले कोट पहनने पर बैन लगा दिया था. देव आनंद ही वो पहले शख़्स थे, जिन्होंने काले कोट और सफेद शर्ट को लोकप्रिय बनाया था.
एक्टिंग के साथ निराले अंदाज़ और ज़बरदस्त स्टाइल का कॉम्बिनेशन
जब देव आनंद फ़िल्मों में सक्रीय थे उस दौर में राज कपूर और दिलीप कुमार जैसे कई बड़े सुपरस्टार बॉलीवुड पर राज किया करते थे, लेकिन देव साहब अपनी लाजवाब एक्टिंग, निराले अंदाज़ और ज़बरदस्त स्टाइल के कारण लोगों की पहली पसंद बनते जा रहे थे. जबकि 50 और 60 के दशक तक देव आनंद बॉलीवुड के किंग बन चुके थे. उस दौर में उनकी एक्टिंग के दीवाने न सिर्फ़ बुज़ुर्ग बल्कि युवा भी हुआ करते थे.
प्रोडक्शन कंपनी की शुरुआत
फ़िल्मों में सफ़ल होने के तुरंत बाद साल 1949 में देव आनंद ने ‘नवकेतन फ़िल्म्स’ नामक प्रोडक्शन हॉउस की शुरुआत की थी. इस दौरान उनके प्रोडक्शन हॉउस ने कई फ़िल्में प्रोड्यूस की, जिनमें से कई फ़िल्मों में उन्होंने ख़ुद मुख़्य भूमिकाएं निभाई. साल 1970 में फ़िल्म ‘प्रेम पुजारी’ से निर्देशक के तौर पर शुरुआत की, ये फ़िल्म फ़्लॉप रही. इसके बाद फ़िल्म ‘हरे रमा हरे कृष्णा’ से उन्हें असल पहचान मिली. फ़िल्म बनाने के साथ-साथ देव साहब ने कई फ़िल्मों की स्टोरी ख़ुद ही लिखी.
इन फिल्मों ने बनाया बॉलीवुड का एवरग्रीन हीरो
इस दौरान उन्होंने गाइड, ज्वेल थीफ़, जॉनी मेरा, काला पानी नाम जैसी शानदार फ़िल्मों में अभिनय किया. 70 और 80 के दशक तक देव आनंद बॉलीवुड के एवरग्रीन हीरो बन चुके थे. इस दौरान उन्होंने देश प्रदेश, मन पसंद, लूटमार और स्वामी दादा जैसे हिट फ़िल्में दी.
नए कलाकारों को मौका देने वाला स्टार
देव आनंद ने टीना मुनीम, ज़ीनत अमान जैसे कई नए कलाकारों को मौका दिया. उन्हें नए कलाकारों को मौका देने वाला स्टार भी माना जाता है.
बॉलीवुड अभिनेता देव आनंद को उनके बेहतरीन अभिनय की वजह से एक नहीं कई पुरस्कार मिले हैं. फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार के अलावा देव आनंद को 2001 में भारतीय सिनेमा के योगदान के लिए पद्म भूषण सम्मान दिया गया था. जबकि साल 2002 में उन्हें दादासाहेब फ़ाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था. देव आनंद ने हार्ट अटैक की वजह से 3 दिसंबर, 2011 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया था.
‘मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया, हर फ़िक्र को धुएं में उड़ाता चला गया…’