दशकों पहले लोगों के मनोरंजन के लिये सिर्फ़ एक ही साधन था और वो था रेडियो. जनता का एंटरटेनमेंट करने के लिये ही 1927 में ‘आकाशवाणी’ की स्थापना की गई. हांलाकि, उस वक़्त ‘आकाशवाणी’ का नाम भारतीय प्रसारण सेवा रखा गया था. 1936 में इसका नाम ‘ऑल इंडिया रेडियो’ हुआ. इसके बाद 1957 में लोग इसे ‘आकाशवाणी’ के नाम से जानने लगे.  

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आकाशवाणी से बना ख़ास रिश्ता  

‘आकाशवाणी’ के एहसास को सिर्फ़ वही लोग समझ सकते हैं, जिन्होंने इस युग को जिया है. सूरज की पहली किरण और ‘आकाशवाणी’ की धुन लोगों का दिन बना देती थी. धुन सुनकर आज भी लोगों की कई पुरानी यादें ताज़ा हो जायेंगी. जिन लोगों ने ये धुन नहीं सुनी है वो यूट्यूब (Youtube) पर जाकर सुन सकते हैं, पर उससे पहले ये जान लीजिये कि इस ऐतिहासिक धुन को किसने तैयार किया था. 

किसने बनाई थी आकाशवाणी की ऐतिहासिक धुन? 

कई लोग इस बात से अंजान होंगे कि AIR की ऐतिहासिक धुन किसी भारतीय नहीं, बल्कि यहूदी शरणार्थी ने बनाई थी. ‘आकाशवाणी’ की सिग्नेचर धुन वाल्टर कॉफ़मैन (Walter Kaufmann) ने तैयार की थी. 1907 को कार्ल्सबैड (Carlsbad) में जन्में वाल्टर के पिता ‘जूलियस कॉफ़मैन’ एक यहूदी थे. उस दौर में यहूदियों पर नाज़ियों की हुक़ूमत थी. नाज़ियों के अत्याचार से बचने के लिये यहूदी बचते-बचाते दूसरे देश में भाग रहे थे. 

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इसी दौरान 1934 में वाल्टर हिंदुस्तान की शरण में आ गये. उस समय उनकी उम्र 27 के आस-पास रही होगी. कमाल की बात ये है कि न चाहते हुए भी उन्होंने मुंबई में 14 साल बिता दिये. 

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जब AIR के साथ काम करने लगे वाल्टर  

वाल्टर एक प्रशिक्षित संगीतकार थे और उन्हें एक शख़्स चाहिये था जो उनके हुनर को पहचान सके. इस दौरान उन्हें ‘आकाणवाणी’ के साथ काम करने का मौक़ा मिला. संगीतकार के तौर पर वाल्टर ने 1936 से लेकर 1946 तक ‘आकाशवाणी’ के साथ जुड़े रहे. अपने कार्यकाल के दौरान ही वाल्टर ने ‘आकाशवाणी’ की प्रसिद्ध धुन तैयार की थी. वाल्टर ने धुन ऑर्केस्ट्रा के संचालक ‘महली मेहता’ के साथ मिल कर तैयार की थी.  

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सिर्फ़ ‘आकाणवाणी’ ही नहीं, वाल्टर ने हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में भी अपने संगीत का योगदान दिया. जिस धुन को सुनते-सुनते हमारी एक पीढ़ी ने पूरा जीवन गुज़ारा वो धुन यूरोपियन ने तैयार की थी. 1946 में वो भारत छोड़ कर चले गये थे, लेकिन एक अमर धुन देकर वो आज भी लोगों के दिलों में ज़िंदा हैं.