दिल चाहता है, कभी न बीते चमकीले दिन

दिल चाहता है, हम ना रहे कभी यारों की बिन
दिन-दिन भर हो प्यारी बातें, झूमें शामें, गाये रातें
मस्ती में रहे डूबा डूबा हमेशा शमां, हमको राहों में यूंही मिलती रहे खुशियां…

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मैं जब भी ‘दिल चाहता है’ फ़िल्म देखता हूं तो तुरंत दोस्तों को फ़ोन घुमाकर गोवा की ट्रिप का आइडिया दे देता हूं, वो बात अलग है कि मैं आज तक कभी दोस्तों के साथ गोवा ट्रिप पर नहीं जा पाया. लेकिन फ़िल्म देखकर ही मैं गोवा की हसीन वादियों के मज़े ले लेता हूं. 

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आज हम ‘दिल चाहता है’ फ़िल्म का ज़िक्र इसलिए भी कर रहे हैं, क्योंकि आज ही दिन 19 साल पहले ये फ़िल्म सिनेमाघरों में लगी थी. नए दौर के प्यार और दोस्ती को नए अंदाज़ में पेश करती फ़रहान अख़्तर निर्देशित ये फ़िल्म सुपरहिट रही थी. सच्चे प्यार की जद्दोजहद में लगे 3 दोस्तों की कहानी के रूप में ‘दिल चाहता है’ युवाओं को काफ़ी पसंद आयी थी. 

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आमिर ख़ान, सैफ़ अली ख़ान, अक्षय खन्ना, प्रीति ज़िंटा, सोनाली कुलकर्णी और डिंपल कपाड़िया स्टारर ये फ़िल्म आज भी युवाओं की फ़ेवरेट फ़िल्मों में से एक है. सच कहूं तो नए दौर के प्यार को नए तरीके को पेश करती ये फ़िल्म आज के युवाओं पर फ़िट बैठती है. आज भी हर कोई ख़ुद को आकाश (आमिर ख़ान), समीर (सैफ़ अली ख़ान), सिद्धार्थ (अक्षय खन्ना), शालीनी (प्रीति ज़िंटा), पूजा (सोनाली कुलकर्णी) और तारा (डिंपल कपाड़िया) में ढूंढने की कोशिश करता है. 

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आकाश को प्यार में ज़रा भी विश्वास नहीं है, लेकिन जब उसे अहसास हो जाता है कि वो शालीनी से प्यार करता है तब तक शालिनी उससे दूर चली जाती है. शालीनी से मिलने के बाद प्यार को लेकर उसकी सोच बदल जाती है.


सिद्धार्थ सच्चे प्यार में यकीन रखता है. लड़की चाहे कोई भी क्यों न हो, लेकिन प्यार सच्चा होना चाहिए. सिड को तलाक़शुदा तारा से प्यार हो जाता है, लेकिन समाज और उम्र में बड़ी होने के कारण वो तारा से अपने दिल की बात कहने से डरता है.

समीर हवा के उस झोंके की तरह है, जिसे हर 5 मिनट बाद किसी न किसी लड़की से प्यार हो जाता है. वो ख़ुद को किसी प्लेबॉय से कम नहीं समझता. गर्लफ़्रेंड होने के बावजूद वो दूसरी लड़की से इश्क़ लड़ाकर ख़ुद को चूना लगवा बैठता है.

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सच कहूं तो ‘दिल चाहता है’ मेरे लिए फ़िल्म नहीं, बल्कि एक जर्नी की तरह है. ये फ़िल्म असल हमें ज़िंदगी जीना सिखाती है. पैसा कमाना ही ज़िंदगी का मकसद नहीं होना चाहिए, बल्कि आपके पास ऐसे दोस्त भी होने चाहिए जो मुसीबत के वक़्त भी आपसे कहे भाई गोवा चलें. आपके पास हमेशा ऐसे दोस्त होने चाहिए जो छोटी-छोटी बातों में भी ख़ुशियां ढूंढ निकाले. 

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‘दिल चाहता है’ से पहले हमारे लिए दोस्ती के मायने ‘शोले’ फ़िल्म के जय और वीरू की दोस्ती की तरह थे, लेकिन इस फ़िल्म ने हमारी सोच को एक कदम आगे रखकर उसे 21वीं सदी की दोस्ती में बदल दिया. इस फ़िल्म की वजह से ही युवाओं के बीच दोस्तों के साथ ट्रिप पर जाने की परंपरा शुरू हुई थी. बेपरवाह होकर ख़ुशियां तलाश करने को ही ‘दिल चाहता है’ कहते हैं. 

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प्यार, दोस्ती, रिलेशनशिप और इमोशन से भरपूर इस फ़िल्म का म्यूज़िक भी युवाओं को ध्यान में रखकर बनाया गया था. इस फ़िल्म का हर एक गाना आज के युवाओं की लाइफ़स्टइल पर फ़िट बैठता है. इस फ़िल्म को 19 साल हो गए हैं, लेकिन लगता है कल परसों की ही बात है. 

‘दिल चाहता है’ साल 2001 की बेहतरीन फ़िल्मों में से एक थी. निर्देशित के तौर पर ये फ़रहान अख़्तर की पहली फ़िल्म थी. इसकी इसकी कहानी भी फ़रहान ने ही लिखी थी. साल 2001 में ‘दिल चाहता है’ को सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फ़ीचर फ़िल्म का ‘राष्ट्रीय पुरस्कार’ मिला था.